गुरुवार, 7 मई 2009

अब और चुनावी व्यंग्य नहीं .....

साथियों ..माफी  चाहूंगी .लेकिन .. ...........अब और चुनावी व्यंग्य नहीं .....आज से खालिस गंभीर कविता लिखूंगी ....
..
बस एक ही स्थान
 
जब बीबी गुस्से में पैर पटककर
कह देती है खूसट बुड्ढे जा कर मर
बच्चे भी करने लगते हैं मुँह पर बतिया  
बापू हमरा अब गया है पूरा सठिया  
प्यारी प्यारी कन्याएं जब 
सीट छोड़ने लगती हैं 
ताउजी हो जाएगा गठिया 
बैठ जाइए,कहकर उठने लगतीं हैं 
तब उनके दिल को 
लगता है जोर का झटका 
हे प्रभु ! ये किस पड़ाव पर उम्र के  
, लाकर तुमने पटका  
करते हैं वह तब
जीवन में पहली बार
उस शक्तिमान का ध्यान
आँखें मूंदने पर दिखता है
एक ही ऐसा स्थान
जहां साठ पार करने  पर भी
लोग युवा कहलाते हैं
वो पहिन लेते हैं कुरता पायजामा
इस प्रकार नेता बन जाते हैं

पादुका प्रक्षेपण करने वालों के लिए नई रेंज आई है......