शुक्रवार, 21 मई 2010

छठा वेतनमान, सेल्स वालों का आक्रमण और छठी का दूध

साथियों, वर्तमान भारत में  तीन तरह के लोग हैं| एक वे जिन्हें छठा वेतनमान मिल चुका है, दूसरे वे जिन्हें अभी  नहीं  मिला  है लेकिन निकट भविष्य में मिलने की संभावना है और तीसरे वे जिन्हें किसी भी प्रकार का वेतनमान    कभी  मिला था और न ही कभी मिलेगा|

 

छठा वेतनमान किसे  मिलना चाहिए और किसे नहींयह फ़ैसला करने में सरकार एक बार को भ्रमित हो सकती है लेकिन   अन्य विभागों के कर्मचारी इस विषय में फ़ैसला करने में एक मिनट की भी देर नहीं लगाते कि मास्टरों को यह किसी भी हालत में नहीं दिया जाना चाहिए| इसमें सभी वर्गों के मास्टर आ जाते हैं| डिग्री वाले किसी मुगालते में न रहें| उच्च शिक्षा से जुड़े होने  के  कारण  इस लिस्ट में भी उनका नाम सबसे ऊपर है|

 

इन लोगों का यह भी मानना है कि शिक्षण कार्य को कार्य की श्रेणी से निकाल देना चाहिए| काम तो वह होता है जो उनके विभाग में होता हैसभी धर्मों के मतावलंबी इस विषय में समान राय रखते हैं| कभी-कभी तो ये इतने आक्रोशित हो जाते हैं कि लगता है कि निकट भविष्य में यदि इन्हें हड़ताल करने का कोई कारण नहीं मिलेगा तो ये इसी विषय पर हड़ताल कर सकते हैं

 

विभिन्न लोगों की इस विषय में विभिन्न धारणाएं हैं| एक पक्ष यह मानता है कि मास्टरों को सिर्फ़ वेतन मिलना चाहिए, मान नहींदूसरा पक्ष मानता है कि मास्टरों को सिर्फ़ मान मिलना चाहिएवेतन नहीं| तीसरे वे लोग हैं जो ये मानते हैं कि मास्टरों को न मान मिलना चाहिए और न ही वेतन| चूँकि इनके बच्चे सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ते इसीलिये ये मानते हैं कि मास्टर बच्चों को विद्या का दान करे और खुद घर-घर से दान मांग कर अपना जीवनयापन करे| वह ज़िंदगी भर दरिद्र रहे और उसके शिष्य अमीर  बनकर उसका नाम रौशन करते रहें|

 

'घायल की गति घायल जाने ..........', अतः वे लोग मेरी व्यथा नहीं समझ सकते जिन्हें इस वेतनमान के कारण अपनों की उपेक्षा का दंश न झेलना पड़ा होइसने मेरे पड़ोसियों को मुझसे दूर कर दियाआपस में बरसों से चला आ रहा कटोरी तंत्र, अर्थात कटोरियों में सब्जियों  का आदान-प्रदान, बंद हो गयामायके वालों ने और भाइयों ने टीका भेजना बंद कर दियाबरसों से लिफ़्ट दे रहे भले-मानुसों ने नज़रें चुराना शुरू कर दिया| मकान मालिक ने किराया बढ़ा दिया| दुकानदारों ने अचानक उधार देने पर रोक लगा दी| वर्गभेद की खाई को पाटना एक बार को संभव हो सकता है, लेकिन इस वेतनमान के द्वारा पैदा की गई खाई को पाटना असंभव है|

 

कहते हैं कि मुसीबतें चारों ओर से आती हैं| छठा वेतनमान क्या मिला, इन मुसीबतों ने सेल्स-मैन या गर्ल का रूप धर कर आये दिन दरवाज़ों पर  दस्तक देना आरम्भ कर दिया| जिस वर्ग का मानना है कि मास्टरों को सिर्फ़ वेतन मिले, वह यही वर्ग हैपहले जो छठे-छमाहे हमारे सरकारी स्कूलों का रुख किया करते थेवह भी नाउम्मीदी के साथ, अब हर दूसरे दिन बड़ा सा बैग कंधे पर लटकाए नमूदार हो जाते हैं| ये स्वयं को सेल्स-मैन या सेल्स गर्ल कहने के बजाय किसी नामी-गिरामी इंस्टिट्यूट के प्रशिक्षु कहते हैं और प्रोडक्ट बेचने को अपना असाइंमेंट बताते हैं| इस असाइंमेंट को पूरा करने, अर्थात अपने पास होने की ज़िम्मेदारी वे बड़े आराम से हमारे ऊपर डाल देते हैं| हम, जो कि अपना पाठ्यक्रम पूरा करने में अपनी सहायता नहीं कर पातेउनको पास करवाने की भरसक कोशिश करते हैं|

 

हालांकि यह बात भी सत्य है कि मास्टर की जेब से पैसा निकलवाना बहुत कम लोगों के भाग्य में होता है| सच्चा मास्टर वही होता है जो बैग में बंद हर प्रोडक्ट को खुलवा कर देखे, जांचे, परखे, पंद्रह मिनट तक चला कर देखे, चारों दिशाओं से ठोक-पीटकर, ज़मीन पर पटककर  उसकी मजबूती का आंकलन करे, उपयोगिता और अनुपयोगिता पर पूरे घंटे भर तक चर्चा करे, घर वालों से फ़ोन पर मशविरा करे और जब सेल्स मैन की आँखों में आखिरकार प्रोडक्ट बिक जाने की चमक तैरने लग जाए और वह पर्ची काटने के लिए नाम पूछे, ठीक उसी समय अपना सिर इंकार में हिला दे|

 

इधर इस धंधे में भी मिलावटी लोग आने लगे हैं, जो कुछ न बन पाने के कारण इस पेशे में आ गए हैं| ये लोग बिना जांचे-परखेफट से नोट निकाल कर सामने रख देते हैं| ऐसे नकली मास्टरों की वजह से शिक्षा-विभाग की छवि बिगडती जा रही है| बड़े अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि मैं भी इनमें से एक हूँ| अभी तक मेरे घर में इन सेल्स वालों की बदौलत कैल्क्यूलेटरच्यवनप्राश, कटलरी-सेट, कैसरोल, मच्छर भगाने की मशीन, मोमबत्ती-स्टैंड, सिर की मालिश करने वाला यंत्र, शहद की बोतलें, मोज़े, रुमाल, सौना-बेल्ट, जैकेट, ट्रैवल-बैग और दो फाइनेंस कंपनियों के म्युचुअल-फंड बौंड आ चुके हैं|

 

कुछ सेल्स वाले हमेशा याद रहते हैं, ख़ास तौर से हसीन और खूबसूरत सेल्स-गर्ल्स| जाड़ों के दिनों में ज़ुकाम होने पर भाप लेने का यंत्र बेचने वाली वह ख़ूबसूरत लडकी हमेशा याद रहेगी| ख़ुद उसे ज़ुकाम था, जिस कारण वह इशारों-इशारों में हमें उस यन्त्र की खासियत बता रही थी| सुन्दर लडकियां झूठ नहीं बोलती होंगी यह सोचकर सबने उस यंत्र को मिनटों में खरीद लिया| आख़िर हमारे घरों में अधिकतर वस्तुएं, टी. वी. के माध्यम सेसुंदरियों की सिफारिश के चलते लाई जाती हैंउसने बार-बार कहा कि मार्केट में यह यंत्र आपको इससे दुगुनी कीमत में मिलेगाएक-आध लोगों ने दबे-छिपे स्वरों में कहा भी कि जब हमें ज़रुरत ही नहीं है तो मार्केट से हम इसे क्यों खरीदेंगे? लेकिन इस तरह की हवा में तैरती अफवाहों को उसने अनसुना कर दिया| सच्चा सेल्सपर्सन वही है जो आपको कुर्सी पर बैठे-बैठे बाज़ार की सैर करवाए और दिखाए कि बाज़ार में यह प्रोडक्ट वाकई दुगुनी कीमत में मिलता है और हम उसे सिर्फ़ इसलिए खरीदें कि यह यहाँ आधी कीमत में मिल रहा है|

 

कुछ वस्तुओं के खरीदे जाने की कहानी बहुत ही रोचक है, जिनमें से एक थी चमड़े की जैकेट| बेचने वाले सेल्समैन ने उसे लाइटर से जला कर दिखाया था| हमें उसने इस तरह से उसकी महिमा के बारे में बताया कि हमें यह विश्वास हो गया कि आत्मा के बाद अगर कोई वस्तु है तो यही जैकेट, जिसे न पानी गला सकता है और न ही आग जला सकती है| यह अजर अमर है| घर आकर बड़े ही शान के साथ घरवालों के सामने रौब गांठकर कि है कोई माई का लाल जो इतनी सस्ती जैकेट खरीद के दिखा दे, उसे खोलने लगे और खोलने के बाद यह राज़ खुला कि दिखाने की जेकेट अलग होती हैं और बेचने की अलग| जगह-जगह से कटी हुई जैकेट जाड़ों का पूरा मज़ा लेने के लिए बनाई गई थीवो मास्टर ही क्या जो आसानी से स्वयं को ठगे जाने दे, यह सोचकर उसके दिए हुए नंबर पर उसे फ़ोन मिलाया तब दूसरे राज़ का फाश हुआ कि बेचने के पहले और बेचने के बाद नंबर अलग-अलग हो जाते हैं|

 
बढ़ती हुई कमर के घेरों को  बिना पसीना बहाए कम करने के प्रोडक्ट  अन्य  सभी आइटमों पर भारी पड़ेयूँ लगा जैसे  हम भारतीयों के मोटा होने से सिर्फ़ ओबामा ही चिंतित नहीं है| सौना-बेल्ट के नाम से हमने सोचा कि यह सोने का अंडा देने वाली मुर्गी हमारे हाथ लग गई है, सो एक ही दिन में उसका पेट फाड़ कर सारे अंडे बाहर निकालने की तर्ज़ पर एक ही दिन में दो घंटे तक पेट पर लगा दिया| फलस्वरूप जली हुई त्वचा को लेकर डॉक्टर के पास जाकर मरहम पट्टी करवानी पड़ी, कई सालों के लिए दाग पड़े सो अलग|

 

घुटने के दर्द से आराम पाने के लिए एक गाड़ी-नुमा यंत्र बेचने वाली उस लडकी ने खुद सबके घुटनों पर उसे चला कर दिखाया| साथ ही बार-बार वह कहती भी जा रही थी कि यह तो बच्चों का खेल है| हमने सोचा आज नहीं तो कल हम सभी को इस घुटने के दर्द के आगे घुटने टेकने होंगे और सबने एक-एक पीस खरीद लिया| एक हफ्ते बाद जब वह चलते-चलते अचानक रुक गई तब समझ में आया कि उसके कहने का मतलब यह था कि आने वाले दिनों में बच्चों के खेलने के काम आएगी|

 

बाल काले करने वाला वह सेल्समैन बड़े-बड़े मार्केटिंग वालों को पछाड़ने की क्षमता रखता था| उसने हमसे कहा कि यह तेल मैं आपको इस साल फ़्री में दे रहा हूँ, पैसे लेने अगले साल आऊंगा जब आप लोगों के बाल काले हो जाएँगेदुनिया जानती है कि हमारी नसों में खून के साथ जो इकलौता शब्द दौड़ता है वह शब्द है फ़्री और इस दबी हुई नस को पकड़ना ये सेल्समैन बखूबी जानते हैं| यहाँ तक कि ठेले वाले भी हमारे इस मनोविज्ञान को समझते हैं| सीधे-सीधे पाँच रूपये किलो टमाटर न कहकर दस का दो किलो कहते हैं| ठेले वालों को फटकारने की सुविधा जहाँ हमारे पास रहती है वहीं इन सेल्समैन के मुँह से 'एक के साथ एक फ्रीसुनने से दिल को सुकून हासिल होता है| सभी ने तेल की शीशियाँ झपट लीं| कईयों ने सील खोलकर सिर पर भी चुपड़ लिया| ऐन छुट्टी के समय, जब हम जाने लगेउसने अपना तुरुप का इक्का चला कि यह तेल तभी काम आएगा जब इसमें यह २०० रुपयों का पाउडर मिलाया जाएगामैं आपसे कुछ नहीं ले रहा हूँ, यह तो पाउडर के पैसे हैंबस पकड़ने की जल्दी, शीशी की सील खोल देने और बहस करने का समय नहीं मिल पाने के कारण  सभी को दौ सौ रूपये ढीले करने पड़े

 

शहद बेचने वाले वह बुजुर्गवारजिनकी शहद जैसी ज़ुबान और बुढ़ापे पर तरस खाकर हमने डेढ़ सौ रूपये में दो किलो शहद खरीदा उस शहद को बच्चों ने चखकर और चींटियों ने सूंघकर छोड़ दिया| चश्मा बेचने वाले वे दो सज्जन इतने प्यार से चश्मा पहना जाते थे कि मना करने का सवाल ही नहीं उठता था| वे हर तीन महीने में आकर हमारा पुराना चश्मा ले जाते और मात्र दो-तीन सौ रुपयों में नया चश्मा हमारी आँखों पर शोभायमान हो जाता| हमारे चश्मों का वह क्या करते थे, यह राज़ हम पर तब खुला जब एक दिन मीटिंग में हमारे पड़ोस के स्कूल की  अध्यापिका को अपना वही वाला चश्मा पहने हुए देखा| एक स्कूल से दूसरे स्कूल में चश्मों के आदान-प्रदान के द्वारा शायद वे  दृष्टिकोणों का आदान प्रदान किया करते  थे |

 

ऐसा नहीं है कि हम अनजान लोगों द्वारा ठगे जाते हैं| कोई न कोई सेल्समैन किसी न किसी अध्यापक के गाँव का ज़रूर निकल जाता है| अपने गाँव वाला कोई परदेस में मिल जाए तो हम बहुत खुश हो जाते हैं| गाँव में चाहे उसे कभी घास भी न डाली हो लेकिन इस समय वह सगे से भी बढ़कर हो जाता है| हम खुद तो ठगे जाते ही हैं साथ में और लोग भी ठगे जा सकें, इसका भरपूर प्रयास करते हैंयूँ एक बार मैंने एक सेल्सगर्ल की पोल खोलने का असफल प्रयास भी किया था| सी. आई. डी. की तर्ज़ पर  मैंने उससे पूछा कि आजकल कौन है तुम्हारे मार्केटिंग विभाग का एच . ओ. डी? मैंने सोचा कि यह घबरा जाएगी, तब मैं इसकी असलियत जान जाउंगी| लेकिन आत्मविश्वास के मामले में वह लडकी किसी से कम नहीं थी| बोली, "मैं तो छः महीने से फील्ड में हूँ| आजकल कौन है मुझे नहीं पता, पहले नीलम मैडम थीं|" मैं निरुत्तर  हो गई| सेल्समैन से जहाँ हम घंटों तक माथापच्ची करने की क्षमता रखते हैं, वहीं सेल्सगर्ल की बातों से हम एक दो बार में ही कन्विंस हो जाते हैं

 

इन सेल्स वालों की सताई हुई, मैं अक्सर सोचती हूँ कि न यह छठा वेतनमान मिला होता न ही मुझे इन प्रोडक्ट्स को सँभालने में छठी का दूध याद  आता|  

26 टिप्‍पणियां:

  1. हा हा हा.. बहुत ही रोचक लगी ये दास्ताँ.. वेतनमान से लेकर सेल्स मैं और गर्ल्स तक.. लेकिन आप इतने धोखे खाती कैसे रहीं एक के बाद एक?? :) एक बात और मैम.. ये Arial Unicode MS ब्लॉग में कैसे अटैच करते हैं? २ महीने से परेशान हूँ इस फॉण्ट में लिखने के लिए पर कोई बताता ही नहीं.. :(

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  2. कहने का मतलब यह था कि आने वाले दिनों में बच्चों के खेलने के काम आएगी|'
    चलो किसी के काम तो आएगी. वर्ना ---
    हम भी मास्टरों की श्रेणी में ही आते हैं इसलिए इस दर्द का एहसास हमें भी है.

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  3. बधाई हो छठा वेतनमान मिलने के लिए । मैने तो सुना है कि अमीरी आती है तो दोस्तों की संख्या बढ़ जाती है , शायद वो आपको सेल्स वालों ( मेरी नज़र मे स्मार्टेस्ट पीपुल ऑन द प्लानेट ) के रूप मे मिल रहे हैं ।

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  4. बहुत ही भीषण लेखन....का कहें मास्टरनी को. छा गईं.

    तीसरे वे जिन्हें किसी भी प्रकार का वेतनमान न कभी मिला था और न ही कभी मिलेगा- हम इसमें आते हैं..मगर फिर भी जाने क्यूँ पूरा पढ़ते चले गये.

    सुन्दर लडकियां झूठ नहीं बोलती होंगी यह सोचकर सबने उस यंत्र को मिनटों में खरीद लिया : बहुत भयानक भ्रम है जिसका भुगतान आज तक भुगत रहे हैं. :)

    सौना-बेल्ट के नाम से हमने सोचा कि यह सोने का अंडा देने वाली मुर्गी हमारे हाथ लग गई है, सो एक ही दिन में उसका पेट फाड़ कर सारे अंडे बाहर निकालने की तर्ज़ पर एक ही दिन में दो घंटे तक पेट पर लगा दिया| फलस्वरूप जली हुई त्वचा को लेकर डॉक्टर के पास जाकर मरहम पट्टी करवानी पड़ी, कई सालों के लिए दाग पड़े सो अलग- मेरी कहानी काहे सुना रही हो पब्लिकली जी. :)


    एक स्कूल से दूसरे स्कूल में चश्मों के आदान-प्रदान के द्वारा शायद वे दृष्टिकोणों का आदान प्रदान किया करते थे-हा हा!!


    -इत्ती लम्बी टिप्पणी न मैने कभी दी, न देता हूँ मगर सेल्स गर्ल जो न करा जाये!! :)

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  5. हम लोग तीसरी श्रेणी के लोगों में हैं। सेल्स वालों को टरकाने का अच्छा अभ्यास हो गया है। माल वहीं से खरीदते हैं जहाँ शिकायत कर सकते हैं और जो हमारी शिकायत से भय खाता है।

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  6. उत्कृष्ट पोस्ट -मैं भी एक भुक्तभोगी की जिन्दगी जी रहा हूँ -समाज निकाला दिया जा चुका है -सबसे कठिन जाति अवमाना!

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  7. सब सेल्‍समैनों, सेल्‍सगर्ल्‍स, सेल्‍सब्‍याओं, सेल्‍ससेल्‍स के लिए उपयोगी आलेख। आप इसे व्‍यंग्‍य और सच्‍चाई कहकर निकल लें। जरूर कोई हुनरमंद विक्रेता इसके प्रिंट निकालकर बेचने वालों को बेच जाएगा। जिसको जो तरकीब नहीं आती, वो उसे आज ही आजमाएगा। इसके होने वाली धोखाधड़ी की जिम्‍मेदारी आपकी ही होगी। बच्‍चों को जो सिखाना चाहिए, वो नहीं। बड़ों को जो सिखाना नहीं चाहिए, वही। अब देखना लोग कैसे लुटते हैं।

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  8. दो मास्टर रोज़ स्कूल के बाद साइकिल से घर लौटते थे...रास्ते में बिड़ला जी की कोठी आती थी...दोनों बड़ी हसरत से उस कोठी की ओर देखते...एक दिन एक मास्टर बोला...बिड़ला जी की सारी प्रॉपर्टी, बिज़नेस, फैक्ट्रियां मुझे मिल जाएं तो मैं बिड़ला जी से ज़्यादा कमा कर दिखा दूं...इस पर दूसरा मास्टर बोला...ये कैसे हो सकता है, भई...चल मान लिया तूझे बिड़ला जी का सब कुछ मिल गया, तो तू ज़्यादा से ज़्यादा बिड़ला जी जितना ही कमा लेगा, भला उनसे ज़्यादा कमाई कैसे करेगा...पहला मास्टर बोला...रहा न बावलीपूछ का बावलीपूछ, साथ में हर महीने दो ट्यूशन नहीं करूंगा क्या...

    जय हिंद...

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  9. छठे वेतनमान का ऐसा फायदा ...अपना पता दीजिये ...कुछ बीमा कंपनी वाले मांग रहे थे ...:):)
    हमेशा की तरह धारदार शानदार व्यंग्य ...!!

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  10. ये Arial Unicode MS ब्लॉग में कैसे अटैच करते हैं?
    ये हम भी जानना चाहेगें

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  11. लिजिए हम तो आये थे ये सोच के कोई हमारी व्यथा का साथी है पर आप तो दूसरी ही परेशानी का शिकार हैं। हमें अभी छठा वेतनमान नहीं मिला है इस लिए सेल्समेन या गर्ल्स परेशान नहीं करते। वैसे सिर की मालिश करने वाले यंत्र का अनुभव कैसा रहा वो भी तो बताइए, इसके बारे में हमें जानकारी नहीं थी

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  12. अजी इन वेतनमानों का क्‍या है आज मिला है (इनका प्रभाव) कल खत्‍म हो जाएगा... हमें कल मिला था आज खत्‍म हो गया... वेतन अपनी सापेक्षिक औकात को प्राप्‍त कर लेता किंतु खर्चे अपने एब्‍सॉल्‍यूट मूल्‍य में बने रहते हैं आप वापस अपने वास्‍तविक वर्ग में जा टिकते हैं तथा अगले आठ साल तक सातवें वेतनमान की प्रतीक्षा करते हैं।

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  13. http://hisalu.com से खोजता हुआ यहाँ तक पहुंचा। वाह मजा आ गया। आप तो हमारे ही शहर और हमारे ही मिजाज की लेखिका है।

    क्या खूब लिखा।

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  14. हमारे पास तो चार चार कुत्ते (वैसे ! चारों मेरे बेटे हैं...) हैं.... उनका साइज़ ही देख कर सब सैल्समैन भाग जाते हैं.... और हमने घर बाहर बोर्ड भी लगा रखा है " Salesperson and pigs are not allowed.." हसीं सेल्स गर्ल्स और गर्ल्स ख़ुद ही हमारी स्मार्टनेस देख कर कॉम्प्लेक्स में आ जातीं हैं.... तो वैसे ही भाग जातीं हैं.... ही ही ही ही ....

    आपका व्यंग्य बहुत अच्छा होता है....

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  15. jab jab apni surat "sharma ji se poocho..." vale sharma ji ki tarah ho jati hai to tabassum dhoondhne ke liye aap hi ke blog ka sahara hota hai ,........

    इन सेल्स वालों की सताई हुई, मैं अक्सर सोचती हूँ कि न यह छठा वेतनमान मिला होता न ही मुझे इन प्रोडक्ट्स को सँभालने में छठी का दूध याद आता|

    aap fik,r naa karen aap kharidte rahen sambhalne ke liye hum hai

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  16. .
    छठे वेतनमान पर ऎसी मौज़ ?
    वाह भई वाह, मान गये मास्टरनी जी ।

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  17. @दीपक जी, अनीता कुमार जी,

    'ब्लॉग में अटैच' करने से आपका क्या तात्पर्य है, कुछ साफ़ नहीं हुआ| पुरे गूगल (Google) जगत - Gmail, Blogspot, इत्यादि - में रोमन में हिंदी लिखने कि सुविधा है, यह तो आपको ज्ञात ही होगा| इस लेखन को जब माइक्रोसौफ्ट (Microsoft) जगत में डालने हेतु 'Arial Unicode MS' नामक font का चयन उस प्रोग्राम (MS Word, Excel इत्यादि) करना चाहिए, अन्यथा आपका लिखा स्पष्ट नहीं होता|
    वैसे मैं ई मेल के द्वारा पोस्ट पब्लिश करती हूँ, शायद इसीलिये यह संभव हो पाता हो|
    आश ा है आपको कुछ मदद मिलेगी|

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  18. हम तो शुद्ध सरकारी मुलाजिम हैं। इसलिए वेतनमान मिल ही जाता है। लेकिन मैं ऐसे विक्रेताओं को सुनने और समझने का मौका ही नहीं पाता। ये मुई नौकरी इधर-उधर डोलने ही नहीं देती। उन्हें टाइम खोटी न करने की सलाह देकर चलता कर देता हूँ।

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  19. ..वर्गभेद की खाई को पाटना एक बार को संभव हो सकता है, लेकिन इस वेतनमान के द्वारा पैदा की गई खाई को पाटना असंभव है|

    .. मास्टर की जेब से पैसा निकलवाना बहुत कम लोगों के भाग्य में होता है|

    ..एक स्कूल से दूसरे स्कूल में चश्मों के आदान-प्रदान के द्वारा शायद वे दृष्टिकोणों का आदान प्रदान किया करते थे |

    ..व्यंग्यात्मक शैली में सुंदर पोस्ट. कुछ पंक्तियाँ जिसने अधिक प्रभावित किया, कटपेस्ट कर दिया. बधाई.
    मैं भी इन सेल्स मैनों के चक्कर में मूर्ख बन चूका हूँ ,,वह भी छठे वेतनमान से पहले..!

    एक ने मुझे मच्छर मारने का यन्त्र, यह भरोसा दिला कर बेच दिया कि इसको लगाएंगे तो सारे मच्छर इसकी रौशनी में आ कर खूब ब खुद मर जायेंगे...! रात भर मैं मच्छरों से खुद को इस उम्मीद में कटवाता रहा कि कमसे कम एक मच्छर तो मरे और पैसा सूल हो.. मगर हाय रे किस्मत..! एक भी मच्छर नहीं मरा.

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  20. शानदार लेखन है. पढ़कर बहुत आनंद आया. पिछले कई दिनों से आपका लिखा हुआ पढ़ रहा हूँ और समझ रहा हूँ कि इतने दिनों तक क्या मिस किया.

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  21. इन सेल्स पर्सन को न तो सम्मानजनक वेतन मिलता है, न मान |

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  22. bahut achcha likha hain appne. kabhi samay mile to hamare blogs http://1minuteplease.blogspot.com and http://howmuchuknow.blogspot.com par visit karyega.

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  23. सैल्समैन और सैल्सगर्ल्स का गुस्सा आपके छठे वेतनमान वाले लेख को पढकर सातवें आसमान पर पहुँच गया होगा , परन्तु वे लोग इसलिए थोडा खुश होंगे क़ि पांचवे वेतनमान तक उनकी चालाकी को कोई पकड़ नहीं पाया, और सैफाली मैडम भी छठे वेतनमान के वेतन और एरियर से ढेर सारे अनुपयोगी प्रोडक्ट्स खरीदने के बाद ही उनमें से कुछ की चालाकी पकड़ पाई हैं , अन्यथा वे जरूर सबके बारे में बताती !

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