सोमवार, 19 जून 2017

पिता तुम्हारा साथ --- [नौ साल पहले पन्नों पर उतारे गए लफ्ज़ अब की बोर्ड के हवाले ]


माता - पिता की मृत्यु के पश्चात उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करने के रिवाज़ का पालन तो सारी दुनिया करती है परन्तु मेरा मानना है कि अगर जीते जी हम उन्हें उनके स्नेह, वात्सल्य, संरक्षण एवं त्याग के लिए कृतज्ञता अर्पित करें तो उनका शेष जीवन शायद चैन से बीतेगा | 
आज लगभग पांच या छह वर्षों से लगातार [ अब नौ साल और जोड़ दीजिये - स्थिति वही की वही ] वैवाहिक जीवन के झंझावातों को झेलने के उपरान्त जब मैंने हाथ में कलम उठाई तो सबसे पहले अपनी नई ज़िंदगी लिए अपने पिता को धन्यवाद देने की प्रबल इच्छा उत्पन्न हुई और मैं अपने रोम - रोम से लिखती चली गयी | 

मेरे पिता, रिटायर्ड विभागाध्यक्ष, अंग्रेज़ी विभाग |  त्याग, समर्पण, कर्तव्य निर्वहन की जीती - जागती मिसाल हैं | उनका सम्पूर्ण जीवन सादगी व् ईमानदारी का अनूठा व अनुपम उदाहरण है | कोई अजनबी उनसे पहली बार मिलने पर आश्चर्य से ठगा रह जाता है | मुझे याद है कुछ साल पहले पापा को किसी कार्यक्रम का मुख्य अतिथि बनाने हेतु आमंत्रित करने के लिए एक सज्जन हमारे घर आए | पापा के कई बार विश्वास दिलाने पर कि वे ही प्रो हरि कुमार पंत हैं, तब जाकर उन सज्जन ने पापा को आयोजन का निमंत्रण पत्र सौंपा | पापा का ऐसा ही व्यक्तित्व है | कृष काय शरीर, सूखा, पिचका चेहरा, खिचड़ी बाल, बढ़ी हुई दाड़ी, पुराने रंग उड़े बेमेल कपडे, बिवाई पड़ी हुई एड़ियां, उस पर हाथ से जगह - जगह से सिली हुई घिसी हुई चप्पलें | किसी के लिए भी विश्वास करना मुश्किल होता | पापा के समकालीन प्रो जहाँ सूट - बूट में लकदक, महंगी गाड़ियों में सवार एवं चमचमाते चेहरे वाले होते वहीं पापा इस मूल्यहीन, स्वार्थी और दिखावटी जमात से एकदम अलग | अक्सर हमें टोकते रहते हैं, '' क्यों कपड़ों की दौड़ में शामिल होते हो ? इसका कहीँ कोई अंत नहीं मिलेगा | कपडे किसी के व्यक्तित्व का आईना कभी नहीं बन सके ''| 

जहाँ तक पापा की विद्व्ता का प्रश्न है हम बच्चे जिससे भी कहते हैं कि हम ' हरि कुमार पंत उर्फ़ होरी' के बच्चे हैं, तुरंत यही सुनने को मिलता है '' तुम्हारे पापा बहुत विद्वान व्यक्ति हैं''| साथ ही यह भी सुनते थे कि वे अपने जवानी के दिनों में बहुत अप - टू - डेट रहते थे | उनके ऊपर उनकी कई शिष्याएँ जान छिड़का करती थीं | अब यह समझ में आता है कि शायद पापा ने अपने बच्चों के अंदर सादगी का संस्कार भरने के लिए ही अपने व्यक्तित्व को इस सांचे में ढाला होगा | 

पापा, गोदान के नायक ' होरी ' की तरह ऐसे इंसान हैं, कठोर परिश्रम ही जिसकी ज़िंदगी का एकमात्र उद्देश्य है | आज तिहत्तर [अब बयासी ] वर्ष की उम्र में जहाँ भी जाते हैं पैदल ही जाते हैं | बस कहने भर की देर होती है, ''पापा मेरा फॉर्म जमा करना है या फलाने बैंक का ड्राफ्ट बनवाना है', कड़कती धूप की उन्हें परवाह नहीं होती न घनघोर बारिश की फ़िक्र | किसी भी गाड़ी की सवारी बनना उन्हें पसंद नहीं | लोग उन्हें ' कंजूस, मक्खी चूस' जैसी अन्य कई उपाधियों से समय - समय पर अलंकृत करते रहे, लेकिन उन्हें किसी ताने का कोई फर्क नहीं पड़ा | आज लगता है कि पापा हम बच्चों से कहीं ज़्यादा स्वस्थ हैं | मेरे घुटने तैंतीस [अब बयालीस] की उम्र में दर्द [ अब तीव्र ] करते हैं, बहिन की सीढ़ियां चढ़ने में सांस फूलती है, भाई को चक्कर आने का रोग है तो माँ डाइबिटीज़ व हाई ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों से ग्रसित है | कभी - कभार 104 डिग्री बुखार आने पर भी मात्र एक पैरासीटामोल की गोली और कई गिलास गर्म पानी पीकर स्वयं को स्वस्थ कर लेते हैं पापा | आराम करने को कहा जाए तो टका सा जवाब मिलता है '' मुझे अपाहिज मत समझो'|
 
एक क्षण को भी फ़ालतू बैठना या गप्पें मारना पापा को पसंद नहीं है | उनके हाथों को हमेशा कुछ न कुछ करते रहने की आदत है | वाशिंग मशीन के होते हुए भी अपने कपडे अपने हाथ से धोते हैं | कामवाली बाई है लेकिन मौका मिलते ही जूठे बर्तन धोने जुट जाते हैं | झाड़ू लगा देते हैं | काम वालों के लिए ज़्यादा काम न हो जाए इसका वे बहुत ख्याल रखते हैं | समाज के निचले तबके के लोगों के प्रति उनका स्नेह जग - जाहिर है | सुरेंद्र प्रेस वाला, राजन पान वाला, बबलू नाई उनके परम मित्र हैं | ये लोग दोस्ती के बहाने पापा से अपना स्वार्थ सिद्ध करने की कोशिश नहीं करते शायद इसीलिए उनके आत्मीय हैं | इसके विपरीत कोई उच्च पदस्थ रिश्तेदार या परिचित उनसे मिलने घर आता है और अपने पद या शक्ति की डींग हांकता है तब पापा बिना कोई लिहाज़ किए बैठक से उठ कर चले जाते हैं और दोबारा अंदर नहीं आते | कारण पूछने पर हंसकर कहते हैं, '' मैं अगाथा क्रिस्टी की तरह आदमी के दिमाग में बैठ जाता हूँ और जान जाता हूँ कि कौन किस मकसद से आया है''|

पापा अपने कर्तव्य पालन में कभी पीछे नहीं हटे | मुझे याद है जब माँ के पैर में फ्रेक्चर हुआ था और वह दैनिक निवृत्ति विशेष प्रकार की कुर्सी में करती थी जिसमे पॉट बना होता था | एक दिन वह पॉट टॉयलेट में ले जाकर मुझे साफ़ करना पड़ा तो पूरा दिन उबकाई आती रही | उसके बाद माँ ने मुझे कभी नहीं आवाज़ दी | पापा तुरंत उस पॉट को टॉयलेट ले जाकर बिना किसी परेशानी के साफ़ कर देते | बाद में मैंने स्वयं को बहुत धिक्कारा पर पापा ने यह कहकर मुझे उस पॉट को हाथ नहीं लगाने दिया '' यह मेरा कर्तव्य है | मैं तेरी माँ का जीवन साथी हूँ | अगर मुझे कुछ होता तो यह कार्य तेरी माँ कर रही होती'' | यहाँ तक कि मेरी नन्ही बेटी नव्या [ अब तेरह साल ] भी मेरी अनुपस्थिति में पापा को ही आवाज़ लगाती है,'' नानाजी पॉटी कर ली, धुला दो''| 

बचपन से ही हम तीनों भाई - बहिनों को पापा की यह बात बहुत ही खराब लगती थी कि वे हमें जेब खर्च नहीं देते थे | हमारे कई मित्र लोग हमसे निम्न आर्थिक स्टार के होते हुए भी खूब चाट - पकौड़ी खाते और सैर - सपाटा करते | हम लोग अपना मन मसोस कर रह जाते और पापा को कोसने का कार्यक्रम सामूहिक रूप से करते | पापा का उदार चेहरा हमने तब देखा जब हमारी नानी दुर्घटनावश जल कर अस्पताल में भर्ती हुई | उस समय पापा ने पैसे खर्च करने में अपने उदार ह्रदय का परिचय दिया और तब भी जब मुझ पर विवाहोपरांत परिस्थितिजन्य आर्थिक विषमताओं ने आघात किया था | ससुराल में बीमार सास, पति द्वारा नौकरी छोड़ना, उस पर गर्भ में जुड़वां बच्चे | किसी को भी मानसिक और शारीरिक रूप से तोड़ देने के लिए काफी था, परन्तु जब - जब मुझे ज़रुरत पडी उन्होंने अपना रक्त - संचित धन देने में कतई संकोच नहीं किया | 
भाई, जो पापा की कंजूसी का अक्सर अपने दोस्तों एवं रिश्तेदारों के बीच मज़ाक उड़ाया करता था, एक दुर्घटना के चलते कई दिनों तक महंगे प्राइवेट अस्पताल में भर्ती रहा, तब जाकर पापा के दृष्टिकोण को सही ढंग से समझ पाया | अब उसे भी पैसों के मामले में पापा के नक्शेकदम पर चलते देखकर बहुत प्रसन्नता होती है |  
   
माँ से ऊंची आवाज़ में बात करना या उसका अपमान करना पापा ने कभी गवारा नहीं किया | माँ के प्रति उनके मन में जो प्रेम है उसकी कोई सीमा नहीं | हम बच्चों के सामने ही पापा अक्सर माँ को '' डार्लिंग'' कहकर सम्बोधित करते हैं | '' यह मेरे जीवन की धुरी है | ये न होती तो मेरा पता नहीं क्या होता ''| पापा से यह सुनकर मेरे भाई 'रोहित' की पत्नी 'पंकजा' उससे अक्सर कहती है '' तुम अपने पापा से क्यों नहीं सीखते पत्नी को प्यार करना ''| 

माँ का बताया छोटे से छोटा काम करने को पापा हमेशा तत्पर रहते हैं | मैं कभी - कभी झल्ला कर माँ से झगड़ उठती, ''तुम पापा को इतना क्यों दौड़ाती हो ''? पापा के चेहरे पर शिकन का नामोनिशान तक नहीं मिलता | एक छोटा सा वाक्य हमारी बहस की इतिश्री कर देता,''ये गृहस्थी के प्रति मेरे कर्तव्य हैं बेटा ''|  
 
पापा के अंदर भरे हुए धैर्य को देखकर कभी - कभी हमें कोफ़्त होने लगती है | कभी कोई अर्जेन्ट काम के आ जाने पर भी पापा अपना काम पूरा करके ही उठते हैं | परन्तु इसी धैर्य के चलते वे किसी भी रस्सी या ऊन पर पडी बड़ी से बड़ी गांठों को बिना किसी परेशानी के घंटों तक बैठकर सुलझा लिया करते हैं | ग्रामर का कोई सूत्र समझ में न आने पर तब तक समझते रहते हैं जब तक कि वह दिमाग में अच्छी तरह से घुस नहीं जाए | पापा का यह धैर्य चाहे कितनी भी विपरीत परिस्थितियाँ क्यों न हों, हमेशा उनके साथ रहता है | कभी रात को जब हम भाई - बहिनों को घर लौटने में देर हो जाती थी तो माँ चिंता में व्याकुल हो उठती थी, पर पापा का चित्त एकदम स्थिर होता, ''अभी आ जाएंगे लौट के, चिंता मत करो'' | 

पापा के इस धैर्य का एक और उदाहरण हमने तब देखा, जब उन्हें पेंशन व फंड मिलने में ढाई साल लग गए, उस पर उनको कई हज़ार रुपयों का नुकसान भी उठाना पड़ा परन्तु उन्होंने सरकारी बाबुओं को रिश्वत देना उचित नहीं समझा | उन्होंने हमसे यही कहा, ''अपने खून- पसीने की कमाई को लेने के लिए मैं रिश्वत का सहारा नहीं लूंगा''| उन ढाई वर्षों की आर्थिक तंगी ने हम तीनों भाई - बहिनों को आत्मनिर्भर होने की तरफ अग्रसर किया | वह तंगी हमने न झेली होती तो शायद हम जीवन - संग्राम में संघर्ष करना सीख न पाते |  
  
पापा ने हमें ऐशो - आराम से भरपूर ज़िंदगी भले ही न दी हो परअपने स्नेह व वात्सल्य से हमेशा सराबोर रखा | नकचढ़ी, गुस्सैल व् ज़िद्दी होने के कारण बचपन में कई बार मैं बिना खाना खाए सो जाती तो पापा मुझे घंटों तक मनाते रहते और हाथ में खाने की थाली पकडे खड़े रहते थे | जब तक मैं खाना न खा लूँ, सामने से हटते नहीं थे, कहते, ''अगर मुझसे गुस्सा हो तो मुझे चाहे जितने घूंसे मार लो, पर खाना मत छोडो''| जाड़ों में बच्चों को  ज़ुकाम या बुखार न हो जाए इसके लिए वे हमें अपने हाथों से शहद और बादाम खिलाते थे |

''तुम तीनों मेरे कलेजे के टुकड़े हो '' | ऐसे मौकों पर यह उनका प्रिय वाक्य होता | हम तीनों को रोज़ रात को कहानियां सुनाना, अंगुली पकड़कर सैर पर ले जाना, हमारे साथ हमारे खेलों में शामिल होना उन्हें बहुत अच्छा लगता था | पहली - पहली बार जब मैं एम.एड.करने के लिए घर से निकल कर हॉस्टल रहने के लिए गयी तब माँ बताती है कि पापा ने उस रात खाना नहीं खाया और उनकी आँख में आंसू भी थे | वे बार - बार कह रहे थे,'' इतनी ठंड में अल्मोड़ा कैसे रहेगी बेचारी ''?    

न केवल अपने पत्नी, बच्चों वरन छोटे - छोटे जानवरों पर भी समय - समय पर उन्होंने अपना स्नेह - सागर उड़ेला | एक बार हमारे घर में एक बिल्ली अपने दो बच्चों को छोड़ कर चलेगी | हमने उन्हें भागने की बहुत कोशिश करी पर असफल रहे | उन्हें पालना हमारी मज़बूरी बन गयी | जब उन्हें पाला तो वे भी हमारे घर का एक हिस्सा बन गए | बिल्ली को ''छम्मो '' और बिल्ले को ''फुल्लो '' नाम दिया गया | पापा दोनों को अपनी थाली के पास बैठाकर खिलाते | उन बच्चों के दांतों को चबाने में कष्ट न हो इसके लिए रोटी के टुकड़ों को अच्छी तरह मसलकर उनके आगे रखते | बाद में बड़े - बड़े बिल्ले उन बच्चों को मारने के लिए घर के चक्क्र काटने लगे तो पापा उनकी रखवाली किया करते थे | घर में उनकी सुरक्षा के लिए ग्रिल व्  दरवाज़े भी पापा ने लगवाए | 

पापा ने अपनी जीभ की गुलामी कभी स्वीकार नहीं करी | माँ, खाने - खिलाने की शौक़ीन होने के कारन अक्सर उनसे पूछती,'' कैसा बना है खाना ''? पापा का सपाट उत्तर होता,''खाने के बारे में इतनी बातें करना ठीक नहीं है |  जीने के लिए खाना चाहिए न कि खाने के लिए जीना चाहिए''| हम लोगों द्वारा खाने में पड़े नमक, मिर्च सम्बन्धी शिकायत करना भी पापा को सख्त नापसंद था | पापा खाने - पीने के लिए कभी किसी की दावत या शादी - ब्याह में शामिल नहीं हुए | घर पर रहकर दो रोटी नमक के साथ खाना उन्हें अच्छा लगत है | इकलौते पुत्र के विवाह के अवसर पर जहाँ लोग लड़की वालों को खसोटना अपना परम धर्म समझते हैं,पापा ने खाना तक नहीं खाया | दान - दहेज़ लेना तो दूर की बात है |  

मेरा विवाह जब तय हुआ था तो मेरे पति उच्च पद पर बहुराष्ट्रीय बैंक में कार्यरत थे | बिना किसी दान - दहेज़ के मेरा विवाह संपन्न हुआ था | विवाह पूर्व मेरी दोनों ननदें, जो मेरे पति से बड़ी थीं, विभिन्न विषयों पर मेरी राय जानने व अपने घर - परिवार से अवगत कराने हेतु मुझसे मिलने आई थीं | पापा से जब उन्होंने पूछा कि उन्हें कैसे दामाद की अपेक्षा है ? पापा ने बस इतना ही कहा, ''लड़की को दो रोटी खिलाने वाला होना चाहिए बस''|  ननदें, जो उच्च पदों पर आसीन थीं, आश्चर्य करने लगी,'' क्या सिर्फ दो रोटी खाने तक ही इंसान की ज़िंदगी सीमित होती है ?इसके आगे क्या कुछ नहीं चाहिए ? यह तो पशुवत जीवन के सामान होगा ''|  

मेरे ससुराल में काफी समय तक पापा की दो रोटी वाली वाली बात हंसी - मज़ाक का केंद्र - बिंदु बनी रही | परन्तु विधाता के खेल को कौन जान सका है ? परिस्थितियों की मार से एक दिन ऐसा भी आया कि हमें दो रोटी के तक लाले पड़ गए | मुझे मायके वापिस आकर एक बार फिर से नौकरी ढूंढनी पड़ी | कुछ समय प्राइवेट नौकरी करने के बाद माध्यमिक शिक्षा में मेरी नियुक्ति हो गयी | प्राथमिक की सरकारी नौकरी मैं शादी से पहले छोड़ चुकी थी | अब दो रोटी का इंतज़ाम मैंने किया | कठिन से कठिन क्षणों में पापा के सदा संघर्षरत चेहरे को ध्यान में रखकर मैंने अपने अंदर नई ऊर्जा अनुभव की है | 

कभी - कभी मैं अपने पति से कहती हूँ, '' इंसान को हमेशा पापा की तरह ज़मीन पर खड़े होकर बात करनी चाहिए, हवा में नहीं ''| 

आज पापा ने मुझे, मेरे पति और बच्ची को अपने घर में आश्रय दिया हुआ है [ दस साल बाद पिछले वर्ष अपने स्वयं के घर में प्रस्थान ]| 
      
यह उनकी ही दी हुई हिम्मत है जो हम दोनों अपनी ज़िंदगी नए सिरे से शुरू कर रहे हैं  आर्थिक विपन्नता ने मुझे इतना तोड़ दिया था कि मौत और ज़िंदगी के बीच कुछ ही क़दमों का फासला रह गया था | [ लखनऊ में किराए के तिमंजिले मकान की छत से अपनी बेटी को लटका कर पता नहीं किस घड़ी में हाथ वापिस खींच लिया ] 
  
किसी ऐसे ही उदास दिन बहिन ने परसाई की किताब पकड़ाई | मैं उसे पढ़कर चमत्कृत हुई | दुःख का ताज उतार फेंका | अपने अवसाद के खजाने को छोड़कर बाहर निकली और तब से मैंने ज़िंदगी के ऊपर व्यंग्य करना शुरू कर दिया |
  
एक अंग्रेज़ी के प्रोफेसर को आपने कम ही 'कप' को 'प्याला' कहते सुना होगा | पर पापा ऐसे ही व्यक्ति हैं | कॉलेज, घर हो या बाहर उन्होंने कभी अपने अंग्रेज़ी ज्ञान या पांडित्य का प्रदर्शन नहीं किया | ' अंग्रेज़ी सिर्फ मेरी रोज़ी - रोटी है मेरी आत्मा नहीं '', कहकर वे अपने काम में जुट जाते हैं | 
अनावश्यक धन का अर्जन उन्होंने कभी उचित नहीं समझा | यही कारण है कि रिटायरमेंट के पश्चात कई लोग ट्यूशन के लिए पूछने आए तो पापा ने उन्हें विनीत स्वर में मना कर दिया | अपने पूर्व साथी के बेहद आग्रह करने पर संविदा में पढ़ाने के लिए खटीमा गए लेकिन छह महीने के बाद वापिस आ गए | पेंशन नहीं, फंड नहीं, तीनों बच्चे बेरोजगार |  हम चिढ़ जाते और कहते,'' पापा ट्यूशन ही कर लेते तो हम सब आराम से रहते''| पापा निरपेक्ष स्वर में कहते,''मैंने तुम लोगों को पढ़ा - लिखा कर अपना कर्तव्य पूरा कर दिया अब अपने लिए स्वयं अर्जित करना सीखो'' |    

पापा ने कभी भी लड़का व लड़की में भेद नहीं किया अपितु भाई अक्सर यह शिकायत करता कि पापा हम बहिनों को ज़्यादा प्यार करते हैं |
 
पापा ने अपनी मर्ज़ी अपने बच्चों या अपनी पत्नी पर थोपना कभी उचित नहीं समझा | हम भाई - बहिनों ने जो चाहा, वह किया | जिसने जो विषय चुनने चाहे, चुनने दिए | परीक्षा के दिनों में भी कभी न सुबह पढ़ने के लिए उठाया न रात को पढ़ने के लिए बाध्य किया | मनचाहे कपडे पहिनने, सजने - संवरने, लड़कों से दोस्ती, उनके साथ घूमने - फिरने पर भी उन्होंने कभी एतराज़ नहीं किया | मेरे विवाहोपरांत सरकारी नौकरी छोड़ने जैसा कदम जो बाद में आत्मघाती सिद्ध हुआ या भाई द्वारा बी.एस.एफ़.की कठिन नौकरी चुनने पर भी उन्होंने आपत्ति नहीं दर्ज की | 

स्वयं शुद्ध शाकाहारी होते हुए, माँ व भाई द्वारा निरामिष भोजन पकाकर खाने पर पापा ने कभी नाक - भौं नहीं सिकोड़ी | 

पापा ने कभी भी माँ के साथ एक आम पति की तरह व्यवहार नहीं किया | पापा रिटायर्ड थे और माँ प्राइवेट स्कुल में पढ़ाती थी | माँ के सुबह - सुबह स्कूल चले जाने के बाद बिखरा हुआ घर समेटते थे | आज माँ भी रिटायर्ड है तब भी घर के हर छोटे - बड़े काम में बड़े मनोयोग से माँ का हाथ बंटाते हैं | सुबह उठकर बिस्तर लगाना, पूजा के लिए फूल लाना, छोटे - छोटे बर्तनों को धोना, दूध उबालना, कपडे सुखाना उनका नित्य का कर्म है | 

माँ बताती है कि जब हम छोटे थे तो पापा हमारे मल -मूत्र वाले कपडे धो देते थे | रिश्तेदार और पड़ोसी उन्हें देखते और 'जोरू का गुलाम '' कहकर हंसी उड़ाते | पापा ऐसे लोगों की परवाह करना जाया करना समझते थे | पापा सच्चे अर्थों में आधुनिक प्रगतिशील पुरुष कहे जा सकते हैं | 
कहने को पापा का जन्म उच्च कुलीन ब्राह्मण परिवार में हुआ है लेकिन वे मूर्ति पूजा, मंत्रोचारण, धार्मिक कर्मकांडों में कभी नहीं उलझे | माँ के बहुत आग्रह करने पर कभी - कभी पूजा घर के सामने खड़े होकर हाथ जोड़ भर लेते हैं | एक दिन मैंने पापा से कहा,'' पापा ! मम्मी के साथ बद्री - केदार हो आइये''| पापा ने जो जवाब दिया वह यह है,'' मेरा कर्तव्य ही मेरी पूजा है यह घर ही मेरा तीर्थ स्थान है''| 

सुबह की पहली किरण का स्वागत पापा ने हमेशा हाथ जोड़कर व सिर झुकाकर किया है | खाने की थाली से पहला कौर मुँह के अंदर रखते ही भगवान को धन्यवाद देना वे कभी नहीं भूलते | अपने हर कर्तव्य को भगवान् का कार्य समझने वाले पापा सच्चे अर्थों में धार्मिक हैं |
 
संन्यास लेने लोग घर से बाहर वनों व तीर्थ स्थलों को चले जाते हैं, पर पापा ने घर - गृहस्थी में रहते हुए भी अपने शरीर को सन्यासियों कीतरह साध रखा है | कितनी ही भीषण गर्मी क्यों न हो, उन्हें पंखा या कूलर की आवश्यकता नहीं होती है | कंपकंपाते हुए जाड़े में भी वे अपने एकमात्र घिसे हुए बीसियों साल पुराने स्वेटर को ही पहनते हैं कि '' यह मेरी बहिन 'बानू' ने मेरे लिए अपने हाथ से बुना था''| इसके अलावा कोई मोज़े, मफलर इनर या दस्ताने इत्यादि पहिनने का तो प्रश्न ही नहीं उठता |   

पापा को किसी वस्तु को बर्बाद करना पसंद नहीं है | छोटी से छोटी वस्तु भी अगर काम की हो तो पापा उसे तुरंत संभाल देते हैं | कई बार हमें लगता है कि वे घर को कबाड़खाना बना दे रहे हैं परन्तु जब हमें किसी मामूली सी वस्तु की ऐन मौके पर ज़रूरत पड़ती है तो पापा जिन्न की तरह एक ही पल में उसे हाज़िर कर देते हैं | तब हमें उनकी इस आदत के महत्व का पता चलता है | 

पापा ने कभी कोई गलत काम करने पर हमें मारा - पीटा या डांटा नहीं | उनका एक ही अस्त्र हमें घायल कर जाता था | हमारी आत्मा को झकझोर देता था | बुरा सा मुंह बना कर बस वे इतना ही कहते थे,''छिः छिः तुम्हें लज्जा नहीं आती ऐसा काम करते हुए ''? पापा की वह धिक्कारती मुखमुद्रा कई दिनों तक हमारा पीछा करती रहती और हम दोबारा गलती करने की हिम्मत नहीं करते थे | 

छोटी बहिन क्षिप्रा अक्सर मुझसे कहती है,''दीदी ! भगवान् पापा जैसे इंसान को किस मिट्टी से बनाता होगा, जो कभी भी अपने विषय में नहीं सोचते, जो अपने बीवी - बच्चों में ही अपनी ज़िंदगी जीते हैं, जिन्हें सबकी छोटी से छोटी ज़रुरत का ध्यान रहता है ''| 

कभी भी आप उनसे मिलेंगे तो उन्हें अपने छोटे - छोटे कामों में तल्लीन पाएंगे | वे या तो किसी किताब में सिर गड़ाए [अब नहीं,९ साल में नज़रें कमज़ोर हो गयी हैं ] मिलेंगे या खेत के किसी कोने में घास - पट्टी को साफ़ करते हुए मिलेंगे | 

संसार का कोई ऐसा इंचटेप नहीं होगा जो उनके हिमालय से ऊंचे व सागर से गहरे व्यक्तित्व को नाप सके | हम तीनों भाई बहिन उनकी सादगी, कर्तव्यनिष्ठा, धैर्य, समर्पण, स्नेह एवं वात्सल्य के समक्ष नतमस्तक हैं | हम भगवान् से प्रार्थना करते हैं की वे स्वस्थ रहें, सानंद रहें और अपने आशीर्वाद से हम बच्चों अभिसंचित करते रहें |