गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019

कितना मुश्किल है बच्चो !

दस दिवसीय सेवारत प्रशिक्षण के पश्चात प्राप्त ज्ञान |   

हमने जाना बच्चों !
कितना मुश्किल होता है 
फिर से बच्चों जैसा बनना | 

हमने जाना बच्चों !
कितना उबाऊ होता है 
किसी लेक्चर को सुनना 
सुबह से लेकर शाम तक 
एक मुद्रा में बैठे रहना 
एक के बाद एक लगातार 
एक सी बातें सुनते रहना | 

हमने जाना बच्चों !
कि तुम्हारा तन और तुम्हारा मन 
कक्षा से क्यों जी चुराता है 
पढ़ने - लिखने से ज़्यादा मज़ा 
गाने, बजाने और चुटकुले 
सुनाने में आता है | 

हमने जाना बच्चों !
क्यों तुम सरपट दौड़ लगाते हो 
हर वादन के बाद फ़ौरन 
नल पर पाए जाते हो 
अनसुना कर देते हो घंटी को 
मुश्किल से कक्षा में आते हो 

हमने जाना बच्चों !
कि कभी - कभी तुम क्यों 
बेवजह कक्षा में खिलखिलाते हो 
बोलते रहते हैं हम, और तुम 
जाने किन - किन बातों पर 
मंद - मंद मुस्काते हो 
कितना भी टोकें हम तुम्हें 
तुम बाज़ नहीं आते हो | 

हमने जाना बच्चों !
क्यों तुम कभी - कभी 
भूल गए कॉपी, नहीं लाए किताब 
खत्म हो गयी पैन की रीफिल 
जैसे बहाने बनाते हो 
चूर हो गए थक कर 
सिर्फ दस दिनों में हम 
तुम रोज़ इतना काम 
जाने कैसे कर पाते हो ?

हमने जाना बच्चों !
बंधी - बंधाई लकीरों पर चलना 
सुनना, पढ़ना, लिखना 
लिखे हुए को प्रस्तुत करना 
कितना मुश्किल होता है बच्चों !
फिर से बच्चों जैसा बनना | 

10 टिप्‍पणियां:

  1. बाल मनोविज्ञान की सटीक अभिव्यक्ति।
    एकदम सही कहा।

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  2. वाह ! जब खुद पर पड़ती है तो ही सत्य का अनुभव होता है

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  3. काफी लम्बे अर्से के बाद। बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  4. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 08/02/2019 की बुलेटिन, " निदा फ़जली साहब को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  5. वाह सच मे बच्चो का बचपना छीना जा रहा है भारी बस्तों के नीचे डाब गए है ।बाल मनोविज्ञान पर जरूरी और असरदार लेखन 👌

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  6. सच में बहुत मुश्किल होता है। सुन्दर रचना।

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  7. बहुत अच्छा लेख है Movie4me you share a useful information.

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