बुधवार, 1 अप्रैल 2009

क्षणिकाएं

 
 
ना एकाउंट
ना एमाउंट
ना कोई कार्ड
किस्मत थी हार्ड
पढ़ा था अखबार
सुबह सुबह
पहुँच गए  
ऐ. टी. एम्.
 ऐसे बन गए
यारों फूल हम ....
 
रचनाधर्मी 
 
उन्होंने 
हर रचना को 
धर्म से जोड़ के देखा 
दूसरे धर्म की हर रचना को  
फाड़ा, जलाया, फेंका  
इसीलिए 
खुद को सदा 
रचनाधर्मी कहा ...