शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

कामवालियां बनाम घरवालियाँ ...

 
 
काम वाली बाई  की तलाश में मैंने अपने कई रविवार शहीद कर डाले | घरवालों के लाख ताने कसने के बावजूद कि '' कामवालों का कोई भरोसा नहीं होता, कब किस को लूट लें और काट डालें, कह नहीं सकते", मैंने कामवाली को ढूंढना नहीं छोड़ा | मुझे लुट जाना  और मर जाना मंज़ूर था पर कामवाली के बिना रहना मंज़ूर नहीं था  |  इस मिशन के तहत मैंने हर आने - जाने वाली महिला को गौर से देखा |  उनके चेहरे की भावभंगिमाओं का सूक्ष्मता से अध्ययन किया | इस गहन अध्ययन के उपरान्त कुछ निष्कर्ष निकाले जिन्हें सबके सामने प्रस्तुत कर रही हूँ |
 
 कामवाली .................
वह  सदा सिर उठाकर चलती है | दिन भर कमरतोड़ मेहनत करने के बाद भी उसके  चेहरे पर राई - रत्ती शिकन भी ढूँढने से नहीं मिलती |
 सदा चाक - चौबंद रहती है | कैसी भी परेशानी क्यूँ ना आए वह सदा हँसती मुस्कुराती, पान, सुपारी  चबाती रहती है |उसकी रग - रग से बला का आत्मविश्वास टपकता है | वह ज़रा सा ऊँचा बोलने पर या कल क्यूँ नहीं आई कहने पर बेझिझक कह देती है ''मेरे पास बहुत काम है, आप कोई और  ढूंढ लो" | उसके ऐसा कहते ही कहने वाली घरवाली  खिसियाकर चुप हो जाती  है और डर के मारे खालिस दूध वाली बढ़िया सी चाय बना कर उसके हाथ में थमा देती है, जाते समय अपना पिछले हफ्ते खरीदा नया सूट भी हँसते हँसते दे देती है |  
 
वह रोज़ शाम को मसालेदार चिकन, मटन या मछली बनाती है | महंगाई का विचार किये बिना  थोडा - थोडा पड़ोसियों और आस - पास रहने वाले रिश्तेदारों को भी भिजवाती है  | उसके दरवाजे से कोई भी भूखा नहीं जाता |
 
 कई बच्चे होने के बावजूद उसे किसी के भविष्य के विषय में चिंता नहीं होती ना ही किसी को को लेकर अस्पताल जाने की नौबत आती है |
 
 बिना किसी संकोच के वह अपने शरीर पर लगे हुए  चोट के निशानों के सन्दर्भ में बताती  है '' आदमी ने मारा , बहुत कमीना है साला, मैंने भी ईंटा उठा कर सिर फोड़ दिया साले का , आइन्दा से मारेगा तो दूसरा घर कर लूंगी "  |
 
 वह महीने के पहली तारीख को अधिकारपूर्वक एडवांस तनख्वाह  मांग लेती है |  महीने की आठ छुट्टियों पर  बिना किसी जी. ओ . के  उसका अधिकार होता है, जिसे लेने के  लिए उसे  किसी  किस्म का बहाना नहीं बनाना पड़ता है, ना ही घरवालों में से किसी को अचानक बीमार घोषित करना पड़ता है , और तो और ना ही इन छुट्टियों को  पूर्व में स्वीकृत  करवाना पड़ता है | साल में दो बार यात्रावाकाश लेने में उसे किसी किस्म का संकोच नहीं होता, ना ही सुबूत के तौर पर यात्रा का टिकट प्रस्तुत करना पड़ता है | 
 
घरवाली ..................
 
वह  आटे - दाल के भाव पर दुकानदार से घंटों तक बहस करने की क्षमता रखती है, बहस के परिणामस्वरूप बचे हुए दो रूपये पाकर निहाल हो जाती है | घर में  ज़रा - ज़रा सी बात पर ताव खा जाती  है, बच्चों को पीट डालती है |  बिना महंगाई का रोना रोए  हुए सास - ससुर और पति को खाना नहीं परोसती   |
 
वह चोटों के निशान को छुपाने की कला में पारंगत होती है, चेहरे पर नील के निशान को '' बाथरूम में फिसल गई थी" कहकर  मुस्कुरा देती  है | साथियों, बार - बार चेहरे के बल गिरना कोई आसान बात नहीं होती है |
 
 वह  छुट्टी के दिन भी बड़ा सा पर्स लेकर मुँह लटकाए हुए पंद्रह सौ रुपयों के लिए स्कूल जाती है | अचानक बीमार पड़ने पर भी उसे केजुअल लीव नहीं मिलती, क्यूंकि वह पूर्व में स्वीकृत नहीं होती | वह विरोध करने में सक्षम नहीं होती और उसकी तनख्वाह काटने में अधिकारी  कतई संकोच नहीं करता | 
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उसका  मात्र एक बच्चा होता है | हजारों टन कोम्प्लान, बोर्नविटा पीने और महंगे से महंगे टोनिक को पीने के बाद भी जिसे हर हफ्ते अस्पताल ले जाना पड़ता है ,जिसके भविष्य की चिंता में उसे अभी से नींद नहीं आती, ब्लड प्रेशर हाई और भरी जवानी में शुगर की बीमारी हो जाती है | पिछले कई सालों  से नींद की गोली खाए बिना वह सो नहीं सकती है  |
 
इस कामवाली खोज अभियान के तहत एक बार जिस औरत के अत्यंत साधारण से कपड़े देखकर मैं गलती से पूछ बैठी थी कि '' झाड़ू - पोछे का कितना लोगी ?" वह बुद्धिजीवी महिला निकल गई | उसने  बिना झाड़ू के मुझे सिर से लेकर पैर तक झाड़ दिया |   अपनी पूरी डिग्रियों सहित उसने मुझ पर आक्रमण कर दिया | उसने मुझे बताया कि उसकी औकात मेरे जैसी दस को खड़े - खड़े खरीदने की है |  ''सादा जीवन उच्च  विचार'' की पूरी फिलोसोफी  मिनटों में समझा दी | मुझे आँख होते हुए भी अंधी ठहराते हुए उसने गुस्से में  यह बताया  कि उसने पाँच  विषयों से एम्. ए. किया है, दो से पी. एच. डी. और एक से डी.लिट.| किस - किस यूनिवर्सिटी से उसे कौन कौन से पदक मिले, जाते जाते यह बताना वह नहीं भूली | मैं उसकी डिग्रियों के बोझ तले दब गई | उस दिन से मैंने तौबा कर ली कि किसी के बारे में कपड़े देखकर राय नहीं बनानी चाहिए | एक बार  मेरे साथ ऐसा भी हुआ है कि वह महिला जिसे मैं उसके द्वारा पहिने हुए शानदार कपड़ों  को देखकर सोचती थी ज़रूर कोई अमीर और संभ्रांत घर से ताल्लुक रखती  होगी और बड़ी श्रद्धा से  सुबह - शाम नमस्ते [उसे कम और उसके कपड़ों को ज्यादा] किया करती थी, वह कामवाली बाई निकली |
 
साथियों अपने इस खोज अभियान में मैंने अंतिम रूप से यह निष्कर्ष निकाला कि वर्तमान समय में यदि कोई स्वाभिमान की ज़िंदगी बिता सकती है तो वह कामवाली बाई है |