मंगलवार, 31 मार्च 2009

माधवी, कमला या सुरैय्या ......जन्मदिन मुबारक ....

जन्मदिन है आज उसका ....उसने पचहत्तर वर्ष पूरे कर लिए...वो जिसकी हर कविता ने मुझे झिंझोड़ कर रख दिया था ...जिसकी हर कविता मानो संवाद स्थपित करती हो ...मानो जैसे हर भारतीय औरत की दास्तान हो ...शब्द दर शब्द दिल में उतरते चले जाते हैं..."I studied all men, I had to" …..

"what women expect out of marriage and what they get"

"why more than one husband?"

मैं बात कर रही हूँ ...मधावीकुट्टी उर्फ़ कमला दास उर्फ़ सुरैय्या की ...

जिसने स्वीकार किया बेबाकी, ईमानदारी से अपने संबंधों को ..."मुझे अपने अतीत पर कोई क्षमा नहीं चाहिए, क्यूंकि मुझे पता है कि सुन्दर इस संसार में मैंने जीवन को सुन्दरता से जिया है"

उनकी अधिकाँश कविताओं की विषय वस्तु प्यार की अपूर्णता और प्यार पाने की लालसा है ...सोलह वर्ष की अल्पायु में विवाहित और स्वयं को खोखले संबंधों, जिन्हें वह किसी भी आम भारतीय नारी की तरह तोड़ नहीं सकी, में बंधा पाकर कमला दास की कहानी जिसे उन्होंने 'माई स्टोरी' में कलमबद्ध किया, बेहद सनसनीखेज होने के बावजूद मार्मिक है .These men who call me /beautiful, not seeing/me with eyes but with hands/and,even…even…love.

पुरुष प्रधान समाज के विरुद्ध विद्रोह ने उन्हें एक वैयक्तिकता, उत्साह, साहस और इन सबसे बढकर एक कविता प्रदान की Then…I wore a shirt and my /brothers's trousers,cut my hair short and ignored/My womanliness......उन्होंने परम्पराओं, बनी बनाई मर्यादाओं और मूल्यों को तोड़ा और आधुनिक जीवन दृष्टि को स्वीकार किया ...इसके लिए उन पर अश्लीलता के भी आरोप लगे ....परन्तु उन्होंने हमेशा यही माना कि भावनात्मक जुडाव के बिना सेक्स सम्बन्ध बंजर और बाँझ है ....वे खुद कहती हैं ....

"नैतिकतावादी इसे किसी भी नाम से पुकारें, ढाई अक्षर का यह शब्द 'प्रेम' सबसे सुन्दर है"

उन्होंने अपने भावप्रवण व्यक्तिगत संबंधों को आम सच्चाई में ढाला ...उनकी स्वयं की दुर्दशा और उनके कष्ट आम औरत के कष्ट बन गए ....कवियित्री के इसी रूप में कमला दास की श्रेष्ठता है....वह जितनी व्यक्तिगत हैं उतनी ही वैश्विक भी ...You called me wife/I was taught to break saccharine into your tea, and/to offer at the right moment the vitamins/cowering/beneath your monsterous ego.i ate the magic/ loof and/ became a dwarf….

भारतीय सन्दर्भ में असामान्य बेबाकी और स्पष्टवादिता से कमला दास प्यार की ज़रुरत महसूस करती है ... Vrindavan lives on in every woman's mind/and the flute,luring her/from home and husband …उनकी कविताओं में व्याप्त संवेदना की अनुभूति अभिभूत कर देती है ...जेन ऑस्टिन की तरह ही उनहोंने अपनी 'थ्री इनचेस ऑफ़ आइवरी' पर काम के द्वारा श्रेष्ठता हासिल की ...

जब भी उनहोंने विवाहेत्तर संबंधों की बात की तो उनका आशय ना तो दुराचार था, ना दाम्पत्य संबंधों को तोड़ना, ...वह केवल उस सम्बन्ध की खोज थी जो प्यार भी दे और सुरक्षा भी ...Another voice haunts my ear,another face/my dreams, but in your arms I must today /lie……

पंजाबी की अमृता प्रीतम को छोड़ दें तो अन्य किसी भारतीय कवियित्री ने इसे इतनी स्पष्टता से अभिव्यक्त नहीं किया ....

आइये उनकी लम्बी उम्र के लिए दुआओं में हाथ उठाएं ....

कुछ पंक्तियाँ मैंने तब लिखीं थीं जब उन्हें पढ़ने का अवसर मुझे मिला...

तुम माधवी हो

या कमला दास

या

सुरैय्या

क्या फर्क पड़ता है?

तुम्हारे और मेरे बीच

कई दशकों का फासला है

फिर भी

वही कहानी

वही किरदार

प्यास भी ज्यों कि त्यों है

 

इनकी तो पाठशाला ....मस्ती की पाठशाला

साथियों ...जब से मैंने ये सुना है कि रांची में राजनीति की पाठशाला है ...तब से दिमाग में खलबली मची थी ....कि वहां कौन कौन पढ़ाता होगा ...आप भी जानिए ...

 

लालू वहां के प्रोफेसर, पढ़ाएं मैनेजमेंट

बिहार से उखड़ा तम्बू तो,

दिल्ली में लगा लो टेंट

ऐ से ऐ राबड़ी, बी से भेंसुआ

सी से चारा

आओ बच्चों सीखें, कैसे करें घोटाला

करो घोटाला, जाओ जेल

भैंस ना मिले तो दुह लो रेल

 

प्रोफेसर इन वेटिंग हैं आडवाणी

सुर बदलती इनकी वाणी

जाएं पाकिस्तान बोलें,

जय हो जिन्ना भाईजान की

हिन्दुस्तान में बोलें

जय सियावर राम की

 

लेक्चरार हैं वहां अम्बुमणि

पटाखों की लम्बी लड़ी

हर बात पे फटने को तैयार

हर फटे में घुसने को बेकरार

 

अर्जुन सिंह वहां के डीन

सुनते बस मंडल की बीन

काबू से बहार इनके बच्चे

इनके संस्मरण इनसे अच्छे

 

मनमोहन वहां के एच. ओ. डी.

सुनते सबकी करते मैम के मन की

अनुशासन का ऐसा उदाहरण

पपेट शो का लाइव प्रसारण

 

लाइब्रेरियन है प्रियंका गाँधी

बस गीता पढ़नी जिसको आती

रोड पे चलता मेरा भैय्या

वरुण चले तो ता ता थैय्या

 

बहुत कठिन है एडमिशन

स्विस बैंक देता परमिशन

जिसके ज्यादा हों जितने खाते

उसके ही बच्चे प्रवेश पाते

 

एक मंजिल में पाठशाला

है दूजी में पागलखाना

है गेट दोनों का एक

युनिफोर्म एक सिलेबस एक

यह रांची की पुण्यभूमि

राजनीति की कर्मभूमि

दर्शन करने ज़रूर आना  ....शेफाली