सोमवार, 5 नवंबर 2012

ऐसे उगता है पैसों का पेड़ ........

ऐसे उगता है पैसों का पेड़ ........
 
जब
कोयले की खान से
हीरे निकलने लगते  हैं
दो पैर वाले
बैसाखियों के सहारे
चलने लगते हैं
पलक झपकते ही 
खेती की ज़मीन पर  
भवन खड़ा हो जाता है    
ठीक उसी मौसम में
एक विचित्र सा पेड़ 
उग जाता है । 
यही वह पेड़ है
जिस पर पैसे उगते हैं
इसके आगे बड़े - बड़ों के सर
श्रद्धा से झुकते हैं ।
आम आदमी की
महंगाई से पलीद हो गयी
मिट्टी में यह खूब
फलता - फूलता है
उसकी आँखों से बरसता पानी
सीधे इसकी जड़ों तक
पहुँचता है
चेहरे पर जब रोज़ उसके
हवाइयां उड़ने लग जाती हैं
वही हवा इसके
बढ़ने के बहुत काम आती है ।
 
उसकी
छटांक भर उम्मीद की
रोशनी से यह
सालों - साल जिंदा रहता है
देश - काल - परिस्थिति
के अनुसार अपना रंग बदल लेता है 
 
इसकी छाया से बड़ी
इसकी माया होती है
इसको पनपने के लिए
ख़ास आबोहवा की
दरकार होती है
उसी के आँगन में पनपता है
जिसकी सरकार होती है ।
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

7 टिप्‍पणियां:

  1. इसको पनपने के लिए
    ख़ास आबोहवा की
    दरकार होती है
    उसी के आँगन में पनपता है
    जिसकी सरकार होती है ।

    बहुत सटीक.....

    रामराम.

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  2. उसकी
    छटांक भर उम्मीद की
    रोशनी से यह
    सालों - साल जिंदा रहता है
    देश - काल - परिस्थिति
    के अनुसार अपना रंग बदल लेता है
    एक नंबर की कविता :)

    जवाब देंहटाएं
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    badhai

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