बुधवार, 24 अप्रैल 2013

क्यूँ ???????????

क्यूँ ???????????

क्यूँ ........बहस हो दरिंदों की उम्र पर ? माफ़ी की बात हो नाबालिग होने पर ? आठ का हो या साठ का, क्यूँ ना हो सजा एक बराबर, एक ही अपराध पर ? वो तो कहते हैं आतंक का कोई रंग नहीं होता, मज़हब नहीं होता, धर्म नहीं होता है, फिर बलात्कारी की उम्र पर सवाल क्यूँ खड़ा होता है ?

क्यूँ .............हैवानों के चेहरों पर नकाब डलें रहें ? अपराध से सने चेहरे, खून से सने हाथ, दुनिया की नज़रों से छिपे रहें ? इनको बेनकाब क्यूँ नहीं करते ? असली चेहरा कैमरे के सामने क्यूँ नहीं रखते ?

क्यूँ .............मानवाधिकार की दुहाई दी जाए ? महीनों तक सुनवाई टाली जाए ? फांसी को उम्रकैद में बदलने की गुंजाइश रखी जाए ?हर कोर्ट में क्यूँ अपील करने की मोहलत दी जाए ?  चौदह साल तक जेल में रखकर मेहमाननवाजी करने का क्या मतलब  ? कसाई को क्यूँ जमाई बनाने के पीछे क्या मकसद ?

क्यूँ.............इनके लिए नियुक्त हों वकील ? क्यूँ सुनी जाए दलील ? अपराध क़ुबूल कर लिया, फिर क्यूँ मिले ढील ? जगह - जगह क्यूँ बदलें अदालतें ? क्यूँ बख्शी जाएं इन्हें सुनवाई की राहतें ? राक्षसों को पक्ष रखने का मौका क्यूँ मिले आखिर  ? जब सजा के सारे रास्ते साफ़ हैं, तब इतनी देर किसकी खातिर ?

क्यूँ ..........इनको मानसिक बीमार ठहराया जाए ? परिस्थितियों को ज़िम्मेदार क्यूँ माना जाए ? लानत है ऐसी बहसों पर, तर्कों और वितर्कों पर ।  शर्म हो धिक्कार हो, इन क्षुद्र जीवियों को भी कड़ी फटकार हो ।

क्यूँ नहीं .........तुरंत होता है फांसी का निर्धारण, हर चैनल दिखलाए सीधा प्रसारण । जब इनको लटकाया जाए, चेहरे से नकाब हटाया जाए । क्लिपिंग दिखलाई जाए लगातार, दुनिया देखे इनकी चीत्कार । दरिंदों के जब दहलेंगे दिल, तब कारगर होगा एंटी रेप बिल । दिल में जब खौफ भरेगा, तभी सच्चा इन्साफ मिलेगा ।