शुक्रवार, 28 मई 2010

जिस दिन तुमसे मिलकर लौटी ....

जिस दिन तुमसे मिलकर लौटी 
 मैं कविता में ढलने लगी थी|
 
विचारों को मिल गए थे पंख
चाय की हर चुस्की के साथ
तुम्हारी कुछ पंक्तियाँ
याद आ गई थीं|
 
आटे में कुछ गीत चुपके से
आकर गुँथ गए थे|
 
नमक मिर्च हल्दी के साथ
चटपटे, रंगीन एहसास
सब्जी की कटोरी में
घुल गए थे|
 
बेशर्म से एहसासों को
झाड़ू से बुहार दिया था|
 
बिस्तर पर बिछाकर  
असंख्य शब्दों की चादर
अनुभूतियों के साथ ही अभिसार
कर लिया था|
 
इस तरह मैंने भी
तुम्हें बिना बताए
तुमसे प्यार कर लिया था|