ये नियति है राजनीति की, 
 चाहें या न चाहें आप, 
 दिल्ली से लेकर कश्मीर तक, 
 चलेगा अब एक ही वाद, 
 जिसके आगे फुर्र मार्क्सवाद, 
 हवा हो गया समाजवाद, 
 जड़ है जिसकी सबसे गहरी, 
 नाम है जिसका वंशवाद, 
 ताजा उदाहरण? 
 देखा नहीं कल का प्रसारण, 
 फ़ख्र फारुख का, 
 बीते हुए कल को, 
 दोहरा गया आज, 
 बाली उमर, बेटे का सर, 
 और कश्मीर का ताज
  
 
 
वाह !
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
अरे बताओ भाई क्या भाव है प्याज! :)
जवाब देंहटाएंpariwarwad chaalu aahe..!
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