बजट भाग २ .......
यह एक शब्द युद्ध है, यह एक छद्म युद्ध है । ये जो बजट है कुछ नए, कुछ पुराने शब्दों की महज़ उठापटक है । 
बहुत माथापच्ची के बाद यह बात निकल कर आती है, जब विपक्ष में हों तो बजट की बखिया अच्छे से उधाडी जाती है । दोनों में बस वा और हा का फर्क है । दोनों पीछे से ह लगाओ तो हंसी भी आप ही चली आती है। 
  
कुछ शब्द संभाल कर रखे हैं । बहुत जतन  से याद कर रखे हैं । जब मैं सत्ता का सुख लूटुगी , कैसा भी हो बजट, शान में उसकी कसीदे खूब पढूंगी  .........
सबका ख्याल रखने वाला, राहत देने वाला, मंगलकारी, कल्याणकारी , संतुलित, सराहनीय, सार्थक, लोक - लुभावन, अति मनभावन, शानदार, जानदार , काबिल - ए - तारीफ, बेहतरीन, कसौटी पर खरा उतरा , स्वागत योग्य, जन सामान्य का, आम आदमी का, पूरे नंबर, पीठ ठोंकी, शाबासी, इसमें सबके लिए कुछ ना कुछ है ।  
  
वाह ! क्या बजट है । 
जब मेरी विपक्ष में बैठने की बारी होगी, इन शब्दों को फेंटना मेरी मजबूरी होगी ..........
बकवास, आंकड़ों की बाजीगरी, शब्दों की जादूगरी, आम आदमी को लौलीपोप, करदाता को झुनझुना, हताशा, निराशा, मायूसी, दिशाहीन, फीका, फुस्स, मज़ाक, उपेक्षा, अव्यवहारिक, नकारात्मक, चुनावी, जनविरोधी, राजनैतिक, ऊँची दुकान, फीका पकवान, हर कसौटी पर फेल, हर मोर्चे पर विफल, हवाई घोषणाएं, खोखले दावे, महज़ एक दिखावा, ख़ास लोगों का ख़याल, पूंजीपतियों का, ज़ीरो नंबर,     कूड़ा, करकट है ।             
     
आह ! क्या बजट है । 
और एक आम आदमी है कि इतने सुरीले और रसीले शब्दों की जंग के मध्य हर बार वही कर्कश तान छेड़ता है । ना उसमे कुछ घटाता है ना जोड़ता है । 
टैक्स लिमिट बढ़ी कि नहीं  ? महंगाई घटी कि नहीं ? रसोई गैस का क्या हुआ ? बजट में इस साल क्या - क्या सस्ता हुआ ?  आम आदमी ज़रा तो शर्म कर । नए नए शब्द सीख, अब कुछ कर्म कर ।   
  
    
  
 
