साथियों , टी. वी . पर जगमगाता हुआ , चमचमाता हुआ ये कौन सा ज़माना है जो पहली तारीख को खुश होता है , मीठा खाना खाता है ? क्या ये वाकई हमारे देश के एक आम आदमी के जीवन संघर्ष की सही तस्वीर पेश करता है ? 
  टी . वी . पर रोज़ रोज़ आते 
 विज्ञापन को देखकर 
 बेटे से रहा ना गया 
 बोला .................
 पापा , पहली तारीख को 
 मम्मी क्यूँ नहीं ऐसे 
 हँसती, खिलखिलाती 
 नाचती और गाती है ?
 क्यूँ नहीं,आपका हाथ पकड़कर 
  कभी बागों में घूमने 
 और कभी 
 सिनेमा देखने जाती है ?
 क्या हमारे घर पहली तारीख 
 कभी नहीं आती है ?
 सुनने पर उन्होंने बेटे से कहा 
 बेटा ! हमारे घर 
 अनगिनत बीमारियाँ 
 रिश्तेदारों की तीमारदारियां 
 बनिए की उधारियाँ 
 पहाड़ हो चुकी जिम्मेदारियाँ 
 सहमे हुए बच्चों की 
 टूटी फूटी फरमाइशें 
 पत्नी की अधूरी ख्वाहिशें  
 दोस्तों के ताने 
 पुराने दर्द भरे गाने 
 अनसुनी की गयी ज़रूरतें 
 घरवालों की बैचैन सूरतें 
 सपने में करोड़ों के प्रश्न 
 उधारी ले के भी जश्न 
 माहौल  में घुटन 
 रिश्तों में टूटन 
 सुरसा सी महंगाई 
 पड़ोसियों की जगहंसाई 
 मीलों लम्बे सन्नाटे 
 कर्जदारों की आहटें 
 अधूरी अधूरी सी चाहतें 
 मुट्ठी भर राहतें 
 राशन के बिल 
 बैठता हुआ दिल 
 माँ की लाचारी 
 गठिया की बीमारी 
 मरने की मनौतियाँ 
 खर्चों में कटौतियां 
 रिटायर्ड   बाप की बेबसी 
 जवान बेटी की 
 खोखली हंसी 
 इंटरव्यू के ढेरों लेटर 
 लिफाफों में फंसता मैटर 
 बेटे की नौकरी का इंतज़ार 
 दिन पर दिन 
 गहराता अन्धकार 
 घनघोर निराशा 
 जीवन से हताशा 
 नुवान की गोलियाँ 
 सल्फास की शीशियाँ 
 चोरी छिपे लाई जाती हैं 
 पहली तारीख के आने से 
 पहले ही 
 केलेंडर पर लिखी 
 देनदारियों पर नज़र टिक जाती है 
 जहां मीठे बोल बोले 
 बरसों बीत जाते हैं 
 मिलने वाले भी 
 कीडों वाली केडबरी ले के 
 चले आते हैं 
 उस घर में बेटे ! 
 जिन्दगी बीत जाती है 
 लेकिन 
 पहली तारीख कभी 
 नहीं आ पाती है ....
  
