उत्तराखंड के सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों के कुछ विद्यालय इन दिनों विद्यार्थियों के असामान्य व्यवहार को लेकर चिंतित हैं. इन दिनों बच्चों के अन्दर तथाकथित देवी या देवता अवतार ले रहे हैं. साधारण शब्दों में जिसे मास हिस्टीरिया कह सकते हैं, जिसके कारण विद्यालय में पठन - पाठन प्रभावित हो रहा है और बच्चे ऐसे नाज़ुक समय में पढ़ाई लिखाई से दूर हो रहे हैं. गौरतलब बात यह है कि बोर्ड परीक्षा शुरू होने में कुछ ही दिन बाकी हैं, ऐसे में इन बच्चों का पूरा साल प्रभावित होने की आशंका प्रबल हो गई है.
परीक्षा के बढ़ते दबावों को ना झेल पाना, अभिभावकों और स्वयं विद्यार्थियों द्वारा पढ़ाई को गंभीरता से ना लेना, अर्धवार्षिक परीक्षाओं में ख़राब प्रदर्शन, रक्ताल्पता, शारीरिक कमजोरी, पेट में कीड़ों का होना, दोस्तों से बिछुड़ने का भय, विषम आर्थिक परिस्थितियाँ, तनावपूर्ण घरेलू माहौल, और सबसे बढ़कर अन्धविश्वास की जंजीरों में जकड़े हुए ग्रामीण, इसका प्रमुख कारण है. अभिभावक, इस बीमारी को देवी देवता का प्रकोप मानकर उसे शांत करने के लिए विद्यालय परिसर के अन्दर झाड - फूंक, पूजा - पाठ और मासूम पशुओं तक की बलि चढ़ा रहे हैं, जो किसी भी तरह से इस मानसिक समस्या का समाधान नहीं हो सकता, लेकिन ग्रामीण अंधविश्वासों के प्रति बेहद कट्टर रवैय्या अपनाते हैं और ना चाहते हुए भी विद्यालय प्रशासन उनका विरोध करने का साहस नहीं कर पाता.
यह समय बच्चों के लिए बेहद नाज़ुक है, इस कठिन समय में उन्हें जितना हो सके तनाव से दूर रहने की कोशिश करनी चाहिए. माता - पिता अपने बच्चों को स्नेह दें, उन्हें परीक्षाओं का या फ़ेल होने का हव्वा ना दिखाएं. लड़कियों को जितना हो सके घरेलू काम - काज से मुक्त रखना चाहिए, यह कटु सत्य है कि ग्रामीण क्षेत्रों की बालिकाएं घरेलू कार्यों में इतना व्यस्त रहती हैं कि उन्हें परीक्षा की उपयुक्त तैय्यारी का मौका नहीं मिल पाता. फ़ेल होने का डर उनके दिल - ओ दिमाग में रात - दिन हावी रहने लगता है, परिणामस्वरूप वे अवसाद से घिर जाती हैं, और इस तरह का असामान्य व्यवहार करने लगती है, जिन्हें उनके शब्दों में देवी आना भी कह सकते हैं उनके इस व्यवहार से उनके प्रति लोगों का दृष्टिकोण बदल जाता है. समाज में उन्हें विशिष्ट और पूजनीय नज़रों से देखा जाने लगता है, धार्मिक मान्यता मिलने से उन पर परीक्षा और उसके परिणाम का दबाव कम हो जाता है.
प्रश्न यह है कि इस समस्या से कैसे निबटा जाए ? चूँकि यह बच्चों के भविष्य से जुड़ा हुआ मामला है इसीलिये इसे हल्के में लेने की भूल कदापि नहीं करनी चाहिए. विभाग कोई ऐसी ठोस नीति तैयार करे, जिससे कुछ प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिकों को समय - समय पर, खासतौर से परीक्षा से कुछ समय पहले विद्यालयों में भेजा जा सके. इससे ना केवल विद्यार्थियों अपितु शिक्षकों और अभिभावकों को भी मॉस हिस्टीरिया के सम्बन्ध में जानकारी मिल सकेगी, जिससे बच्चों का मानसिक तनाव कम होगा, और वे बिना मॉस हिस्टीरिया का शिकार हुए भयमुक्त होकर परीक्षा दे सकने में समर्थ हो सकेंगे.