शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

जन्म एक कविता का...

जबड़े कस जाते हैं
मुट्ठी भिंच जाती है
माथे पर असंख्य सिकुड़नें 
तैर जाती हैं 
शिराओं में रक्त की जगह 
बैचेनियाँ दौड़ने लगती हैं 
तब कहीं जाकर 
जन्म लेती है 
एक अदद कविता.