प्रस्तुत है कोरोना पर कविता, श्रोताओं की भारी डिमांड पर -
इस कोरोना काल में
महामारी के जाल में
नित नई फरमाइशें हैं
नित नई ख्वाहिशें हैं |
सुबह को खाने हैं समोसे
दिन को मीठी - मीठी खीर
शाम को गर्मागर्म पकौड़े
रात को शाही पनीर |
सबसे ज़्यादा टूटा है
महिलाओं पर इसका कहर
बीत रहे रसोई में दिन
रसोई में ही बीते सहर |
दुनिया से हो गयी हूँ आइसोलेट
हूँ रसोई में कवारंटीन
पैर पडूँ तुम्हारे कोरोना
जाओ तुम वापिस अपने चीन |
महिलाएं घर पर हैं सही है। पुरुषों को भी काम पर लगाया जा रहा है :)
जवाब देंहटाएंवैसे आप अपनी रचना के साथ अवतरित हुई कोरोना के बहाने ये भी कम है क्या? आते रहिये। लगातार कुछ ना कुछ लेकर।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (01-07-2020) को "चिट्टाकारी दिवस बनाम ब्लॉगिंग-डे" (चर्चा अंक-3749) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
मोर्चा तो वैसे महिलाओं ने ही संभाला ही है हैल्थ से वैल्थ तक
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना
सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंधन्यबाद आपका,मैं भी आपका एक पाठक हूँ|लिखती रहें|
आपने बहुत ही शानदार पोस्ट लिखी है. इस पोस्ट के लिए Ankit Badigar की तरफ से धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंवाह। बहुत सूंदर
जवाब देंहटाएंNice Blog. Keep it up.
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