सोमवार, 11 मार्च 2013

उफ़ क्या ज़माना आ गया है ?

लोग सदमे में हैं । देश निराश के भयानक दौर से गुज़र रहा है । सारी आशाएं समाप्त होती दिख रही हैं । देश का बेड़ा गर्क हुआ ही समझो । 

लोग उम्मीद की दृष्टि से उसे देख रहे थे कि वह पति के मरने के बाद पछाड़ खा - खा कर रो रही होगी । आंसुओं की नदियाँ बह गयी होंगी । उसकी चीखें लोगों के ह्रदय को चीर कर रख देंगी । सदमे से सुध - बुध खो चुकी होगी । दिमाग काम नहीं कर रहा होगा । विक्षिप्तावस्था में पहुँचने ही वाली होगी । चेतना विलुप्त हो चुकी होगी । सारा समय वह शून्य में निहार कर काट देती होगी । अनाप - शनाप बडबडा रही होगी । अपनों को पहिचानने में उसे कष्ट हो रहा होगा । अन्न जल तो पति की मृत्यु के पश्चात ही त्याग दिया होगा । कमरे में बंद हो गयी होगी । किसी के सामने आने से भी कतरा रही होगी । 

पर नहीं,  उसे ऐसा होश आया और ऐसा आया कि सबके होश उड़ गए । प्रदेश से लेकर देश तक दुःख के सागर में डूब गया । गणितज्ञों का गणित गड़बड़ा गया । सिर शर्म से झुक गए । ऐसा भी कभी होता है भला ? 

यह तो पुरुष का काम होता है हर समय दिमाग खुले रखने का । उसको तो भूखी प्यासी रहना था । शव पर सिर पटक पटक कर जान दे देनी थी । और उसे देखो कैसे बेशर्मों की तरह सौदेबाजी कर रही है । एक वह भी ज़माना था जब स्त्रियाँ पति की चिता पर जान देती थीं । पति के जाते ही उनकी दुनिया ख़त्म हो जाया करती थी ।  

लोग आश्चर्यचकित हैं ।  इतनी बेहतरीन सौदेबाजी आज तक कोई नहीं कर पाया । उसने साबित कर दिया कि सौदेबाजी की कला में महिला को कोई पछाड़ नहीं सकता । बशर्ते महिला की गणित अच्छी  होनी चाहिए । जब वह मोल भाव करने पर आती  है तो अच्छे - अच्छों के होश फाख्ता हो जाते हैं । ऐसा नहीं है कि सभी महिलाएं गणित में पारंगत होती हों । भारत वर्ष में अधिकाँश महिलाओं की गणित अच्छी नहीं होती । ऐसी महिलाओं हिसाब - किताब से घबराकर जो हाथ में आ जाए उसे ही संदूक के अन्दर ताला लगा कर रख देती हैं । इधर कुछ वर्षों में महिलाओं के अन्दर गणितीय क्षमता का काफी विकास हुआ है । जिसका साक्षात नमूना आजकल देखने को मिल रहा है । 

कहते हैं कि एक लडकी के ऊपर अपने मायके और ससुराल दोनों की लाज रखने की ज़िम्मेदारी होती है । साथियों उसने ससुराल और मायके दोनों की लाज रखी । किसी को शिकायत का मौका नहीं दिया ।  दोनों के घरवालों के लिए नौकरियां मांग लीं । जिसे छोड़ देती वही नाराज़ हो जाता । स्वयं से ज्यादा उसने दोनों परिवारों के लिए सोचा । अपने लिए भी पति वाला ही पद मांग डाला । चाहती तो चार पद अपने लिए मांग लेती । लेकिन नहीं सिर्फ एक से ही संतोष कर लिया । यह भी कोई बात हुई ? अपने लिए भी भारतीय स्त्री ने कुछ माँगा है भला आज तक ? जो सरकार दे देती वही एहसान मानते हुए रख लेती । 

उफ़ क्या ज़माना आ गया है ? 

होश खोना था 
होश उड़ा दिया । 
जीभर के रोना था 
जग भर को रुला दिया ।  
पानी ढूंढ रहे थे जो आँख में
उन सबको पानी पिला दिया ।