गुरुवार, 26 नवंबर 2009

उस लापता का पता चल गया ...

उस सात वर्षीय बच्ची की माँ जब अपनी बेटी  को पड़ोस की  शादी में ले जाने के लिए तैयार कर रही होगी, तो उसने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उसे वह आख़िरी बार सजा  रही होगी. घटना कोई नयी  नहीं है, शादी के मंडप में खेलती -  कूदती बच्ची अगवा कर के ले गए ,कौन और कहाँ , कुछ पता नहीं चल सका .यह यह शहर , हर गली, हर मोहल्ले में होने वाली एक सामान्य  सी घटना है, आज रामनगर में हुई है, कल कहीं और होगी . फर्क इतना है कि हर बार लडकियां बदल जाती हैं और  उनको  गायब करने वाले हाथ बदल जाते हैं.
 
लड़कियों  को मारने वाले हाथ हर जगह मिल जाएंगे, पहले तो पेट में ही उसका खात्मा कर देने की सोची जाती है , किसी तरह से बच गई तो बाहर इंसानी शक्ल में घूमते भेड़िये तो निश्चित ही उसे नोच खाएंगे,  अपनी फूल सी लडकी का यह अंजाम देखकर  कौन सी माँ  बेटी की ख्वाहिश  करेगी?  प्रसव पूर्व लिंग की जांच करवाना अपराध है, यह तो जगह - जगह लिखा हुआ मिल ही जाता है, प्रसव के पांच - सात वर्ष बाद ही बलात्कार करने वालों के लिए क्या ?
 
 बाद   पांच दिन तक पुलिस सुराग लगाती ही रह गई ,पूछताछ करती रह गई और पाचवे दिन बच्ची की लाश को कुत्ते  मिट्टी के ढेर के अन्दर से खींच कर बाहर  ले आये , बच्ची एक माध्यम वर्गीय परिवार की थी, किसी मंत्री, नेता या कंपनी के सी . ई. ओ की होती ,अव्वल तो उनकी बच्चियों को उठाने की कोई हिम्मत ही नहीं करता,अगर कोई करता भी तो   शायद पुलिस उसे पाताल से भी खींच कर ले आती.
 
ना उस बच्ची ने भड़काऊ कपडे पहने होंगे,  ना किसी को व्यभिचार उकसाया होगा, एक साथ साल की बच्ची निश्चित रूप से सेक्स का मतलब भी नहीं जानती होगी ,ना उसका शरीर ही इसे झेलने के लायक होगा. फिर  क्या मिला होगा उस  बच्ची से बलात्कार करके जिसने
 शायद ''बचाओ'' कहना भी ना सीखा हो . दरिदों ने ना केवल बलात्कार किया वरन  बलात्कार  के बाद हत्या कर दी, और तेज़ाब डालकर चेहरा बिगाड़ दिया,  डर होगा कि शायद बच्ची उन्हें  पहचान जाए और वे पकडे जाएंगे.
 
इस घटना  से यह स्पष्ट है कि उत्तराखंड  के चुनिन्दा लोगों के ह्रदय में  कानून  का ज़रा भी डर  नहीं रहा , और रहेगा भी क्यूँ ? उन्होंने अपने आस - पास ऐसे  सेकड़ों लोगों को घूमते हुए देखा होगा जो बिना किसी सुबूत के, बिना किसी गवाह के  अभाव में छूट जाते है,  जिनके आगे क़ानून ने भी अपने हाथ बाँध रखे हैं,  ऐसे लोगों का पुलिस भी कुछ नहीं बिगाड़ पाती है. इनकी
 पहुँच बहुत ऊपर तक हुआ करती है, ये लोग  कभी भी ,कुछ भी कर सकते हैं.
 
 . मासूम बच्चियों के साथ बलात्कार होता रहेगा ,बच्चियां मारी जाती रहेंगी , क्यूंकि इस देश
  एक आम इंसान  की लडकी होना, मतलब पैदा होने के साथ ही हर कदम पर संघर्ष हर कदम पर बलात्कार और इससे भी जी ना भरे तो मौत के लिए तैयार रहना है . 

11 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ दरिंदे आज भी इस तरह से खुले घूम रहें है और कोई उनका कुछ बिगाड़ नही पा रहा है बड़ी ही सोचनीय स्थिति है..सरकार और सामाजिक संस्थान भी उचित न्याय दिलाने में असफल है ..प्रशासन इसे गंभीरता से ले अन्यथा ऐसे खुले घूम रहे आदमी के रूप में जानवर और लोगों को नुकसान पहुँचा सकते है..

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  2. दरिंदगी का क्या कहा जाये..सिर्फ उत्तराखण्ड क्यूँ, पूरी दुनिया में इसके नमूने हैं...दुखद!!

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  3. ऐसे दरिन्दों को तो.......

    दुखद एवं मार्मिक घटना

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  4. इस दानव प्रवृति को क्या कहें ...बहुत ही शर्मनाक

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  5. ये ही घटना दिल्ली या मुंबई में किसी हाई प्रोफाइल परिवार की बच्ची के साथ घटी होती तो पूरा देश हिला कर रख दिया जाता...सीएम से लेकर पीएम तक नोटिस लेते...

    लेकिन ये बच्ची डाउन टाउन ख़बर है...और मार्केट शास्त्र में डाउन टाउन के लिए कोई जगह नहीं है...

    जय हिंद...

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  6. दुखद घटना मेरे गांव में भी घट चुकी है लगातार पाँच मासुम बच्चियों के साथ बलात्कार एंव हत्या, लेकिन कुकर्मी अभी तक नही पकड़ा गया। पुलिस की फ़ाईल बंद हो चुकी है। ये राक्षस हर जगह मौजुद है मुखौटा बदलकर.....

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  7. मैं जब ऐसी घटनाएं पढता सुनता हूं तो सिर्फ़ एक ही विचार मन में आता है कि इनके दोषियों का जिस दिन पता चल जाए उसी दिन उसे कुत्ते की मौत मारना चाहिये और ऐसा उस जैसे हरेक के सा होना चाहिये..इससे कम कुछ नहीं ....
    मन दुख गया पढ के ,....और आग और भडक उठी है ...

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  8. करुण दास्तान ...
    हैवान है जो देश को चारागाह समझ बैठे ...
    अफ़सोस ! संसद से सड़क तक ऐसे ही हैवान
    आज मौजूद हैं ...

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  9. इन्‍हें ऐसी सजा मिलनी चाहिए जो दूसरों के लिए एक सबक बन सके । ऐसे बीमार लोगों की संख्‍या में इजाफा हो रहा है । वजह ?

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  10. ऐसे दरिन्दे बहत हैं समाज में.... पर उनका हल क्या है? क्या किया जा सकता है?

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  11. देरी से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ....

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