गुरुवार, 2 सितंबर 2010

तेरी याद .....

तेरी याद .....
आज भी जब तेरी याद
मुझको गले से लगाती है
मैं बैचैन हो जाती हूँ | 
इधर - उधर टकराकर 
खुद को चोट लगा लेती हूँ |
कभी गर्म कढ़ाई के तेल के छींटों से 
 हाथ जला लेती हूँ |
आईने के रूबरू होने से
डरती हूँ, भाग जाती हूँ | 
तुझे सोचकर, तुझे देखकर 
तुझे बोलकर, तुझे लिखकर 
तेरी यादों से खुद को लपेटकर 
तेरी हर सांस को अपने आस - पास  
महसूस करती हूँ |
काश ! तुम मेरे पास होते |
पर, अगर तुम सचमुच होते 
तो क्या मैं तुम्हें इतना प्यार कर पाती 
इतनी शिद्दत से याद कर पाती ?