बुधवार, 10 जुलाई 2013

तैयार है उत्तराखंड फिर से ........

तैयार है उत्तराखंड फिर से ........

सुना  है मौसम विभाग ने उत्तराखंड में फिर से भारी बारिश की आशंका व्यक्त की है । इस बार तो वाकई हम इसे गंभीरता से ले रहे हैं वरना आज से पहले ऐसा होता आया था कि जब भी मौसम विभाग मूसलाधार बारिश की संभावना व्यक्त करता था तब हम निश्चिन्त होकर घूमने - फिरने निकल जाते थे कि अब एक बूँद भी बारिश नहीं होगी । जब विभाग द्वारा  खिलती धूप की सम्भावना व्यक्त की जाती थी तब लोग अपने साथ छाता अवश्य लेकर चलते थे, ना जाने कब बरसात हो जाए ।

बहरहाल सरकार ने कहा है कि उत्तराखंड की जनता फिर से आपदा से निपटने के लिए तैयार हो जाए । उत्तराखंड ने तैयारी पूरी कर ली है । 

नेता और मंत्रियों ने अपने चहेतों को सूचित कर दिया है कि जो लोग आपदा भ्रमण कार्यक्रम के दौरान हैलीकॉप्टर की सवारी करने से रह गए वे इस बार मौक़ा हाथ से न जाने दें । फ़ौरन आकर रजिस्ट्रेशन करवा लें ।  फिर पता नहीं ऐसी आपदा कब आए । भाग्य और आपदा सिर्फ एक बार दरवाज़ा ठकठकाती है । 

जनता की बीच जाओ तो आफत ही आफत , ना जाओ तो लानत ही लानत । इस के मद्देनज़र राज्य के मंत्रियों, विधायकों ने विदेशों से अपने - अपने क्लोन मंगवा लिए हैं, जिन्हें आपदा होते ही घटनास्थल की ओर रवाना कर दिया जाएगा । इससे पिछली बार की तरह छीछालेदर नहीं होगी । 

चोर, डाकू, लुटेरों ने भी अपनी अबकी बार कमर कस ली है । पिछली बार मृतकों के पैसे लूटे और निर्जीव शरीरों से जेवर खींचे तो समाचार चैनल वालों ने थोक के भाव बदनाम कर दिया था । इतना भी न सोचा कि चाहते तो ज़िंदा लोगों से ही जेवरात खींच लेते । ' ज़िंदा कौमें मौत का इंतज़ार नहीं करतीं '' । चूँकि देवभूमि में थे शायद इसीलिये कुछ देवत्व अन्दर आ गया होगा, वरना उन्हें कौन रोकने वाला था । सारे भारतवर्ष में इंसान के जीते जी ही लूट - खसोट करने का रिवाज़ है ।  ज़िंदा इंसान के अंग निकाल लिए जाते हैं । ऐसे में मृतकों के शरीर से सोना खींच लिया तो कौन सा अपराध हो गया ?

पंडे  - पुजारियों ने भी पूरी तैयारी कर ली है । कहा जाता है कि भगवान् के हाथ में सबकी डोर होती है वह सर्वशक्तिमान है और किसी को भी नचा सकता है । लेकिन अबकी बार ये धरती के भगवान् ऊपर के भगवान् को नचाएँगे । बड़ा रोचक मुकाबला होगा । शास्त्र और शास्त्रार्थ की भिडंत होगी वह भी टी वी के सामने । एक संत कहेंगे  ''मंदिर अपवित्र हो गया, यहाँ पूजा नहीं हो सकती '' , दूसरे फरमाएंगे, ''पूजा पुरानी जगह पर ही होनी चाहिए, वरना भगवान् क्रुद्ध हो जाएंगे ''।  तीसरे कहेंगे '' ये प्रकोप धारी देवी मंदिर को दूसरी जगह शिफ्ट करने के कारण आया '' । इस तर्क में दम है । घर शिफ्ट करने में आम आदमी को तक क्रोध आ जाता  है, फिर वो तो भगवान् हैं और उनके तो तीसरा नेत्र भी है ।

अखबारों की हैडलाइन को सच मानें तो माननीयों ने महंगे से महंगे होटल में कमरे लिए और खाने में चिली - चिकन मंगवाया । अब आप इसमें भी ऐतराज़ करेंगे । देखिये आप इस चिली - चिकन में छिपी हुई संवेदनाएं समझें । वे शाही लोग हैं , चाहते तो वे शाही चिकन मंगवा सकते थे, तंदूरी मटन खा सकते थे । लेकिन नहीं, उन्होंने मिर्च वाला चिकन मंगवाया । इसी बात से उनके दुःख का अंदाजा लगाया जा सकता है । एक तो इंसान इतना दुखी हो ऊपर से उसे ढंग की जगह रहने और खाने को भी ना मिले, ये तो संवेदनहीनता की हद होती है ।

बयानवीर ने भी नए - नए प्रकार के बयानों की खोज कर ली है । कौंग्रेस कहेगी केदारघाटी में जितना भी निर्माण कार्य हुआ है सब पिछली सरकार के दौरान स्वीकृत हुआ था । अब स्वीकृत योजनाओं को कौन रोक सकता है भला ? जवाब में भाजपा  कहेगी  हमने सिर्फ निर्माण कार्यों की स्वीकृति दी थी, लेकिन निर्माण के लिए भूमि की खरीद - फरोख्त उससे पहले के कॉंग्रेसी शासन काल में ही हो गयी थी । हर पांच साल में सरकारों के बदलने का सबसे बड़ा फायदा यहीं पर नज़र आता है । ठीकरों के एक दूसरे  के सिर पर फोड़ने का क्रम अबाध गति से चलता रहता है । जनता के पास कहाँ समय है कि वह पुराने रिकॉर्ड खंगालती फिरे ।

 चूँकि बद्री - केदार जाए बिना किसी का उद्धार संभव नहीं होता । श्रद्धालुओं ने भी पूरी श्रद्धा से तैयारी कर ली है । वे सेना का हौसला बढ़ाएंगे, वाहवाही करेंगे । फेसबुक पर फोटो चिपकाएंगे । लेकिन अपने बेटों को सेना में भेजने के नाम पर उनकी माएं आसमान सर पर उठा लेंगी, रो - रो के ज़मीन आसमान एक कर देंगी । बेटी को किसी जवान को देने के नाम से ही कलेजा काँप जाया करेगा । '' बाप रे कितनी कठिन नौकरी है इनकी, मेरी बेटी कैसे रहेगी इसके साथ ?'' सुविधा संपन्न लोग जवानी में ही तीर्थयात्रा का पुण्य लूटना चाहेंगे । साधन हीन सेना में भर्ती होकर जवान बनेंगे और अपनी जान हथेली में लेकर इनकी जान बचाएँगे ।

इस समय कुछ लोग निराशा के गर्त में डूबे हुए हैं । ''' हाय, हमारे शासन काल में ये आपदा क्यूँ न आई ?इस के मद्देनज़र इस समय देश को ''खाद्य सुरक्षा बिल '' से कहीं ज्यादा '' आपदा सुरक्षा बिल '' की दरकार है।  संकट के समय दिमागी संतुलन बना रहना चाहिए । आपदा आने से वंचित रह जाने वाली सरकारें इस बिल के तहत अपने अधिकार को प्राप्त कर सकती है ।

आंकड़ों के ऊपर मचे घमासान को देखते हुए एक अलग मंत्रालय का गठन कर लिया गया है । इसका काम ये होगा कि जिस समय लोग अपने परिजनों को ढूँढने की गुहार लगाएंगे ये फ़ौरन उनको आंकड़ों के जाल में उलझा देंगे । आंकड़ों के विषय में बोलने के लिए सब स्वतंत्र होंगे । कौंग्रेस कहेगी ये लापता लोगों के सरकारी आंकड़े हैं । भाजपा कहेगी कौंग्रेस जनता को गुमराह कर रही है । सौ की संख्या प्राप्त हो तो उसे हज़ार कहने के लिए और हज़ार की संख्या मिल रही हो तो उसे सौ कहने में ज़रा भी संकोच नहीं किया जाएगा ।