रविवार, 30 अगस्त 2009

तेरे बिना भी क्या जिन्ना ........

भा . ज. पा ....जो अब..... भाग जाओ पार्टी .....बन चुकी है , बड़े बड़े दिग्गज मैदान छोड़ - छोड़ कर जा रहे हैं , वे राजनीति से विरक्त हो चुके हैं , क्यूंकि विपक्ष मैं हैं , और विपक्ष में बैठकर भी भला कभी जन सेवा हो सकती है क्या ? इसीलिए नेताओं का टाइम कटे से नहीं कट रहा है , जसवंत सिंह यह सोचकर किताब  लिखने बैठे , और एक सच्चे शोधार्थी  की तरह उन्होंने पहले सुबूत जुटाए , स्वयं जिन्ना की कब्र खोदकर उसका भूत निकाला ....उस पर .रिसर्च करी ......क्यूंकि उन्हें समझ में आ गया था कि एक मात्र जिन्ना का भूत ही है जो भारतीयों के सिर पर सवार नेहरु गांधी के भूत को कड़ी टक्कर दे सकता है...तो इस कब्र मंथन का जो दौर शुरू हुआ वह लगातार जारी है ...समुद्र मंथन की तरह इसमें से भी कई अनमोल रतन निकले ...और निकट भविष्य में कई और निकलते जाएंगे ....मसलन ...कांधार रतन ,नोट के बदले वोट रतन  इत्यादि  ....इस मंथन में अमृत निकलने की तो कतई सम्भावना नहीं है ...हाँ लेकिन विष  इतना निकल चुका है कि  पूरी पार्टी लगभग डूब सी गयी है ...अब इस विष को किसके हलक में उड़ेलें...सब यही सोच कर परेशान हैं ....पार्टी वाले चाहते हैं कि लौह पुरुष इसे पीयें ....क्यूंकि लौह होने के नाते वे इसे आसानी से पचा सकते हैं  और अडवानी जी हैं कि अपनी गर्दन बचाते फिर रहे हैं कि एक बार गर्दन नीली हो गयी तो उनका  नाम नील कृष्ण अडवानी ना हो जाए ..अब इस उम्र में नाम बदल जाए ....ऐसा कौन चाहेगा ?
कतिपय नेता चिट्ठी पत्री लिखने में व्यस्त हैं ...हांलाकि इस एस .एम् .एस .और ई .मेल . के ज़माने में यह सुनना हास्यास्पद लग सकता है ..लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि चिट्ठी - पत्री से जो संबंधों की मधुरता प्रकट होती है उसका मुकाबला कोई एस .एम् .एस .नहीं कर सकता ...इस मशीनी युग में कोई तो है जो इस मिठास को जीवित रखे हुए है ...
हांलांकि ये बात भी उतनी ही सच है कि डाक विभाग पर डाँठ लग चकी है और वह स्वयं कलयुगी  भगवान्  यानी रामदेव के सहारे चल रहा है ...जडी बूटियाँ , साबुन , किताब .बेचकर अपना खर्चा निकाल रहा है ....पता नहीं निकट भविष्य में  इसे और क्या क्या बेचना पड़ेगा ?
तो ऐसे में हमरे नेतागण इस बात को भली प्रकार जानते हैं कि हाईकमान ... .....जिसकी  कभी  जिन्ना के नाम पर  भवें कमानी की तरह तनी रहती थीं ...और ब्लड प्रेशर भी हाई रहता था  , आज ब्लड प्रेशर और भवें दोनों गिर चुकीं हैं नब्ज़ ढूंढें  से भी नहीं मिल रहीं है , ऐसे मैं जो  इस वक़्त की नब्ज़ पकड़ ले उसकी चांदी हो सकने की पूरी पूरी सम्भावना है ......तो नेतागण डाक के माध्यम से समर्थन , असमर्थन ,शिकायत , स्पष्टीकरण ,के पत्र भेज रहे हैं ,वे जानते हैं कि आज भेजा है तो अगले चुनाव तक तो मिल ही जाएगा ...और बरसात के मौसम में तो बल्ले ही बल्ले , यदि किसी तरह से गिरते पड़ते पहुँच भी गया तो पत्र के अक्षर इतने भीग गए होते हैं कि समझना मुश्किल हो जाता है कि पत्र समर्थन का है कि असमर्थ का ...इसे स्पष्ट करने के लिए हाईकमान फिर पत्र भेजता है ,पत्र - व्यवहार के इस अनवरत क्रम के द्वारा सालों साल गद्दियाँ बची रह जाती हैं
इन दिनों स्वाइन फ्लू के अतिरिक्त पार्टी में एक फ्लू और फैल रहा है , जिसका नाम है.... के . के . के ....जसवंत जी पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं ...जिसकी व्याख्या जारी है ....किस ..काम ..की ...याने की अब पार्टी में बचा क्या है ? ना कुर्सी ...ना काम..... ना काज .. बस कलह ही कलह .... दूसरी व्याख्या है  ....कब के ख़त्म ....मतलब ....पार्टी में तो पहले से ही दम नहीं था , ये तो हम थे जो इसे बचाए हुए  थी वर्ना कब के ख़त्म हो चुकी होती ....
वैसे आम जन  को निराश होने की ज़रुरत नहीं है , क्यूंकि  नेताओं की कमी से जूझने के लिए पार्टी जल्दी ही विशेष नेता भर्ती अभियान शुरू करने जा रही है ...जिन्न जिन्न में भी टांग खींचो , कुर्सी हिलाओ  ,गड्ढा खोदो ,कब्र खोदो ..जैसे  गुण पाए जाते हों , वे एप्लाई कर सकते हैं ....
 

24 टिप्‍पणियां:

  1. वाह शैफाली जी एकदम सटीक व्‍यंग्‍य और सही निशाने की ओर इशारा करता हुआ व्‍यंग्‍य लिखा है आपने बेहतरीन

    जवाब देंहटाएं
  2. भारतीय राजनीति को एक स्वस्थ, सुदृढ़ विपक्ष की आवश्यकता है और हमेशा रहेगी. यदि भाजपा नुक्सान उठाती है तो परोक्ष रूप से इसमें देश का भी अहित है.

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह ! क्या बात है. बहुत सही लिखा है ...... I've actually been smiling for the last 5 mins.

    जवाब देंहटाएं
  4. अच्छे भीगों भीगों के जूते मारे हैं। मगर वे सबरे बेशरम हैं उन्हें कोई फर्क पड़ने का नहीं।

    प्रमोद ताम्बट
    भोपाल
    www.vyangya.blog.co.in

    जवाब देंहटाएं
  5. हा हा हा ...........कमाल है यार !!!!! जिन्ना के जिन्न को भी तुमने नही छोडा ...........जिन्न जिन्न को पार्टी ज्वाइन करनी वो लोग ज्वाइन कर सकते हैं .........वाह क्या बात लिखी है ,बधाई .मेरे ब्लॉग पर भी घूम लीजये .

    जवाब देंहटाएं
  6. आपका अंदाज़ देख कर ..हमें तो आईना याद आ जाता है..एक दम रात भर भीगा कर रखती हैं ..जूते को..तब पडती है तडा तड.....वाह जिन्ना जी को एक नये ऐंगल से देखा ..मज़ा आ गया..और हां ब्लोगवाणी पसंद का बटन काहे नहीं लगाती हैं जी..बताइये तो कहां चटका लगायें.....

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सटीक और लाजवाब व्यंग लिखा, करारा और झन्नाटेदार.

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  8. aik rashtriy parti ki aisi durdsha..
    kitna afsosjank hai.......bilkul shi likha..

    जवाब देंहटाएं
  9. ये बहुत सही कहा कि इस उम्र में नील कृष्ण आडवाणी होने से नाम बदलने का झंझट कौन मोल ले।
    वैसे आपने गौर किया है कि जिन्ना को हिज्जे करके बोलें तो क्या होगा "जिन्न आ"

    जवाब देंहटाएं
  10. अडवाणी जी को उनका प्रस्तावित नाम बताया तो जाना चाहिये।

    जवाब देंहटाएं
  11. इतना तीखा...किसी को तीत न लगे!!

    गजब का सटीक कटाक्ष!!

    जवाब देंहटाएं
  12. shefali ji,
    bahut khoob likha hai....jinna ka bhoot BJP ke sir chadh kar bol raha hai....bahut sundar katksh...aur sabse badi baat ki vyang kayi pahluon ko chhu raha hai.....bahut bahut badhai aise lekhan ke liye.

    जवाब देंहटाएं
  13. bhai kya karara vyangya likhti hain,maa ke saath iska rasaswadan kiya hai maine .......humdono ki badhaayi lijiye,bahut hi shaandaar

    जवाब देंहटाएं
  14. बेहतरीन व्यंग्य रचना!
    अब भले ही आडवाणी जी नीले न हुए,लेकिन उनकी लाली तो खत्म हो ही चुकी है:)

    जवाब देंहटाएं
  15. बेहतरीन व्यंग्य। मैं तो इसे राजनीतिक और जिन्ना व्यंग्य कहूंगा।

    जवाब देंहटाएं
  16. आम जन निराश नहीं हैं
    कम से कम इन नेताओं से तो कतई नहीं
    आम जन जितना समझदार है आपको कहां पता?
    इसी लिये आम जन अपनी रक्षा करने के लिये
    इनको चुन चुन कर लोक / विधान सभा मे भेज देता है ताकी पांच वर्ष घर के आस पास कूड़ा इक्कठा ना होने पाये

    जवाब देंहटाएं
  17. भाजपा का यह फुल फार्म पहली बार पढ़ा मज़ा आया । आप भी हल्द्वानी से है । लगता है सारी विधाओं के रचनाकार हल्द्वानी मे हैं । बधाई -शरद कोकास दुर्ग,छ.ग.

    जवाब देंहटाएं