माननीय शशि थरूर जी , ,आप माननीय हैं , इसीलिए आपकी बात मान लेने में ही सबका भला है, आप बिलकुल सच कहते हैं ,कि हम भारतीय मवेशी हैं ,इसमें बुरा क्या मानना ? आपने संयुक्त राष्ट्र में हमारा मान बढ़ाया है ,आप इतने साल विदेश रहकर आए हैं ,आपसे बेहतर जानवर और इंसान का फर्क भला कौन जान सकता है ?
हम लोगों की क्या ...हम तो पिछडे हुए लोग हैं , सभी को इंसान ही समझते हैं ...
आपको जो लगा आपने बेबाकी से कह दिया ,वर्ना लगता तो यह आप जैसे सभी लोगों को है , लेकिन कहता कोई नहीं है ,और आपने तो लिख भी दिया .तभी तो कहते हैं कि तकनीक कभी कभी बड़ी तकलीफदेह साबित होती है , बहरहाल आपके इस बयान से यह साबित हो गया कि आप हिप्पोक्रेट नहीं हैं .लेकिन आप राजनीति में उतर तो आए हैं लेकिन अभी नौसिखिये हैं ,आपने पहले इस देश के धुरंधर राजनेताओं से प्राइवेट टयूशन लेने चाहिए थे ,जो सदियों से यही सोचते हैं ,लेकिन कहते नहीं हैं ....वसीम बरेलवी के शब्दों को तोड़ा - मरोड़ा जाए तो ...."बेवफा कहा जाता है , लेकिन समझा नहीं जाता '...'जानवर समझा जाता है ,लेकिन कहा नहीं जाता 'वैसे आपने गलत कुछ भी नहीं कहा , हम भारत की आम जनता यानी केटल क्लास यह खुले दिल से स्वीकार करते हैं कि जिन हालातों में जानवर तक दम तोड़ देते हैं, हम उससे भी बदतर हालात में जिंदा रह जाते हैं. आप जैसे लोग जब बड़ी - बड़ी गाड़ियों में सड़कों पर ड्राइव करने निकलते हैं ,और आपको रोमांच की ज़रुरत होती है तो हम कुत्ता बन के आपके पहियों तले बिछ जाते हैं ,और आप लोगों के बच्चे , ब्लड का कलर रियली में रेड होता है यह हमारी बदौलत ही जान पाते हैं
जब देश में कोई भी प्राकृतिक आपदा आती है जैसे वही .....बाढ़ , भूकंप ,सूखा आदि ,और आप लोग अपने हवाई जहाजों से च च्च च्च ...कहकर भोजन के पेकेट गिराते हैं तो हम उसे लपकने के लिए चील ,गिद्ध ,और बाज बन जाते हैं
जब किसी महामारी का मन भारत में आने के लिए तड़पता है तो हम चूहा बनकर उसका स्वागत करने के लिए तैयार रहते हैं
जब आप लोगों को अपनी चुनावी सभाओं में भीड़ बढ़ानी होती है तो हम बिना कोई देरी किये भेड़- बकरी बन जाते हैं
जब आप लोगों की शान में नारे लगाने होते हैं तो सब एक सुर से सियार की तरह हुआ - हुआ करते हैं ,कव्वे की तरह कांव कांव करके आसमान गुंजा देते हैं ,तोते की तरह आपकी जै - जैकार के नारों को रट लेते हैं .
आप लोग चुनाव जीत पाएं इसके लिए हम रात भर उल्लू की तरह जागकर आपका प्रचार करते हैं ,लोमडी की तरह आपके जीतने की तिकड़में भिडाते रहते हैं ,केकड़े,और बिच्छू की तरह आपके विरोधियों को डंक मारते हैं , साँप की तरह बनकर विपक्षी नेताओं के विरुद्ध ज़हर उगलते हैं ,
आपके फेंके चारे को खाने के लिए हम मछलियाँ बन जाते हैं .
आप लोग आराम से लाखों के होटलों में रह सकें इसीलिए हम जिन्दगी भर गधा बनकर नौकरियां करते हैं ,बैल बनकर कोल्हू में जुते रहते हैं अपना पेट काटकर भी आयकर भरते हैं
आप भारतीय लोग विदेशों में ऊँचे पदों पर जब सुशोभित हो जाते हैं तो ,इस खुशी में हम मोर की तरह नाच करने लगते हैं ,बन्दर की तरह उछल - कूद करते हैं ,अपने दाँत दिखाते हैं ,जब आप जैसे नीली आँखों वाले लोगों का मन विदेशी ज़मीन से उकता जाता है ,और आप के अन्दर जनसेवा की भावना जोर मारती है ,और आप वोट मांगने के लिए हमारे द्वार आते हैं तो हम लंगूर की तरह पेड़ पर लटककर ,चमकादडों की तरह पेड़ों पे लटककर आप लोगों के जुलूस को को निहारते हैं ,मकडी की तरह सुनहरे सपने बुनने लगते हैं ,कि आप आए हैं ,शायद अब हमारा कुछ उद्धार होगा .
आप खरगोश की तरह दौड़ सकें इसके लिए हम कछुआ बन जाते हैं ...
अजी जानवर छोडिये ,ये आपकी सहृदयता है कि आप हमें जानवर कह रहे हैं ,अरे !हम तो जानवरों से भी बदतर हैं ...कभी कचरे के ढेर पर कूड़ा बीनते हुए बच्चे को देख लीजिए ,जिसके लिए ,भारत एक खोज ,खाने की खोज तक सीमित है ,उसके और कुत्ते के बीच की लड़ाई देख लीजिए ...अक्सर उसमे बच्चा हार जाता है ...
वैसे जानवर तो आप लोग भी होते हैं , लेकिन यहाँ भी क्लास का फर्क है ...हम कैटल होते हैं तभी तो आप वेल सेटेल होते हैं .
आप की क्लास के जानवर भी अलग होते हैं ....आप लोग गद्दी मिलने से पहले बिल्ली की तरह ,जीतने के बाद शेर की तरह दहाड़ते हैं ,आपकी चाल हाथी की तरह मस्त होती है ,आप लोगों की तकलीफों पर घडियाली आँसू बहाते हैं ,मुसीबत आने पर गीदड़ की तरह दुम दबा कर भाग सकते हैं , केटल लोग आपको अपनी आस्तीनों पर पालते हैं ,आपकी गर्दन घमंड के मामले में जिराफ को भी मात दे देती है .
वैसे शशि जी, शायद आपको पता नहीं होगा कभी - कभी हम सब्जियाँ भी होते हैं , आप लोग शशि बनकर राजनीति के आकाश में चमकते रहें इसके लिए हम एक दूसरे को गाजर - मूली की तरह काट डालने से भी परहेज नहीं करते हैं ..
मुझे कल हि मह्सूस हो गय था कि शशी थरूर का कैटल गया हवाई जहाज की यात्रा पे
जवाब देंहटाएंहा हा हा
चलो आपने ही शुरुआत कर दी
शशी तू तो गयो काम से।ये कैटल ही तुझे कभी सैटल नही होने देगी।जा ये एक कैटल का श्राप है।
जवाब देंहटाएंShashi thurur ji ko na jane kis baat hai gurur,ham sidhe sadhe jarur hai hujur par itana bhi nahi ki maveshi kahe jaye..
जवाब देंहटाएंsahi baat nahi hai..shashi ji aapekshaon par khare nahi utar rahe hain..
badhiya prsang utahaya aapne..badhayi
शेफाली जी. उत्तम,विनम्र ढंग से आपने जान कर न जानने वाली जनता यानी देसी गधों और विदेशी घास चरे हुए नेतानुमा गधों का वर्गीकरण कर अंतर बता दिया है.साधुवाद.
जवाब देंहटाएंविजयप्रकाश
इसे सिर्फ व्यंग्य तो नहीं कहूँगा मैं.. बहुत ही उम्दा लेखन है ये.. बहुत ही उत्कृष्ट
जवाब देंहटाएंकमाल की रचना है .. आपकी कल्पनाशीलता की दाद देनी पडेगी !!
जवाब देंहटाएंवाकई एक लाजवाब व्यंग पढने को मिला.जितनी बधाई दी जाय कम है
जवाब देंहटाएंबढिया लिखा है.
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
बेहतरीन, शानदार, लाज़वाब कैटलगाथा!
जवाब देंहटाएंकुश का कहना ठीक है- यह व्यंग्य नहीं उम्दा लेख है
अनिल पुसदकर जी के कैटल श्राप में एक और नाम जोड़ लीजिए हमारा
Grrrrrrrh
बी एस पाबला
ek shaandar vyangya........padh ker Bhartiya hone per Garv mehsoos ho raha hai..................................
जवाब देंहटाएंबढ़िया व्यंग्य है।
जवाब देंहटाएंबधाई!
बहुत ही सटीक और करारा व्यंग. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
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जवाब देंहटाएं.
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शैफाली जी,
बेहतरीन!
शशि थरूर संयुक्त राष्ट्र संघ में भी सफल नहीं थे, अपने इस असंवेदनशील बयान से उन्होने बता दिया ऐसा क्यों था।
भारतीय राजनैतिक दुश्चक्र पर एक करारा व्यंग्य, साथ ही नामी-गिरामी व्यंग्यकारों के लिए एक नसीहत जो पुलपुली व्यंग्य रचनाओं पर फूले-फूले घूमते हैं। इन दिनों जो व्यंग्य छप रहा है उसे देखकर कहा जा सकता है कि ब्लाॅगिग में ज्यादा साहसपूर्ण अभिव्यक्ति सामने आ रही है। शैफाली जी बधाई।
जवाब देंहटाएंप्रमोद ताम्बट
भोपाल
www.vyangya.blog.co.in
वाह मा साब..क्या करारा झापड मारा है...थरूर.की तो आत्मा कांप जायेगी..
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा है। आनन्दित हुये। प्रमोद ताम्बट जी से सहमत!बधाई!
जवाब देंहटाएंकांग्रेस को अक्ल नहीं है क्या ?
जवाब देंहटाएंइन्हें निकाल देते तो जानवर ऐसे खुश होते जैसे आदमी बन गए हों,
फिर मामला ठंडा हो जाता तो पिछले दरवाजे से अंदर ले ले,
समझते ही नहीं,
इतना तीखापन कैसे आ जाता है इतने सुन्दर चेहरे के साथ ???????? कमाल के सवाल ...........बधाई .
जवाब देंहटाएंआपने तो शर्माने पर मजबूर कर दिया .....सुशीला जी
जवाब देंहटाएंच च जबान क्या फिसली ....इनका सेटेलमेंट खतरे में पड़ता दिखाई दे रहा है.....सोरी जी इधर जबान नहीं अंगुली फिसली थी ट्विटर पे......वैसे कोई फर्क नहीं पड़ता जी.....अब कोई दूसरा सेटेल होने के वास्ते आ जायेगा ....बस बोलेगा नहीं केटल को केटल
जवाब देंहटाएंएक बहुत ही सशक्त कटाक्ष है मैम...
जवाब देंहटाएंकाश की श्रीमान जी भी पढ़ पाते!!!
गुस्सा न करें...सीख जाएंगे, सीख जाएंगे
जवाब देंहटाएंधीरे-धीरे नेताओं की ज़ुबान भी सीख जाएंगे
वोटरों को ये भी जानवरों की जगह मुक्तिदाता ही बताएंगे
मुझे पहली बार पता चला कि जानवर को जानवर कहलाना पसंद नहीं
किसी ने लिखा है डाँट खाकर बच्चे की तरह लग रहे है हा हा
जवाब देंहटाएंआपकी लेखनशैली= कमाल
जवाब देंहटाएंकलप्नाशक्ति= लाजवाब
व्यंग्य = बेमिसाल
तीखापन= हरी मिर्च
स्वाद = जाएकेदार (चेतावनी:नेताओं का हाज़मा खराब हो सकता है)
प्रमोद ताम्बट जी की बात से पूर्णत्या सहमत
बढिया लिखा है |
जवाब देंहटाएंविवेक जी से भी सहमत हूँ |
एक बहुत ही सशक्त कटाक्ष है
जवाब देंहटाएंlajwaab rachana
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