रविवार, 24 मई 2015

गाय पर निबंध -------


''हे  हे  हे  हे पढ़ा तुमने'' ? 
''क्या ''?
''आज का अखबार'' 
''हाँ क्यों ? कोई ख़ास खबर ?''
''एक टीचर को गाय पर निबंध लिखना नहीं आया ''
''हाँ पढ़ा मैंने । काफी बड़ा - बड़ा छाप रखा था'' । 
एक टीचर को ही जब इतना साधारण निबंध नहीं आएगा तो बच्चे क्या पढ़ेंगे ? 
पड़ोस के दुकानदार ने ब्रेड का पैकेट पकड़ाते हुए पूछा तो मैंने बचाव की मुद्रा अख्तियार करने में तनिक भी देरी नहीं लगाई । 
''देखिये हर विभाग में कुछ ऐसे लोग आ ही जाते हैं । क्या किया जाए इस फर्ज़ीवाड़े का'' ?
''कमाल की बात तो यह है कि नौकरी भी पूरी कर ले जाते हैं'' । 
''हाँ ये तो है, लेकिन अब गाय पर निबंध लिखना इतना आसान भी तो नहीं रह गया''। मैंने अफ़सोस ज़ाहिर किया साथ ही यह भी जोड़ दिया । 
 मैं किसी भी टीचर की गरिमा बचाने के लिए किसी भी हद तक बहस करने के लिए कटिबद्ध थी, टीचर चाहे कश्मीर का हो या कन्याकुमारी का ।
''शर्मनाक है यह .... इतना सरल नहीं आया … गाय पर निबंध जैसी चीज़.…हमें तो बचपन से आज तक रटा हुआ है'' । 
वह भी टीचर को नीचा दिखाने के लिए,कटिबद्ध था, चाहे वह त्रिपुरा का हो या हरियाणा का । 
जहाँ दो कटिबद्ध लोग लोग मिल जाते हैं वहां का माहौल बड़ा ही रोचक हो जाता है। 
''चलिए सुनाइए आप बचपन से रटा हुआ गाय पर निबंध''। मैं अपने सारे तर्कों - कुतर्कों से लैस होकर बहस के मैदान में कूद पड़ी। 

''गाय एक पालतू जानवर है'' वह पहला सनातन वाक्य बोले । 

''लेकिन यह अच्छे - खासे इंसान को जंगली बना देती है'' । मैंने नया वाक्य बोला । 

''यह कई रंगों की होती है - काली, सफ़ेद, भूरी, चितकबरी आदि आदि''। 

''लेकिन इसका साम्प्रदायिक रंग सबसे लुभावना होता है । इसको लेकर जब इंसान एक - दूसरे का खून बहाते हैं, वही लाल रंग सबके मन को भाता है''। 

''इसके दो सींग होते हैं'' । 

''अपने दो सींगों से यह किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती । जिनके सींग नहीं दिखाई देते, ऐसे प्राणी इस सींग वाले प्राणी के लिए एक - दूसरे का पेट फाड़ डालने तक में संकोच नहीं करते हैं''। 

''इसके दो आँखें, दो कान, चार पैर, चार थन और एक बड़ा सा शरीर होता है''।   

''इसके अंगों के टुकड़ों को अक्सर उस जगह डाला जाता है जहाँ इसकी पूजा की जाती है । इसके टुकड़े बाद में एक दूसरे के टुकड़े करने के काम आते हैं'' । 

''इसके रहने की जगह को गौशाला कहा जाता है'' । 

''आजकल यह विभिन्न सोशल साइट्स यथा वट्सअप और फेसबुक पर रहती है जहाँ कई तस्वीरों में इसका सिर अलग और धड़ अलग दिखाई देता है, ताकि लोगों में उत्तेजना फैले फिर, उस फ़ैली हुई उत्तेजना से दंगे फैलें।    

''यह घास खाती है'' । 

''आजकल यह आम लोगों के द्वारा फेंके हुए घरेलू कचरे से भरे हुए रंग - बिरंगे प्लास्टिक के थैलों को चबाती हुई या कूड़े के ढेर के पास देखी जाती है'' । 
 
''अंग्रेज़ी में इसे काव कहते हैं''। 

''इसी काव पर आजकल बहुत काँव - काँव मची रहती है''। 

''हिन्दू इसे गौ माता कहते हैं'' 

''कुछ हिन्दू इसका मांस बहुत चाव से खाते हैं और ट्वीट करके गर्व से इसकी सूचना भी देते हैं''। 

''गाय के दूध से दही, मक्खन, घी और मिठाइयां बनती हैं''। 

''इन मिठाइयों को खाकर हम एक दूसरे के धर्मों के खिलाफ ज़हर उगलते हैं । इसके माँस के माध्यम से राजनीतिज्ञ अपनी रोटियां सेंकते हैं और उनका चूल्हा लम्बे समय तक जलता रहता है'' । 

''इसका बछड़ा बड़ा होकर खेतों को जोतने के काम आता है'' । 

''इसके बछड़े की खाल सांप्रदायिक सद्भावना लाने के काम आती है । इसके चमड़े से बने हुए पर्स, बेल्ट और अन्य आइटम सभी धर्मों के लोगों के बीच समान रूप से लोकप्रिय हैं''। 

''वाकई गाय पर निबंध लिखना आसान नहीं रह गया ''। कहकर दुकानदार बगलें झाँकने लगा । 

''तभी तो मैंने कहा था, कुछ चीज़ें जो हमें जैसी बतलाई जाती हैं, वह कई बार वैसी होती नहीं'' । मै भी इतनी बहस के बाद हांफने लगी थी । 

रविवार, 17 मई 2015

दुःख भरे दिन बीते रे भैया

दुःख भरे दिन बीते रे भैया  
नाचो, गाओ, ता ता थैया । 

दुनिया भर का टूर लगायो 
भाषण देकर जी बहलायो 
हर लाइन पर ताली बजवायो 
यदा - कदा जब देश में आयो 
वायदों की जब याद दिलायो 
'जुमला' कह दिया दैया रे दैया ।   

दुःख भरे दिन बीते रे भैया  
नाचो, गाओ, ता ता थैया । 

जगमग - जगमग फोटो खिंचायो 
चमचम - चमचम सेल्फ़ी लगायो 
ढोल पीटो, वंशी बजायो  
झूला झूलो, पींग बढ़ायो 
क्यों न करो तुम गलबहियां 
जब कोतवाल भये सैयां । 

दुःख भरे दिन बीते रे भैया  
नाचो, गाओ, ता ता थैया । 

विदेशों में जलवा ढायो 
फ्रंट पर 'टाइम' के छायो 
ट्विटर, फेसबुक पर लाइक पायो 
हर चैनल तुमरे ही गुन गायो  
पाठ्येत्तर में पूरे नंबर, पर 
पाठ्यक्रम में शून्य आयो । 

अच्छे दिन से तौबा रे तौबा 
दिन बुरे ही भले थे भैया । 

दुःख भरे दिन बीते रे भैया  
नाचो, गाओ, ता ता थैया ।