शनिवार, 31 अगस्त 2013

बाबा का साक्षात्कार …. सिर्फ इस चैनल पर

प्रश्न .....बाबाजी आपके ऊपर यौन शोषण और दुष्कर्म के इलज़ाम लगे हैं, इस पर आपको क्या कहना है ?

बाबा जी ....आप लोगों की सांसारिक शब्दावली हमारे पल्ले नहीं पड़ती | आप लोग जिसे शोषण कहते हैं हमारे यहाँ उसी को पोषण कहा जाता है | और दुष्कर्म हम नहीं करते | हम तो बस कर्म करते हैं, जिसके आगे आप लोग दुर्भावना से ग्रसित होकर के दुष लगा देते हैं वैसे ये सब हमारे दुश्मनों का कर्म है हमें फंसाने केलिए | 

प्रश्न .....बाबाजी आप गिरफ्तारी से बचने के लिए भागे - भागे क्यूँ फिर रहे हैं ?

बाबाजी .... मुर्ख प्राणी ! हम क्यूँ भागेंगे ? भागता तो आम इंसान है | हम बहुत पहुंचे हुए बाबा हैं | हम लोग अंतर्ध्यान हुआ करते हैं | जब मन करता है प्रकट हो जाते हैं |

प्रश्न ..... आपके आश्रम से अक्सर लड़के और लड़कियों के साथ दुर्व्यवहार की ख़बरें आटी रहती हैं | ऐसा क्यूँ है ?

बाबाजी .....आप इस तरह से देखिये हमारे आश्रम में लिंग के आधार पर भेद नहीं किया जाता | आज जब सारा भारत लिंग - भेद जैसी समस्या से जूझ रहा है , ऐसे में हम ही हैं जिसके आश्रम में दोनों के साथ सामान रूप से शोषण .....माफ़ करना पोषण किया जाता है |

प्रश्न .....बाबाजी आपका कहना है कि वह लडकी मानसिक रूप से कमज़ोर है | इसमें कितनी सच्चाई है ?

बाबाजी ......जी, इस बात में बिलकुल सच्चाई है | हम दो तरह की महिलाओं का इलाज करते हैं ...एक वे जो मानसिक रूप से बीमार होती हैं, दूसरी वे जो मानसिक रूप से ठीक होती हैं | जो महिलाएं मानसिक रूप से कमज़ोर होती हैं वे हमारे इलाज से ठीक हो जाती हैं | ठीक होने वाली कभी मुंह नहीं खोलती | यही इस देश की महान परम्परा है | और जो मानसिक रूप से स्वस्थ होती हैं, हमारे इलाज के बाद मानसिक रूप से कमज़ोर हो जाती हैं | वे इस लायक ही नहीं रहती कि अपना मुंह खोल सकें | इस बार का केस गलत ले लिया | यह लडकी न पूरी तौर से बीमार थी और न ही स्वस्थ | इसी वजह से इतनी गफलत हो गयी |


प्रश्न ......तो आप इस बलात्कार के इलज़ाम को कुबूल करते हैं ?

बाबाजी .......आप लोग अभी खुद ही कॉन्फिडेंट नहीं हैं | कभी दुष्कर्म कहते हैं कभी बलात्कार | पहले ठीक से निर्णय लीजिये कि हमने क्या किया है तभी प्रश्न पूछिए |

प्रश्न .....बाबाजी ! निर्भया बलात्कार काण्ड के बाद आपने कहा था कि वह लडकी अगर उन बदमाशों को भैय्या बोल देती या राखी बाँध देती तो बलात्कार होता या नहीं, और आपने यह भी कहा था कि आपके पास ऐसा भी मन्त्र है जिसका जाप करने से बलात्कार जैसी घटनाएं होती ही नहीं | इस बारे में आपका क्या कहना है ?

बाबाजी ....एक बात तो इससे साफ़ हो जाती है कि मैं सदा से ही बलात्कार विरोधी रहा हूँ |
मैं तो उस रात भी बालिका को वही चमत्कारी मन्त्र देने ही गया था ताकि वह आने वाले समय में बलात्कारियों से अपनी रक्षा कर सके | सारा विश्व जानता है कि  कि हम बाबा लोग अक्सर देह से विदेह हो जाया करते हैं | हमारी आत्मा अक्सर हमारे स्थूल शरीर से बाहर निकल कर सूक्ष्म संसार में विचरण करने चली जाया करती है | उस दिन भी ऐसा ही हुआ था | हमारी आत्मा हमारी देह से विलग होकर इस पापी संसार में भ्रमण कर रही थी | संसार में होने वाले पाप और अपराधों को नज़दीक से देखकर उनके समाधान पर हम आध्यात्मिक दृष्टि से विचार करते हैं | उस दिन हमारी सांसारिक देह ने जो किया उसके हम ज़िम्मेदार कैसे हो सकते हैं ? हम हमेशा अपने प्रवचनों में यही बात जोर देकर कहा करते हैं कि मनुष्य की सदा अंतरात्मा के दर्शन करने चाहिए | भौतिक देह तो मात्र छलावा है |

प्रश्न ....आपके सत्संग में महिलाओं की भारी संख्या रहती है, इसके क्या कारण हैं ?

बाबाजी .....बहुत सही प्रश्न किया आपने | मेरा मानना है कि ये महिलाएं ही हैं जो किसी भी आम इंसान को परमेश्वर बना देती हैं | जब ये अपने पतियों से रात - दिन डांट- फटकार खाकर भी उसे परमेश्वर या भगवान् का दर्ज़ा दे सकती हैं तो हमारे पास तो ऐसी  बोली है, जिसे हमने सालों - साल की प्रक्टिस के बाद मीठा बनाया है |

प्रश्न .....तो आप मानते हैं कि महिलाएं सच्ची श्रद्धालु होती हैं ?

बाबाजी ....देखिये, हमारा यह भी मानना है कि ये महिलाएं ही हैं जो किसी भी बाबा के भगवान् बन जाने की राह में रोड़े अटकाती हैं | जैसे ही कोई बाबा देवत्व को हासिल करने वाला होता है वैसे ही उस पर यौन शोषण का इलज़ाम लगा देती हैं | इन नासमझ महिलाओं की वजह से ही भारत भूमि संतों से खाली होती जा रही है | अगर महिलाएं चुप रह जाती तो हर गली - मोहल्ले में इतने बाबा होते कि आप अनुमान नहीं लगा पाते कि कौन बाबा है और कौन इंसान | जिसे इंसान समझते वह बाबा निकल जाता और जिसे बाबा समझते वह इंसान की तरह व्यवहार करने लगता |

प्रश्न .......बाबाजी !  प्राचीन काल में बाबा लोगों को बहुत आदर के साथ देखा जाता था | उनके चमत्कारों पर बहुत चर्चाएँ हुआ करती थीं | चमत्कारों के आधार पर लोग बाबा को भगवान् का दर्ज़ा दे दिया करते थे | आजकल ऐसा बहुत कम सुनने में आता है । इसके पीछे क्या कारण हो सकता है ?

 बाबाजी ..... सही कहते हैं आप | प्राचीन काल से ही हम बाबा लोग इलाज की बहुत सारी विधियां जानते थे | औरतों के बांझपन का शर्तिया इलाज हमारे पास हुआ करता था | औरतें इलाज करा - करा कर थक जाती थी, निराश हो जाया करती थीं , तब हमारे पास आती थीं | हम बंद कमरे में उन्हें ऐसा आशीर्वाद देते थे कि वे सफलतापूर्वक गर्भधारण करती थीं | उनकी सूनी गोद हरी हो जाया करती थी | फिर वे हमारा प्रचार - प्रसार करती थीं | हमारे पास ऐसी औरतों की भीड़ लग जाया करती थी | हम सबका इलाज बारी - बारी से करते थे | मजाल है कि किसी की गोद सूनी रह जाए | बाद में युवक पढने - लिखने लगे | पड़ने - लिखने वाला इंसान शक्की हो जाया करता है | इन्हीं शक्की युवकों के वजह से आज सिद्ध इन्फरटिलीटी स्पेशियलिस्ट बाबाओं के क्लीनिक समाप्ति की कगार पर हैं | आज महिलाएं अपने इलाज में लाखों रुपया फूंक देती हैं फिर भी माँ नहीं बन पातीं | इससे अंत में नुकसान महिलाओं का ही होता है |

प्रश्न ..... लोगों का यह मानना है कि संत लोग पूजनीय होते हैं, समाज के आदर्श पुरुष होते हैं | उनके प्रवचनों को दुनिया सुनती है | 

बाबाजी .....मनुष्य की आँख पर अज्ञान का पर्दा पड़ा हुआ है | हम लोग जब भी प्रवचन देते हैं उसे ध्यान से सुनना चाहिए | हम सिर्फ यह कहते हैं कि '' दुनिया में बहुत पाप बढ़ गया है '' हमने कभी यह नहीं कहा कि हम इस पाप में शामिल नहीं हैं | हम आम आदमी को इस दलदल से निकालने का कार्य करते हैं | हम जब व्यभिचार और भ्रष्टाचार को हटाने की बात करते हैं तो वह आम आदमी के बारे में होता है, हमारे बारे में नहीं |

प्रश्न .......बाबाजी ! सुना है आप अपनी पिछली ज़िंदगी में शराब बेचते थे | इस बात में कितनी सच्चाई है ?

बाबाजी .....शराब कहकर आप हमारा अपमान कर रहे हैं | जिसे आम भाषा में शराब कहा जाता है, हमारी भाषा में उसे सोमरस कहा जाता है | हाँ, हम सोमरस बेचते थे | सोमरस बेचते - बेचते ही हमें ज़िंदगी के इस असली रस का बोध हुआ | हमने ये जाना कि ज़िंदगी का असली रस इसी धंधे से निचोड़ा जा सकता है | 

प्रश्न .....मीडिया की भूमिका के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे ?

बाबाजी ..... मीडिया से मुझे बहुत शिकायत है | इसे आज मेरे चरित्र प्रमाण पत्र की याद आई है, जबकि इस बाबागीरी के धंधे में चरित्र की नहीं बल्कि चर्चित होने की ज़रुरत होती है | आप कैसी भी नौकरी उठा कर देख लीजिये, हर जगह आपसे चरित्र प्रमाण पत्र की मांग की जाती है | एक यही नौकरी है जहाँ चरित्र पोल खुलने के बाद देखा जाता है | 

प्रश्न .....क्या आपको लगता है कि अब आप गिरफ्तार हो जाएंगे ?

बाबाजी ......हमें कौन गिरफ्तार कर सकता है भला ? वह अलग बात है कि हम खुद गिरफ्तार हो जाएंगे | हम चाहते हैं कि लोग हमें आम इंसान समझें | हम अपनी शक्तियां आपातकाल के लिए सुरक्षित रखते हैं | आपको याद होगा हमारे मन्त्रों के जाप से हैलीकॉप्टर गिर जाने के बाद भी हमारे भक्तों को खरोंच तक नहीं आई थी, जबकि हैलीकॉप्टर टुकड़े - टुकड़े हो गया था | ऐसी अद्भुद मन्त्र शक्ति है हमारे पास | हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता | हम जब जेल से उकता जाएंगे, बाहर आ जाएँगे | 

प्रश्न ...... आप लोगों की नज़रों में नायक से खलनायक हो गए | देश भर में आपका विरोध बढ़ता जा रहा है |

बाबाजी ......पहले आप ये बताइए कि लोगों का विरोध किस बात पर है ? लोग चाहते क्या हैं ? वे स्वयं ही  निश्चय नहीं कर पा रहे हैं कि विरोध किस बात पर करना है ? किसी भी स्त्री के बलात्कार पर ? नाबालिग के बलात्कार पर या एक बाबा द्वारा बलात्कार किये जाने पर ? वे कह रहे हैं कि एक संत को ऐसा काम शोभा नहीं देता, यह काम तो उन्हें शोभा देता । ऐसे लोगों के विरोध को मैं सीरियसली नहीं लेता । 

इतना कहकर बाबा अंतर्ध्यान हो गए ।

बुधवार, 28 अगस्त 2013

बता फिर … क्यूँ न हो उसका बलात्कार ? क्यूँ न हो उसकी इज्ज़त तार - तार ?




उसका बलात्कार होगा  ....

वह आकाश में उडती है । पानी में तैरती है | उसने पर्वतों पर जीत की पताकाएँ फहराईं हैं ।
अन्तरिक्ष ने उसके हौसलों की गाथाएं गाईं हैं । भीग गया पर फिर भी परवाज़ किया उसने । टूट गया दम फिर भी आगाज़ किया उसने ।

उसका भी होगा बलात्कार ….

वह कायदों पे चलती है । नियम - ओ - क़ानून - से रहती है ।  उसूलों पर कड़क रहती है । हिम्मत के इतिहास में नित नया अध्याय लिख रही है । सही को सही, गलत को गलत कह रही है । जब पडी ज़रुरत, रणचंडी सा रूप धरा उसने । किसी कीमत पर भी समझौता न किया उसने । आज उसके आगे सिर झुकाना मजबूरी है | घर हो या बाहर, उसकी उपस्थिति हर हाल ज़रूरी है ।

 उसका भी होगा बलात्कार ....

उसके हाथों में स्कूटर, मोटरसाइकिल, जहाज और कार है | ऊँचे से ऊँची नौकरी, बड़े से बड़ा व्यापार है  | बैंक बैलेंस तगड़ा है, घर है कोठी है, बँगला है । पुरुष के वह कंधे से कन्धा मिलाती है । उसका सहारा लेकर उससे भी आगे बढ़ जाती है । हर बड़े पद पर उसकी सूरत दिख जाती है । रात - दिन जी तोड़ काम करती है । मेहनत को उसकी सारी दुनिया सलाम करती है । 


उसका भी होगा बलात्कार ...


उसने अकेले बच्चों को पाला । माँ - बाप, भाई - बहिन को सम्भाला  | सास - ससुर को मान दिया । रिश्तेदारों को सम्मान दिया । सबके सुख - दुःख में काम आती है । सारे रिश्ते, सारे नाते अकेले निभा ले जाती है । अब उसका भी अपना एक नाम है । कहीं  - कहीं तो पत्नी का नाम ही पति की पहिचान है ।


उसका भी होगा बलात्कार ...

वह इतनी मगरूर है । पिट जाने पर भी बोलती ज़रूर है | उसके मुंह पर जुबां आ गयी है ।  समझने और सोचने की अक्ल आ गयी है | खुद पर उठते हाथों को रोक लेती है | गलत हो कोई तो भरी सभा में टोक देती है | अधिकार की बात करती है | काम के बदले पगार की बात करती है । हर बात पर तर्क करती है । अच्छे - बुरे पर खुद फर्क करती है ।

उसका भी होगा बलात्कार ....

वह लजाती, शर्माती, सकुचाती नहीं है | चूहे, कॉकरोच, छिपकली से भय खाती नहीं है | खाट की तरह अब बिछती नहीं है । दबी, कुचली, डरी, सहमी दिखती नहीं है | अपने शरीर पर अपना हक़ मांगती है । गंदी से गंदी नज़र को झेलती है । तेज़ाब से जब जल जाती है, शक्लो - ओ - सूरत तक गल जाती है, फिर भी जुल्मो - सितम की दास्ताँ दुनिया को बतलाने बाहर निकल जाती है । 


उसका भी होगा बलात्कार ....

पढ़ाई को शादी पर अब कुर्बान नहीं करती । नौकरी की कीमत पर समझौता नहीं करती ।  ना आए पसंद तो रिश्ता वापिस कर देती है | दहेज़ नहीं मिलेगा, पहिले ही साफ़ कर देती है । भरे मंडप से बारात को लौटा देती है । लोभियों को हथकड़ी पहना देती है । पैर किसी के अब पड़ती नहीं है । उठाकर सिर, बना कर राह अपनी, शान से निकल पड़ती है ।

उसका भी होगा बलात्कार ...

उसे समाज का डर नहीं रहा । अलगाव का भय नहीं रहा | अपने दम पर घर चलाती है । लेना हो तलाक ज़रा सा भी हिचकिचाती नहीं है । घुट - घुट कर जीना किसी हाल भी अब चाहती नहीं है । लोगों की नज़रों से लड़ना उसको आ गया । कितने भी कठिन हों ज़िंदगी के सवाल, अकेले हल करना आ गया ।


बता फिर … क्यूँ न हो उसका बलात्कार ? क्यूँ न हो उसकी इज्ज़त तार - तार ?
     

सोमवार, 26 अगस्त 2013

प्यार को प्याज मत बनाओ, प्याज को प्यार मत बनाओ….

प्यार को प्याज मत बनाओ, प्याज को प्यार मत बनाओ….

पिछले दिनों प्याज और प्यार के बीच में जंग छिड़ गयी । प्याज को लोग इतना प्यार करते होंगे यह तो प्याज को भी पता नहीं होगा ।

लेकिन साथियों मैं इस बात के बिलकुल खिलाफ हूँ । मुझे पसंद नहीं कि सिर्फ तुक मिलता हो इस वजह से प्याज को प्यार में बदल दिया जाए । हमारे बजट में आजकल प्याज फिट नहीं हो रहा है तो क्या प्यार के तुक में फिट करने से प्रसन्न होकर बजट में आ जाएगा ?  तुकान्त कविताएँ चलन से बाहर हो चुकी हैं, साहित्यिक गलियारों में दम तोड़ चुकी हैं, ऐसे माहौल में प्यार को प्याज के तुक से मिलाना जंचता नहीं ।

चलिए देखते हैं कि ऐसी नौबत क्यूँ आई ? इसका एक ही कारण हो सकता है । पहले हम प्याज के साथ मज़ाक करते हैं । उसे सब्जी में, दाल में, पुलाव में, सलाद में, सिरके में, शराब में, जहाँ चाहा वहां डाल कर खाते हैं । कच्चा खाते हैं , पका  कर खाते हैं । ऐसे ही खाते - खाते  जब हम प्याज के आदी हो जाते हैं तब वह अचानक अपने भाव बढाकर हमारे साथ मज़ाक करने लगता है । हम कुछ नहीं कर पाते तो सोशल साइट्स पर प्याज को लेकर मज़ाक करने लगते हैं । इस प्रकार प्याज और हमारा हंसी - मज़ाक का क्रम निरंतर बना रहता है ।

इस दौरान और सब्जियां भी महंगी हुईं, लेकिन प्याज़ की लोकप्रियता को स्पर्श भी नहीं कर पाईं । गोभी, बीन, यहाँ तक कि थाली का बैंगन तक थाली से गायब हो गया लेकिन किसी को एहसास तक नहीं हुआ ।  कारण यही रहा कि इन सब्जियों को किसी गाने में फिट करने की सुविधा नहीं रही ।

प्याज भाग्यशाली है इस मायने में कि, जब तक दुनिया में प्यार के गाने बनते रहेंगे, तब तक प्याज की लोकप्रियता बनी रहेगी ।

ना प्यार कभी प्याज में बदल सकता है न प्याज कभी प्यार बन सकता है ।

प्याज यथार्थ है जबकि प्यार कल्पना ।

प्याज को इंसान खाता है जबकि प्यार इंसान को खा जाता है ।

कोशिश करते रहें और दिल में सच्चाई हो तो आखिरकार प्यार हासिल हो ही जाता है, जबकि प्याज को लाख कोशिश करने के बाद भी हासिल नहीं किया जा सकता ।

आम आदमी को प्याज न मिले तो राजनीति होने लगती है । सभी पार्टियां अपनी - अपनी रोटियाँ सेंकने लगती हैं । ठेलों पर प्याज बेचा जाने लगता है । प्यार के साथ ऐसा नहीं है । यह आम आदमी को ना मिले तो किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता । किसी की सत्ता पर ख़तरा नहीं मंडराता ।

खेत में प्याज की अतिरिक्त पैदावार हो जाए तो उसे बाँट कर वाहवाही मिलती है, इंसान दरियादिल समझा जाता है,  जबकि दिल में प्यार की अतिरिक्त पैदावार होने पर अगर बाँट दिया जाए तो बदनामी मिलती है ।

प्याज आज महँगा है, कल सस्ता हो जाएगा । लेकिन प्यार करना सदा से महंगा था, महंगा है और आगे भी महंगा ही रहेगा ।

इसीलिये साथियों, प्याज को प्याज ही रहने दो कोई भाव न दो ।

 …. 

सोमवार, 19 अगस्त 2013

कौन है असली स्टंटमैन ?

लोग कहते हैं आजकल के लड़के इतनी तेज़ बाइक चलाते हैं कि सड़क पर चलना दूभर हो जाता है । कहने को तो आजकल के लड़के भी कह सकते हैं कि सड़कें पैदल चलने वालों के लिए थोड़े ही बनी है । सड़कें गाड़ियां चलाने और बाइकें दौडाने के लिए बनाई जाती हैं । आज पैदल चलना एक विलासिता है जबकि बाइक चलाना अनिवार्यता ।

देशवासी अगर गंभीरता से सोचें तो पाएंगे कि ये युवा हैं और युवा का उल्टा वायु होता है । वे युवा हैं सो वायु हैं । वायु अमूर्त होती है । किसी को दिखती नहीं । वायु हल्की -हल्की बहेगी तो किसी को एहसास तक नहीं होगा । युवा दुनिया को अपने होने का एहसास करवाना चाहते हैं । जब वायु तेज़ गति से बहती है, सब सावधान रहते हैं । युवा सबको सावधान रखने का कार्य करते हैं । जब कोई युवा तेजी से बाइक चला कर बगल से गुज़रता है, किसी को नहीं दिखता । उसका एहसास भर होता है । सर्रर्रर की आवाज़ आने पर कई लोग आसमान में देखने लगते हैं कि शायद कोई हेलिकॉप्टर सर के ऊपर तेज़ी से गुज़र गया होगा । आज अगर यक्ष होते और युधिष्ठिर से प्रश्न पूछते '' वायु से तेज़ कौन चलता है ?  '' तब युधिष्ठिर का जवाब होता '' बाइकर, ये वायु से तेज़ चलते हैं '' ।

युवा आपको एहसास करवाते हैं कि आप सड़क पर चल रही चींटी से ज्यादा कुछ नहीं हैं । इस प्रकार ये आपको  महान होने के एहसास से दूर रखने में सहायता प्रदान करते हैं । मनुष्य होने का घमंड आपको छू भी नहीं पाता । भले ही धार्मिक चैनल वाले बाबा कितना चीख - चीख कर आपसे कहें '' मानव योनि बड़े ही भाग्य से मिलती है'', या ''मनुष्य परमात्मा की सर्वोत्तम कृति है '' यकीन मानिए आप इन बाइकर्स के आगे बड़ा ही तुच्छ महसूस करते हैं । बाबा लोगों को सड़क पर नहीं चलना पड़ता इसीलिये वे मानव होने पर गर्व महसूस कर सकते हैं ।

बाइकर्स की वजह से हमारे बड़े - बुजुर्गों की सेहत ठीक रहती है । ये घर में चाहे कितना भी बहाने क्यूँ न बनाएं मसलन,  ' आँख नहीं दिखता '' या कान से नहीं सुनाई देता ''बुढापा आ गया है, चलने में तकलीफ होती है'', एक बार सड़क पर आते ही उनके सारे बहाने छूमंतर हो जाते हैं । आँख, कान, घुटने सब दुरुस्त हो जाते हैं । बाइक और बाइकर्स का डर दिन पर दिन क्षीण होती जा रही इन्द्रियों को दुरुस्त कर बुढापे को दूर करने में सहायता प्रदान करता है ।

इन बाइकर्स की वजह से ही छोटे - छोटे बच्चे बचपन से ही सड़क में सावधानी से चलना सीख जाते हैं । दाएं और बाएँ कैसे चलना है, इन्हें सिखाना नहीं पड़ता । बाइकर्स का कोई भरोसा नहीं होता ।  ये किसी भी दिशा में चलने के लिए स्वतंत्र होते हैं । यही कारण है कि हमारे बच्चे छठे साल से ही अपनी छठी इन्द्री का इस्तेमाल करना सीख जाते हैं । भय के कारण घंटों तक सड़क पार नहीं कर पाने के कारण इंसान को धैर्य का अच्छा अभ्यास हो जाता है । जिस तरह क्रिकेट के मैदान में बेट्समैन पहले से अपनी बल्लेबाजी डिसाइड नहीं कर सकता बल्कि बौलर के बॉल फेंकने के अंदाज़ से वह बॉल की दिशा का अनुमान लगाकर बल्लेबाजी करता है, उसी प्रकार इन बाइकर्स के एक किलोमीटर दूर से आने के अंदाज़ से यह डिसाइड करना पड़ता है कि किस दिशा की दीवार से जाकर चिपका जाए और अपने प्राणों की रक्षा करी जाए ।

 एक हमारा बचपन था, जब वाहनों की रेलम पेल नहीं होती थी । हम सारी सड़क अपनी जागीर समझ कर चलते थे । सारी दिशाएं अपनी मुट्ठी में कैद रहा करती थीं । बाइक बड़े - बड़े शहरों में इक्का - दुक्का लोगों के पास हुआ करती थी । बाइक चलाने वालों को लफंगा, आवारा और बदमाश समझा जाता था । बाइक वालों को लोग लडकी देने से डरते थे । शरीफ लोग स्कूटर चलाते थे । माँ - बाप खुशी - खुशी अपनी लडकी का हाथ स्कूटर चलने वाले के हाथों में दे देते थे । ट्रैफिक के नियम किताबों में ही धूल फांकते रहते थे । यही कारण है कि रिक्शे वाले को दायाँ और बायाँ बताने में अभी भी मुझे कन्फ्यूज़न होता है । मेरी बेटी ने दस साल की उम्र से ही दिशाओं का ज्ञान कर लिया है और सड़क में सावधानी से चलना सीख लिया है, कई बार तो वह मेरा हाथ पकड़ कर किनारे कर देती है कि ''ठीक से चलो मम्मा, अभी कोई बाइक वाला टक्कर मार जाएगा '' ।

बाइकर निडर होते हैं । उन्हें मौत से डर नहीं लगता । उनकी रफ़्तार देखकर आम आदमी का कलेजा मुंह को आ जाता है । आम आदमी सड़क पर चलते हुए हमेशा सावधान की मुद्रा में रहता है । फर्क बस इतना है कि इस '' सावधान ' के बाद ' विश्राम' नहीं आता ।

बाइकर आर्थोपेडिक डॉक्टरों और ट्रामा सेंटरों के लिए वरदान सिद्ध होते हैं । ये इनकी ही कृपा है कि सारे आर्थोपेडिक चांदी काट रहे हैं । छोटे से छोटा अस्पताल भी इनके सहारे अपनी रोजी - रोटी खींच ले जाता है ।

जिम की संख्या में इन दिनों जो बेतहाशा वृद्धि हुई है उसके पीछे भी इन्हीं बाइकर्स का हाथ है । डॉक्टर और हेल्थ एक्सपर्ट कहते हैं '' पैदल चलिए , पैदल चलना सेहत के लिए लाभदायक है '' । हम पैदल चलने का जोखिम नहीं उठा सकते इसलिए जिम जाते हैं । इस प्रकार नए - नए जिमों के खुलने से कई नौजवानों को रोज़गार के अवसर मिले, जिसका श्रेय सिर्फ और सिर्फ इन बाइकर्स को जाता है ।

जिस तरह हम लोग देश की सारी समस्याओं की जड़ सिर्फ नेताओं को बताते हैं, उसी तरह अगर आप किसी लड़के से ये पूछेंगे कि वह बाइक ही क्यूँ चलाता है तो वह इसके पीछे लड़कियों की बदलती पसंद का हाथ बताएगा । लड़कों का कहना है कि लडकियां उन्हीं लड़कों की और देखती हैं जिनके पास खूबसूरत और स्टाइलिश बाइक होती है । बाइक जितनी लेटेस्ट होगी उतनी ही स्मार्ट लडकी के पास आने की संभावना बढ़ जाती है ।

लड़कों का कहना है कि लडकियां अगर बाइक वालों की और देखना बंद कर देंगी तो खुद - ब -खुद दुर्घटनाएं होना बंद हो जाया करेंगी । कल्पना कीजिये एक लड़का लेटेस्ट मॉडल की बाइक लेकर खड़ा है और दूसरा लड़का पुराना चेतक, बजाज या ऐसा ही कोई स्कूटर लेकर खड़ा है । लडकी मुस्कुराती हुई आती है और बाइक वाले को हिकारत से देखकर झट से स्कूटर की गद्दी पर लपक कर चढ़ जाती है । बाइक वाला खडा देखता रह जाता है और स्कूटर वाला बाज़ी मार ले जाता है ।

बाइकर को ट्रैफिक व्यवस्था का दुश्मन माना जाता है । मेरा मानना है कि अगर आप गौर से देखें तो पाएंगे कि ये बाइकर ही हैं, जो कितना भी भयानक भी जाम लगा हो, चुटकियों में चीर कर आगे बढ़ जाते हैं । जाम दरअसल धीरे चलने वाले और फूंक - फूंक कर गाडी चलाने वालों की वजह से लगता है । बाइकर कभी जाम में नहीं फंसता । वह बाल बराबर जगह से भी बाइक निकाल ले जाता है । वह सूक्ष्म से सूक्ष्म रास्ते का तक उपयोग कर ले जाता है । जाम में फंसे लोग बाइकर को देखकर हसरत से आहें भरते हैं कि काश ! कोई बाइक वाला आता और हमें भी इस जाम से बाहर निकाल ले जाता ।

बाइकर ईंधन की बचत करते हैं । ये बहुत अच्छे मित्र होते हैं । बाइकर कभी अकेला नहीं चलता । उसके पीछे दो, तीन, चार और कभी - कभी पांच मित्र तक सवार हो जाते हैं, लेकिन उसके माथे पर शिकन तक नहीं आती । दूसरी तरफ ऐसे लोग भी दिखाई देते हैं जो दस सीट की गाड़ियों में अकेले चलते हैं । इनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाता और राष्ट्रहित में पेट्रोल बचाने वाले इन बेचारे बाइकर्स को पुलिस शांतिभंग के आरोप में गिरफ्तार कर लेती है ।

बाइक और आत्महत्या में बड़ा घनिष्ठ सम्बन्ध है । युवक बाइक न मिली तो आत्महत्या की धमकी देते हैं । इधर भारत वर्ष में माता - पिता भी दो तरह के होते हैं एक वे जो पहली धमकी से डर जाते हैं,  दूसरे वे जो धमकी से नहीं डरते । ऐसे निष्ठुर  माता - पिता को आत्महत्या के प्रयास से डराया जाता है । धमकी वाले प्रयास में सल्फाज़ या नुवान की मात्र कम रखी जाती है । कभी कभी मात्र का ठीक - ठीक अनुमान न हो पाने के कारण ये  धमकी वाले प्रयास सफल हो जाते है और बाइक की राह में एक और शहीद का नाम जुड़ जाता है । इधर मेरे शहर में पिछले साल एक आत्महत्या सिर्फ इस कारण हुई कि लड़का जिस कंपनी की बाइक चाहता था, वह ना लाकर उसका पिता किसी दूसरी कंपनी की बाइक ले आया था । आत्महत्या करने के लिए इतना ही कारण काफी था, सो लड़के ने आत्महत्या कर ली । मेरे पड़ोस का एक और लड़का जो छह बहिनों के बाद पैदा हुआ था, उसके आत्महत्या करने का कारण समझ में आता है क्यूंकि उसके पिता ने किसी भी तरह की बाइक खरीदने में असमर्थता प्रकट कर दी थी । क्या फायदा ऐसी ज़िंदगी का, जिसमे एक अदद बाइक ही न हो । सो लटक गया फंदे से । अब उसकी माँ पागल हो गयी है और बाप सालों से लापता है ।

बाइक और काले चश्मे के बीच गहरा सम्बन्ध पाया जाता है । लड़का बाइक खरीदने के तुरंत बाद अगर कोई चीज़ खरीदता है तो वह यही काले रंग का चश्मा । हेलमेट से ज्यादा ज़रूरी अगर कोई वस्तु है तो यही काला चश्मा । इसे लगाकर अष्टावक्र भी खुद को सुपर हीरो समझने लगता है ।

लड़के कहते हैं '' जब बड़े परदे पर अजय देवगन बाइक पर सवार होकर स्टंट दिखाता है तो वह रातों - रात सुपरहिट हो जाता है । आँख बंद करके बाइक चलने वाले का नाम गिनीज़ बुक में दर्ज हो जाता है । छब्बीस जनवरी की परेड पर एक के ऊपर एक पिरामिड की तरह बने हुए जवानों को देश भर की तालियाँ मिलती हैं, और हम सामान्य लोगों को सड़कों पर स्टंट दिखाते हैं तो लोगों गालियाँ और पुलिस वालों की गोलियां मिलती हैं ? आँख बंद करके बाइक चलाने वाले को विदेशी यूनिवर्सिटी वाले डॉक्टरेट से नवाजते हैं, इनामों से लाद देते हैं, और हमें क्या मिलता है ? लोगों का तिरस्कार, अपमान और धिक्कार ।

इधर एक स्ट्राइकर कम बाइकर से मेरी मुलाक़ात हुई तो कुछ सवाल पूछे बिना रहा नहीं गया । अध्यापिका होने की ये आदत कहीं पीछा नहीं छोडती ।

सवाल …… तुम लोग बाइक किसलिए लेते हो ?
जवाब ……. जिस प्रकार नेता गण चुनाव से पहले हाथ जोड़कर वोट मांगते हैं कि जीतने के बाद जनसेवा करेंगे, उसी प्रकार हम लोग बाइक लेने के लिए माता - पिता के आगे हाथ जोड़ते               हैं और कसम खाते हैं  कि बाइक से सिर्फ कोचिंग और ट्यूशन जाएंगे ।

सवाल …… फिर क्या कारण है कि बाइक में बैठकर तुम लोग स्टंट मैन बन जाते हो ?
जवाब ……  गद्दी चीज़ ही ऐसी है कि इसमें बैठते ही हमें स्टंट करना और नेताओं को भ्रष्टाचार करना अपने आप आ जाता है ।

सवाल …… बाइकर्स के के साथ आए दिन होने वाली दुर्घटनाओं को देख - सुनकर इसे बंद करने का ख्याल मन में नहीं आता ?
जवाब …… आप लोगों के गले से आए दिन सोने की चैन, मंगलसूत्र इत्यादि खींच लिए जाते हैं, आप लोग इन्हें पहिनना बंद क्यूँ नहीं कर देती ? [ निरुत्तर ]

सवाल …… आप लोगों के स्टंट देखकर आम आदमी सड़क पर चलने से घबराता है, इसके बारे में आपका क्या कहना है ?
जवाब ……आप इसे स्टंट कह सकते हैं, हम ऐसा नहीं मानते । असली स्टंट क्या होता है ये हमने अभी हाल ही में देखा, जब एक आई. ए. एस को निलंबित करने में सिर्फ इक्चालीस मिनट लगे थे । इतनी देर में तो उसने आई. ए .एस का फॉर्म भी ठीक से नहीं देखा होगा, जितनी देर में उसे सस्पेंड कर दिया गया । इसके अलावा जुबानी स्टंट, चुनावी स्टंट तो हम रोज़ ही देख रहे हैं, सुन रहे हैं । यकीन मानिए इस स्तर का स्टंट करना अपने बस की बात नहीं है । हम कितनी भी कोशिश कर लें इनकी बराबरी नहीं कर सकते । [ निरुत्तर ]

बुधवार, 7 अगस्त 2013

पावर्टी वर्सेस पाव - रोटी ….

एक अंग्रेज़ी कविता हिन्दी में.… पावर्टी वर्सेस पाव - रोटी ….

यू सी.…
वी आर वैरी काइंड
वी आर नॉट ब्लाइंड
देयरफोर वी केन से टुडे
विद फुल कॉन्फिडेंस
पाव - रोटी ऑर पावर्टी
बोथ आर अ
स्टेट ऑफ माइंड,
लिसन पुअर, लिसन बैगर
विद साल्ट एंड पेप्पर
प्रिपेयर भेजा फ्राई
एंड फ्रॉम टुडे
नो फ़रदर क्राय.........