शुक्रवार, 8 मार्च 2013

और अब काइकू .....


हाइकू ......फाइकू .....और अब काइकू .....

वह

कुर्सी और मेज़
जीवन
फूलों की सेज

वह

बैठक का सोफा
ज़िंदगी
हसीं तोहफ़ा

वह

गरम, नरम कालीन
कितनी
सुन्दर और शालीन 

वह

बोर हो गयी
सहसा
भोर हो गयी

वह

चलने लगी
दुनिया
हिलने लगी 

वह

बोलने लगी
पर
तौलने लगी

वह

उड़ गयी
खूंटा तोड़ गयी
बहुत कुछ छोड़ गयी

वह

तेज़ करने लगा
छुरी की धार
ज़ोरदार प्रहार

वह

घायल, हताहत
तन मन आहत 
फिर - फिर उड़ने की चाहत 



 

तरनतारन के तारनहार ......

तरनतारन के तारनहार ......

अभी हाल ही में टी वी के समाचार चैनलों पर एक वीडिओ क्लिप का बड़ा तहलका मचा हुआ था । छेड़खानी की शिकार महिला पुलिस के आगे शिकायत लेकर गयी तो पुलिस ने उसे दौड़ा दौड़ाकर डंडों से पीट  दिया । लोग पुलिस की ऐसी हरकत देखकर आश्चर्यचकित हो गए थे । इसमें आश्चर्य करने वाली कौन सी बात थी ? हाँ अगर पुलिस ऐसा नहीं करती और महिला की रिपोर्ट दर्ज करके उस पर तुरंत कार्यवाही करने लगती तब आश्चर्य वाली बात होती ।

साथियों, इस विषय में कई लोगों का यह मानना है की जिस तरह भ्रूण हत्या, हत्या न भवति, उसी तरह स्त्री हिंसा, हिंसा न भवति ।  स्त्री को पीटना भी भला  कोई पीटना हुआ ? घर पर तो वे अक्सर ही पिटती रहतीं हैं । दरअसल वह काम ही ऐसे करती है की पति को गुस्सा आ ही जाता है । और ना चाहते हुए भी उसे हाथ उठाना पड़  जाता है ।

हो सकता  है की आपको ये बातें बहुत छोटी - छोटी लगें और आपके मुंह से शायद ये निकल भी जाए '' भला ये भी कोई वजह हुई हाथ उठाने की '', या ''बस इत्ती सी बात पर हाथ उठा दिया ? '' कई लोगों को तो शायद विश्वास भी नहीं होगा । 

मसलन - खान को ही ले लें । अधिकांश घरों में झगड़ा करवाने का मुख्य कारण यही होता है
खाना ठंडा हो गया हो, पत्नी खाना लगाने से पहले थकान के चलते सो गयी हो, नमक मिर्च का उनके द्वारा निर्धारित अनुपात गड़बड़ा गया हो, समय पर नहीं तैयार हो पाया हो, बच्चे बिना पूरा खाना खाए सो गए हों, सास को समय पर खाना न परोसा गया हो, रोटियाँ कड़कड़ी और मोटी बनी हों, खाने में चटनी नहीं दिखी हो इत्यादि इत्यादि । 

दूसरा प्रमुख कारण  बच्चे होते हैं, वही बच्चे जिन्हें पति पत्नी के बीच की मज़बूत कड़ी माना जाता है और ये माना जाता है कि बच्चो से घर में रौनक आती है, उन्हीं बच्चों के स्कूल से अगर शिकायत आई हो, परीक्षा में नंबर अच्छे नहीं आए हों या फेल हो गए हों, कापियों में नोट लगे हों, पत्नी द्वारा बच्चों की गलतियां छिपाने की कोशिश की गयी हो, उनकी जिद के आगे हथियार डाल दिए हों और उन्हें टी वी देखने दे दिया या जंक फ़ूड खाने को दे दिया हो, चोरी छिपे पैसे दिए हों इत्यादि इत्यादि । 

इसके अलावा कुछ अन्य छोटे - छोटे से  कारण भी हैं - सास से कहा सुनी हो गयी हो, मायके वालों से फोन पर बात करने के चक्कर में दूध उबल कर गिर गया हो, मायके से आए हुए किसी पुराने पहचान वाले को घर में बिठा कर चाय पिला दी हो, ज़रा हंस हंस कर बात कर ली हो,दो या दो से ज्यादा बेटियां पैदा कर दी हों, उसके गुस्से का ख्याल न किया हो,और अपना मुंह बंद ना किया हो । आखिर आदमी चाहता ही क्या है ? सिर्फ इतना की जब भी उसे गुस्सा आए तो पत्नी चुप हो जाया करे । अब पत्नी की हर बात पर उसे गुस्सा आ जाता है तो वह बेचारा क्या करे ?

उसी तरह निरासाराम बापू ने भी  कहा था । बलात्कार और छेड़खानी की शिकार महिलाएं स्वयं ही इसके लिए उत्तरदाई होती हैं ।' बापू' उपनाम ही  सत्य बोलने की गारंटी है ।  आजकल कुछ समय से, कहना चाहिए कि सोलह  दिसंबर की घटना बाद से लोग बलात्कार के लिए पुरुषों को दोष देने लगे हैं । यह ठीक नहीं है । हकीकत में पुरुष बहुत ही शरीफ एवं निरीह प्राणी होता है । वह नवरात्रि में कन्या के पैर पखारता है, आरती उतारता है, मीलों पैदल चलता है,ऊँची - ऊँची चढ़ाईयाँ चढ़ता है, देवी मंदिरों के दरबार में मत्था टिकाता है, किसी भी कन्या को अपने चरण स्पर्श नहीं करने देता । अपनी माँ को तो वह अपनी जान से भी बढ़के चाहता है ।

यहाँ यह बात भी ध्यान देने वाली है कि घोर से घोर मांसाहारी नवरात्रों में प्याज तक खाना छोड़ देता हैं । एक बार नवरात्र ख़त्म हुए तो फिर से मांस - मदिरा चालू होने में देर नहीं लगती । इस वाक्य का ऊपर लिखी बात से कोई कनेक्शन नहीं है । 

क्या कारण है कि ऐसा शरीफ प्राणी बलात्कार के लिए मजबूर हो जाता है ? असल में महिलाएं ही ऐसे काम करती हैं कि उसे बलात्कार करना पड़ता है ।
मसलन - रात को घर से बहार जाना, बॉय फ्रेंड बनाना, उनके साथ घूमना, छोटे, आधुनिक, चुस्त कपडे पहिनना, मर्दों से बराबरी करना, मर्द के बगैर आसानी से रह लेना, ज़रा सी छेड़छाड़ की भी शिकायत कर देना । अगर महिलाएं ये सब करना बंद कर दें तो वह एकदम शरीफ आदमी बन जाए । औरत की और देखे भी नहीं । 

क्या कहते हैं आप लोग ?