कल का दिन 
 बहुत ख़ास था 
 सभी पोस्टों का 
 एक ही सुर 
 एक ही साज़ था 
 हर ब्लॉग में 
 बह रही मीठी 
 बयार थी 
 थके, बुझे चेहरों 
 में भी 
 छाई हुई बाहर थी 
 ना कोई विरोध 
 का स्वर गूंजा 
 ना कहीं पर 
 कीचड़ उछला 
 हर पंक्ति जैसे 
 जीवंत हो जाना 
 चाहती थी 
 हर आँख मानो 
 भीग जाना चाहती थी  
 शब्द सारे के सारे  
 एक और मुड़ गए 
 सबके दिलों के तार 
 एक तार से जुड़ गए 
 उससे गले 
 हम भले ही 
 ना लग पाए हों 
 कोई तोहफा, कोई फूल 
 खरीद ना पाए हों 
 हर पोस्ट, हर टिप्पणी में 
 वो सांस बनके छा गयी 
 चारों दिशाओं से 
 निकल कर माएँ  
 एक ही जगह पे आ गईं 
 ऐसे में साथियों 
 मुझको एक और माँ की 
 सहसा याद आ गयी 
 जिसको हम माँ 
 भले ही कह जाते हैं 
 उसके साथ खुद को 
 लेकिन 
 कभी जोड़ नहीं पाते हैं 
 उसके आंसुओं को कभी 
 पोछ नहीं पाते हैं 
 उस भारत माँ के नाम पर 
 हम कभी क्यूँ 
 एक नहीं हो पाते हैं ???? 
  
 
achhi soch k liye badhai
जवाब देंहटाएंग़मगीन कर गयी पोस्ट !
जवाब देंहटाएंखूब याद दिलाया शेफाली जी
जवाब देंहटाएंनेताओं को है न भारत मां की चिंता
तभी तो वे सत्ता में आना चाहते हैं
अपनी मां की न सही
वोटर की भी न सही
पर भारत मां की दुर्दशा
पर से ध्यान हटवाना चाहते हैं
कभी सफल हो जाते हैं और
कभी सफल नहीं हो पाते हैं
सही सवाल के साथ अच्छी रचना ,बधाई .
जवाब देंहटाएंलीक से परे कुछ कहना आपकी उपलब्धि,हमारी खुशकिस्मती......
जवाब देंहटाएंसही सवाल और उस मां का खयाल रखने के लिये बधाई आपको।बहुत ही अचछे ढंग से आपने अपनी बात रखी।
जवाब देंहटाएंसवाल अच्छा है ..पर जवाब भी सवाल में ही है ..हर घर की तरह यहाँ भी एक माँ की संतानों में नही बनती
जवाब देंहटाएंलवली जी की टिप्पनी सब कुछ कह गयी...
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