मंगलवार, 17 मार्च 2009

मैंने उगली आग ....सदा मर्दों के खिलाफ

मुझे

मर्दों के खिलाफ़

आग उगलनी थी   

स्त्री विमर्श पर

थीसिस लिखनी थी   

पिता ने मुझको

किताबें लाकर दीं

भाई ने इन्टरनेट

खंगाल दिया

बूढ़े ससुर ने

गृहस्थी संभाल ली

पति ने देर रात तक   

जाग कर

पन्ने टाइप किए

बहुत थक गयी तो

बेटे ने पैर दबा दिए

मैं गहरी नींद सो गयी   

मर्दों के खिलाफ़ 

सोचते सोचते 

41 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूबसूरत तंजिया लहजे में आपने लिखा है. सचमुच बढ़िया.

    जवाब देंहटाएं
  2. सत्य वचन - काफी आग इसी तरह उगली जा रही है.

    जवाब देंहटाएं
  3. सच है सारे मर्द हैवान शैतान हवसी होते हैं, इनका नामो-निशान मिटा दिया जाना चाहिए. वैसे भी ये अनुपयोगी जीव स्पर्म डोनर से अधिक हैं क्या?

    जवाब देंहटाएं
  4. "सपने में एक दोस्त मिला,
    जो चाहता था मेरा भला,
    मुझे देख मुस्कुराया,
    रुककर उससे बतियाने लगी,
    अपनी थिसिस के लिए कुछ,
    राय माँगने लगी,
    बोला-- मुझे करो माफ़,
    तुमने उगली है आग--
    सदा मर्दों के खिलाफ़ !!!( अन्यथा न लें ))

    जवाब देंहटाएं
  5. प्रति शौफाली जी
    आपक ब्लाग पर आग उगलती हुई कविता पढ़ी। कृपया थोडा़ा सा ठहर कर ठंड़े दिमाग से विचार कीजिए। कभी कभी जल्दवाजी में कुछ गलत होने की संभावना बनी रहती है। बहरहाल यह एक चेतना जाग्रत करने वाली रचना है। साधु वाद
    अखिलेश शुक्ल
    संपादक कथा चक्र
    please visit us--
    http://katha-chakra.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  6. सोचते सोचते थक कर सो गई .वाह बहुत बढ़िया .

    जवाब देंहटाएं
  7. यह एक स्थिति हो सकती है, पर समाज की मुक्कमल तस्वीर नहीं। दुनिया भर की स्त्रियों का चित्र स्त्री विमर्श पर थीसिस लिखने वाली स्त्रियों के ही रूप में आखिर कैसे देखा जा सकता है भला।

    जवाब देंहटाएं
  8. अरे !
    आपने कुछ सत्य घटनाओँ का
    पर्दाफाश करनी की ठान ली है क्या ? :)
    सच्ची अभिव्यक्ति है
    आप इसी तरह लिखती रहीये

    स्नेह,
    - लावण्या

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत बहुत खूब.....ऐसा भी होता है!

    जवाब देंहटाएं
  10. पहले तो पढ कर हँसी आयी - लेकिन फिर गंभीरता छायी. आपका सांकेतिक लहजा पसंद आया - कविता बहुत सुंदर लिखी है!

    जवाब देंहटाएं
  11. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  12. baat to aapne bahut gahari likh dee....itni gahari ki shaayad koi birlaa hi us gahraayi tak jaa paaye....is atulneey rachnaa ke liye aapko aabhaar....!!

    जवाब देंहटाएं
  13. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  14. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  15. यह अंदाज़ भी खूब भाया आपके लेखन का

    जवाब देंहटाएं
  16. ये परिवर्तनों का दौर है और आपने जैसा लिखा है वैसा परिवर्तन अगर हो रहा है तो सुखद है . पुरुषों के खिलाफ लिखना वास्तव में उस अन्याय की मानसिकता के खिलाफ लिखना है जो हमारे समाज में छाई हुई है इसका मतलब निरा पुरुष विरोध भर नहीं है

    जवाब देंहटाएं
  17. बहुत बढ़िया ! इतने कम शब्दों में इतनी अधिकर इतनी सशक्त अभिव्यक्ति ?

    जवाब देंहटाएं
  18. un logo ka kya jinke palle hi nahi pada aapka lekhan... baharhaal bahut gahri baat kah daali aapne...

    जवाब देंहटाएं
  19. पूर्णत: सत्य वचन......बिल्कुल यही कुछ हो रहा है....

    जवाब देंहटाएं
  20. बहुत खूब ...! यही तो मैं कहना चाहती हूँ..! विरोध अन्याय का हो ना कि किसी लिंग अथवा जाति का..! मान गई आपको

    जवाब देंहटाएं
  21. aapne vastvikta likhi hai pragativadininon ke
    muh par achha saval mara hai ki ek pahiye ki gadi nahin chal sakti.

    जवाब देंहटाएं
  22. कविता पसंद आई ! वैसे ऎसे मर्द कहां पाए जाते हैं ?

    जवाब देंहटाएं
  23. नीलिमा जी .....ऐसे ही मर्दों की बदौलत हम आज यहाँ तक पहुँच पाए हैं ...ये हर जगह पाए जाते हैं ...हाँ अभी इनकी तादाद कम है ....पर ये तेजी से बढ़ रही है..

    जवाब देंहटाएं
  24. एक और कविता मन से बाहर कूद पड़ने को तैयार है शेफाली जी
    उसे लिख ही डालती हूँ :)


    पत्नी की थीसिस ज़रूरी थी लिखनी,
    जल्द से जल्द ,
    लगने वाली थी नौकरी ,
    उसकी होने वाले थी तरक्की,
    बढने वाली थी तंख्वाह ,
    फिर ज़हर उगलना ही क्यों न पड़े
    किसी के भी खिलाफ,
    हमे क्या है इससे ख्वामख्वाह,
    लिखा ही तो है सिर्फ,
    इससे क्या जाता है,
    हर 30 को मोटा पैसा बेंक मे आ जाता है,
    सो पत्नी की थीसिस,
    बड़े काम की है,
    वह स्त्री विमर्श लिखकर भी,
    अपनी मांग मे मेरा सिन्दूर भरेगी ,
    मेरे लिए ही करवा चौथ करेगी,
    वंश मेरा चलाएगी,
    मेरी मिसेज़ कहलाएगी,
    रसोई भी सम्भालेगी और
    खर्च मे भी हाथ बंटाएगी,
    ऐसी बीवी के दो चार दिन
    हाथ पांव भी दबाने पड़े तो
    हमे फर्क नही पड़ता,
    इतनी जल्दी हमपे
    सम्वेदना का रंग नही चढता !!

    जवाब देंहटाएं
  25. पहली बार अच्छा लगा किसी का ज़हर उगलना...
    आप सचमुच बधाई की पात्रा हैं कि आपने सिक्के के दूसरे पहलू की तरफ भी देखने की दृष्टि पाई है.....

    जवाब देंहटाएं
  26. यक़ीनन इस कविता को कमसे कम राष्ट्रीय स्तर पर इनाम मिलना चाहिए. क्या लिखा है. वाह!
    ---
    अमित के सागर

    जवाब देंहटाएं
  27. सच सच और सच लिखा आपने . पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर विपरीत लिंगी के खिलाफ लिखना एक फैशन सा हो गया है . आपको बधाई तथाकथित नरिवदिओ को आइना दिखाने के लिए

    जवाब देंहटाएं
  28. इस नजर से भी देखिए। क्या बात है ..

    जवाब देंहटाएं
  29. शेफाली जी, जिस दिन बहुत सारे ऐसे पुरुष पृथ्वी, विशेषकर भारत भूमि पर विचरण करेंगे आपके अलावा बहुत सी अन्य स्त्रियाँ भी धन्य हो जाएँगी और ऐसी ही कविताएँ लिखने का यत्न करेंगी। फिलहाल तो आग ही उगलने जैसी स्थिति है। जहाँ आग लगी होती है वहाँ से चिंगारियाँ ही निकलती हैं, अमृत वर्षा नहीं होती। स्थिति बदल रही है इससे मना नहीं किया जा सकता।
    वैसे जितने पुरुष अपनी नौकरी करने वाली पत्नी के साथ खाना बनाते हैं, उसे खाना बनाकर खिलाते हैं, बच्चों के लंगोट बदलते ही नहीं हैं किन्तु धोते भी हैं, कृपया हाथ खड़े करें।
    मेरी पीढ़ी(५० वर्ष से ऊपर के लोग) के जितने पुरुषों ने सप्ताह में एक रात भी जागकर बच्चे का ध्यान रखा हो और पत्नी को सोने का अवसर दिया हो वे भी हाथ खड़े करें।
    वैसे all I can say is may their tribe increase.
    कविता के लिए हार्दिक बधाई।
    घुघूती बासूती

    जवाब देंहटाएं
  30. सच कहने की हिम्मत हरेक में नहीं होती

    जवाब देंहटाएं
  31. तथाकथित स्त्री विमर्श पर करारा व्यंग्य नज़र आता है।

    जवाब देंहटाएं
  32. अच्छा व्यंग्य है,परन्तु स्त्री विमर्श इतना हल्का और मजाक में लेने लायक शायद नहीं है।

    जवाब देंहटाएं
  33. वह !!!!!!!! मेरे तो रोंगटे हे खड़े हो गए आपकी कविता पढ़ कर की क्या कोई ऐसा सोच भी सकता है
    वह मैडम जी क्या खूब लिखा है आपने
    would like to read more from you

    जवाब देंहटाएं
  34. जस्ट अभी पाबला भैया ने इस कविता का लिंक भेजा मुझे.
    पहले भी आई हूँ इस ब्लॉग पर.कब?याद नही.किन्तु सच कहूँ ....अच्छा लगा इसे पढ़ कर मेरा यहाँ आना. इसे व्यंग्य कहे कोई या आग उगलती रचना.......मुझे तो एक खूबसूरत अहसास दिखा,हमारे जीवन में पुरुष की महत्ता ...उसका स्थान.आधुनिक होने का या नारीवादी होने का अर्थ पुरुष विरोधी होना नही होता बाबु! ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ दो रचनाएँ....एक स्त्री...तो दूसरा पुरुष.दोनों एक दुसरे के बिना अधूरे...दोनों के जीवन सूने.यही तो दिख रहा है मुझे इस कविता में.मैंने लाख विरोध किया...आग उगलती थीसिस लिखी किन्तु...जानती हूँ मेरे जीवन में पिता,भाई,चाचा,दादा नाना मामा,पतिससुर,देवर जेठ दोस्त हर रूप में पुरुष रहे हैं और रहेंगे.मैंने औरत के रूप में उनके जीवन में रंग भरे तो...इन्होने अपने हर रूप में जीवन को बेनूर होने से बचाया.है न? मैं तुम्हारी काव्य सरिता में उतरी..मैंने तो मोती ही देखे...पाए...ले लिए जा रही हूँ.खुश रहो.और...रिश्तों में क्या बदसूरत है उससे ज्यादा यही बतलाती रहो क्या खूबसूरत है! प्यार
    इंदु पुरी

    जवाब देंहटाएं
  35. अब पाबला जी ने आपका लिंक भेज दिया है तो आपसे परिचय भी हो गया ....
    जन्मदिन मुबारक ....
    रचना लाजवाब ....
    अगर aap क्षणिकायें लिखती हैं तो १०,12 क्षणिकायें अपने संक्षिप्त परिचय और तस्वीर के साथ भेजें ....सरस्वती-सुमन patrikaa के लिए ...जो कि क्षणिका विशेषांक है .....

    जवाब देंहटाएं
  36. Excellent beat ! I would like to apprentice while you amend
    your site, how can i subscribe for a blog website?
    The account helped me a acceptable deal. I had been tiny bit acquainted of this your broadcast provided bright clear
    idea
    Also visit my web site here

    जवाब देंहटाएं