रविवार, 10 मई 2009

माँ की पाती बेटी के नाम .....

 

माँ...... तुम्हारी भीगी-भीगी याद

महका कहीं एक ताजा गुलाब

आज दूर हो तुम नज़रों से

पर हृदय के है बेहद पास

तुम्हारा मधुर कोमल एहसास......

 

तीन वर्ष पूर्व तुमने मदर्स दे के दिन ये पंक्तियाँ मुझे लिख कर दीं थी, जिन्हें मैंने बैठक में फ़्रेम करवा कर लगा रखा है| आज तुम मेरे पास नहीं हो बेटी, लेकिन कोई भी ऐसा पल नहीं बीतता है जब तुम याद न आती हो| .तुम्हारे पिता का जब सड़क दुर्घटना में देहांत हो गया था तो तुम मात्र चार महीने की थीं| मेरे लिए सारी दुनिया जैसे ठहर सी गयी थी| अन्तर्जातीय विवाह करने के कारण पहले ही मायके और ससुराल से रिश्ते ख़त्म हो चुके थे, उस पर मेरे अहंकारी व्यक्तित्व ने मुझे किसी का शरणार्थी बनना मंज़ूर नहीं किया| तुम्हें अपने सीने से चिपकाए मैं नैनीताल आ गयी| कभी सुना था कि यहाँ बहुत से बोर्डिंग स्कूल हैं, कहीं न कहीं तो मुझे नौकरी मिल ही जाएगी| शादी से पहले भी मैंने दो वर्ष अध्यापन का कार्य किया था, इसी क्षीण आत्मविश्वास के सहारे मैंने स्कूलों में आवेदन करना शुरू कर दिया| जल्दी ही एक बोर्डिंग स्कूल में, बतौर वरदान, मुझे नियुक्ति मिल गयी|

 

धीरे-धीरे समय गुजरता गया| मैंने अपने ही स्कूल में तुम्हारा भी दाखिला करवा दिया था क्यूंकि यहाँ तुम निःशुल्क पढ़ सकतीं थीं| तुम बड़ी होतीं गयीं| मेरे कठोर अनुशासन ने तुम्हें ज़िद्दी और बिगडैल नहीं होने दिया और हर कक्षा में तुम सम्मान सहित उत्तीर्ण होतीं गईं| तुमने किशोरावस्था में कदम रखा तो मैं हद से ज्यादा शक्की स्वभाव  की हो गयी| मैंने तुम पर तरह तरह की पाबंदियां लगानी शुरू कर दी थीं| मसलन तुम्हारे ज़्यादा दोस्त नहीं हो सकते थे, तुम अपनी दोस्तों को घर नहीं ला सकती थीं, किसी भी लड़के से बातचीत करना तुम्हें सख्त मना था| नए फैशन के कपड़े तुम्हारे लिए कभी नहीं लिए और मेकअप तो मैं खुद नहीं करती थी सो तुम्हें कैसे करने देती? तुम्हारी हर गतिविधि पर मेरी एक्स -रे जैसी नज़र रहती थी| मैं क्या करती बेटी? तुम ही तो मेरा संसार थीं| मैं तुममें तुम्हारे पापा के सपनों को सच होता देखना चाहती थी|

 

तुम्हारे साथ की लड़कियों को देखकर मैं घृणा से भर उठती थी| वे नए ज़माने की फैशनपरस्त लडकियां थीं, अमीर घरानों की बिगड़ी हुई संतानें| उनकी छोटी-छोटी स्कर्ट और अत्याधुनिक परिधानों को देखकर तुम भी वैसे ही कपड़ों व मेकअप के मंहगे सामान के लिए जिद करने लग जातीं| मेरी सीमित तनख्वाह व चंद ट्यूशनों की आय से यह कैसे संभव हो सकता था? उस पर मुझे तुम्हारे भविष्य की पढ़ाई व शादी के लिए भी तो धन जमा करके रखना था| बेटी तुम्हें वह दिन तो याद ही होगा जब मेरे एक झन्नाटेदार थप्पड़ ने तुम्हारी जिन्दगी को एक नया मोड़ दिया था| उस दिन तुम अपनी एकमात्र सहेली की दीदी की शादी में गयी हुईं थीं| वैसे तो मैं तुम्हें किसी पार्टी या शादी में नहीं जाने देती थी परन्तु उसकी माँ के बहुत आग्रह करने पर में मना नहीं कर पाई थी| उस दिन तुम मुझसे छिपाकर मेरी शादी की बनारसी साड़ी ले गईं थीं| उस साड़ी के साथ तुमने अपनी सहेली का लो कट का स्लीवलेस ब्लाउज पहन रखा था और तुमने जी भर कर श्रृंगार किया था| जब काफी देर तक तुम नहीं लौटीं तो मैं चिंतित हो गयी और तुम्हें लेने पहुँच गई| तुम अपनी कुछ दोस्तों के साथ और कुछ सड़कछाप किस्म के लड़कों के साथ हंसी मज़ाक करने में व्यस्त थीं| जैसे ही तुम्हारी नज़र मुझ पर पड़ी तुम सकपका गईं| और मैं! मुझे तो तुम्हारा यह रूप देखकर मानो काठ मार गया था| तुम्हारी दोस्तों के बीच से तुम्हें हाथ पकड़कर  लगभग घसीटते हुए मैं तुम्हें घर लाईदरवाज़ा बंद करके मैंने तुम पर जिन्दगी में  पहली  बार हाथ उठाया| तुम्हें मारने के बाद मैं फूट-फूट कर रोई |

 

मैंने तुमसे कहा, "आज के बाद मैं तुमसे कुछ नहीं कहूँगी| अब तुम अपनी मर्जी की मालकिन हो, जो चाहो सो करो| हर महीने जेब-खर्च तुम्हें मिल जाया करेगा| तुम्हारी ज़िन्दगी बनाने के लिए मैंने इतने साल ढंग से शीशा नहीं देखा, चार जोड़ी साडियों में ज़िन्दगी काट दी| चौबीस साल की उम्र में विधवा हो गयी थी, क्या कुछ नहीं सहा होगा मैंने? कितने ही लोगों ने शादी करने का प्रस्ताव दिया परन्तु अपनी दुधमुंही बच्ची की खातिर इस विषय में सोचा तक नहीं| सोचा था की तुम्हारी ज़िन्दगी संवार कर तुम्हारे पिता को श्रद्धांजलि दे सकूंगी लेकिन तुम शायद नहीं चाहती की तुम्हारे पिता की आत्मा को शांति मिले और तुम्हारी माँ सिर उठा के जी सके", कहकर मैंने स्वयं को कमरे में बंद कर लिया था| तुम्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और तुमने रो-रो कर मुझसे दरवाज़ा खुलवाया और मेरे पैर छू कर माफ़ी मांगी, "मम्मी मैं आपके सख्त अनुशासन और पाबंदियों से तंग आकर आपको अपना सबसे बड़ा दुश्मन समझने लगी थी पर अब मुझे एहसास हो गया है कि यह सब तो आप मेरे ही भविष्य के लिए कर रही थीं| आज से आप कभी नहीं रोओगी| जैसा आप चाहेंगी में वैसा ही करूंगी|  

 

मैंने तुम्हें गले लगा लिया था| इस घटना के बाद से तुम पढ़ाई में जी जान से जुट गईंबाहरी दुनिया से तुमने नाता लगभग तोड़ लिया था| फिर वह दिन भी आया जब तुमने एम. कोंम. की परीक्षा में विश्वविद्यालय में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया और साल भर के अन्दर ही तुम आई. आई. एम. के लिए चुन ली गईं थींअखबारों में तुम्हारे इंटरव्यू और फोटो छपे| बधाइयों का तांता लग गया| वे लोग जो मेरे सख्त अनुशासन के लिए पीठ पीछे मेरी बुराइयां करते थे, आज बधाई देने में सबसे आगे थे

 

पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद तुम एक बहु-राष्ट्रीय कम्पनी में चुन ली गयीं| तुम मुझे रोज़ फ़ोन करके इस्तीफा देकर अपने पास आने का आग्रह करती रहीं, लेकिन मैं तो हमेशा से एक स्वाभिमानी स्त्री थी जिसने ज़िन्दगी में किसी पर भी बोझ बनना स्वीकार नहीं किया| तुम्हें शुरू-शुरू में  बहुत बुरा लगा पर तुम मेरे स्वभाव के बारे में .अच्छी तरह से जानती थीं| इसीलिए जल्दी ही अकेले रहने की अभ्यस्त हो गयीं| तुमसे शादी करने के लिए मेरे पास एक से बढ़ कर एक रिश्ते आने लगे पर जब तुमने अपने साथ काम करने वाले समीर को अपना जीवन-साथी बनाना चाहा तो मैंने कोई ऐतराज़ नहीं किया| तुमने मुझे बताया की तुम दोनों की परिस्थिति लगभग एक ही जैसी है| उसे भी उसकी तलाकशुदा माँ ने अपने दम पर पाल पोस कर बड़ा किया था|.एक सादे समारोह में  तुम दोनों परिणय सूत्र में बंध गए ,तुम अपने पिया के घर चली गईं ...मैं एक बार फिर अकेली रह गयी ...मुझे आदत है अपनों के बिना रहने की ...एक बार फिर सही
आज फिर से मदर्स डे आया है ..मैं तुम्हारे फ़ोन का इंतज़ार कर रही हूँ ...