शुक्रवार, 3 अप्रैल 2009

मार्केट वैल्यू

मार्केट वैल्यू

 

"पिताजी आप हर समय किस सोच में डूबे रहते हैं, खाना तो ठीक से खा लीजिये", पूजा ने अपने पिता से कहा तो वे जैसे दूर किसी दुनिया से धरती पर लौट आए".

 

"किसी तरह तेरी शादी हो जाए तो मेरी सारी चिंताएं ख़त्म हो जायेंगी. जहाँ भी तेरी जन्म-पत्री जाती है, कोई जवाब नहीं आता है. पिछले हफ्ते तेरी जन्म-पत्री व फ़ोटो श्रीमती वर्मा अपने इंजीनीयर बेटे के लिए ले गयी थीं, अभी तक कोई जवाब नहीं आया. सोच रहा हूँ फ़ोन करके याद दिला दूँ".

 

पिता ने फ़ोन मिलाया तो श्रीमती वर्मा ने ही उठाया,

"जी मैं पूजा का पिता बोल रहा हूँ. आप मेरी लड़की की जन्म-पत्री और फ़ोटो ले गयीं थीं, क्या हुआ? आपने कोई उत्तर नहीं दिया."

 

"बात ये है की अगले महीने मेरा बेटा आने वाला है. सब कुछ उसी की पसंद पर निर्भर करता है. हम आपको उसके निर्णय की सूचना दे देंगे. वैसे आपकी लड़की हमें तो पसंद है."

"जी, धन्यवाद", कहकर पूजा के पिता ने फ़ोन रख दिया.

 

"लगता है भगवान ने मेरी सुन ली बेटा. श्रीमती वर्मा को तू पसंद आ गयी है, बस बेटे की हाँ का इन्तजार है. वो भी हाँ कर ही देगा."

 

बहुत समय के बाद उन्हें कोई सकारात्मक उत्तर मिला था, इसीलिये उनके चेहरे पर थोड़ी रौनक लौट आयी थी.

 

उधर वर्मा साहेब अपनी पत्नी को समझाने की अन्तिम कोशिश कर रहे थे,

"ये तुमने क्या तमाशा लगा रखा है? दिन रात लोग फ़ोन करके परेशान करते हैं. क्या मिलता है तुम्हें लड़कियों की फ़ोटो इकठ्ठा करके? वापस क्यों नहीं कर देती हो उन्हें? इन लोगों को बता क्यों नहीं देती की हमारे बेटे ने अपनी एक सहकर्मी को पसंद कर रखा है. तुम ख़ुद ही तो विवाह पक्का करके आयी हो."

 

श्रीमती वर्मा अपने पति पर बरस पड़ीं,

"तुम्हारी अक्ल घास चरने तो नहीं चली गयी. याद नहीं, पिछले साल बड़ी जिठानी जी का लड़का, जो मामूली सा क्लर्क है, उसके लिए पचास से अधिक लड़कियों की जन्म-पत्रियाँ व फ़ोटो आयी थीं. कैसे चिढ़ा रही थीं वो मुझे. अब मेरी बारी है. जब तक दो या ढाई सौ प्रस्ताव न आ जाएँ, मुझे चैन नहीं आएगा. आख़िर मेरा बेटा इंजीनीयर है, उसकी मार्केट वैल्यू ज्यादा होनी चाहिए या नहीं?"

 

वर्मा जी अपना माथा पकड़कर बैठ गए.