रविवार, 30 अगस्त 2009

तेरे बिना भी क्या जिन्ना ........

भा . ज. पा ....जो अब..... भाग जाओ पार्टी .....बन चुकी है , बड़े बड़े दिग्गज मैदान छोड़ - छोड़ कर जा रहे हैं , वे राजनीति से विरक्त हो चुके हैं , क्यूंकि विपक्ष मैं हैं , और विपक्ष में बैठकर भी भला कभी जन सेवा हो सकती है क्या ? इसीलिए नेताओं का टाइम कटे से नहीं कट रहा है , जसवंत सिंह यह सोचकर किताब  लिखने बैठे , और एक सच्चे शोधार्थी  की तरह उन्होंने पहले सुबूत जुटाए , स्वयं जिन्ना की कब्र खोदकर उसका भूत निकाला ....उस पर .रिसर्च करी ......क्यूंकि उन्हें समझ में आ गया था कि एक मात्र जिन्ना का भूत ही है जो भारतीयों के सिर पर सवार नेहरु गांधी के भूत को कड़ी टक्कर दे सकता है...तो इस कब्र मंथन का जो दौर शुरू हुआ वह लगातार जारी है ...समुद्र मंथन की तरह इसमें से भी कई अनमोल रतन निकले ...और निकट भविष्य में कई और निकलते जाएंगे ....मसलन ...कांधार रतन ,नोट के बदले वोट रतन  इत्यादि  ....इस मंथन में अमृत निकलने की तो कतई सम्भावना नहीं है ...हाँ लेकिन विष  इतना निकल चुका है कि  पूरी पार्टी लगभग डूब सी गयी है ...अब इस विष को किसके हलक में उड़ेलें...सब यही सोच कर परेशान हैं ....पार्टी वाले चाहते हैं कि लौह पुरुष इसे पीयें ....क्यूंकि लौह होने के नाते वे इसे आसानी से पचा सकते हैं  और अडवानी जी हैं कि अपनी गर्दन बचाते फिर रहे हैं कि एक बार गर्दन नीली हो गयी तो उनका  नाम नील कृष्ण अडवानी ना हो जाए ..अब इस उम्र में नाम बदल जाए ....ऐसा कौन चाहेगा ?
कतिपय नेता चिट्ठी पत्री लिखने में व्यस्त हैं ...हांलाकि इस एस .एम् .एस .और ई .मेल . के ज़माने में यह सुनना हास्यास्पद लग सकता है ..लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि चिट्ठी - पत्री से जो संबंधों की मधुरता प्रकट होती है उसका मुकाबला कोई एस .एम् .एस .नहीं कर सकता ...इस मशीनी युग में कोई तो है जो इस मिठास को जीवित रखे हुए है ...
हांलांकि ये बात भी उतनी ही सच है कि डाक विभाग पर डाँठ लग चकी है और वह स्वयं कलयुगी  भगवान्  यानी रामदेव के सहारे चल रहा है ...जडी बूटियाँ , साबुन , किताब .बेचकर अपना खर्चा निकाल रहा है ....पता नहीं निकट भविष्य में  इसे और क्या क्या बेचना पड़ेगा ?
तो ऐसे में हमरे नेतागण इस बात को भली प्रकार जानते हैं कि हाईकमान ... .....जिसकी  कभी  जिन्ना के नाम पर  भवें कमानी की तरह तनी रहती थीं ...और ब्लड प्रेशर भी हाई रहता था  , आज ब्लड प्रेशर और भवें दोनों गिर चुकीं हैं नब्ज़ ढूंढें  से भी नहीं मिल रहीं है , ऐसे मैं जो  इस वक़्त की नब्ज़ पकड़ ले उसकी चांदी हो सकने की पूरी पूरी सम्भावना है ......तो नेतागण डाक के माध्यम से समर्थन , असमर्थन ,शिकायत , स्पष्टीकरण ,के पत्र भेज रहे हैं ,वे जानते हैं कि आज भेजा है तो अगले चुनाव तक तो मिल ही जाएगा ...और बरसात के मौसम में तो बल्ले ही बल्ले , यदि किसी तरह से गिरते पड़ते पहुँच भी गया तो पत्र के अक्षर इतने भीग गए होते हैं कि समझना मुश्किल हो जाता है कि पत्र समर्थन का है कि असमर्थ का ...इसे स्पष्ट करने के लिए हाईकमान फिर पत्र भेजता है ,पत्र - व्यवहार के इस अनवरत क्रम के द्वारा सालों साल गद्दियाँ बची रह जाती हैं
इन दिनों स्वाइन फ्लू के अतिरिक्त पार्टी में एक फ्लू और फैल रहा है , जिसका नाम है.... के . के . के ....जसवंत जी पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं ...जिसकी व्याख्या जारी है ....किस ..काम ..की ...याने की अब पार्टी में बचा क्या है ? ना कुर्सी ...ना काम..... ना काज .. बस कलह ही कलह .... दूसरी व्याख्या है  ....कब के ख़त्म ....मतलब ....पार्टी में तो पहले से ही दम नहीं था , ये तो हम थे जो इसे बचाए हुए  थी वर्ना कब के ख़त्म हो चुकी होती ....
वैसे आम जन  को निराश होने की ज़रुरत नहीं है , क्यूंकि  नेताओं की कमी से जूझने के लिए पार्टी जल्दी ही विशेष नेता भर्ती अभियान शुरू करने जा रही है ...जिन्न जिन्न में भी टांग खींचो , कुर्सी हिलाओ  ,गड्ढा खोदो ,कब्र खोदो ..जैसे  गुण पाए जाते हों , वे एप्लाई कर सकते हैं ....
 

बुधवार, 26 अगस्त 2009

स्वाइन फ्लू हो या न हो स्कूलों में मोर्निंग असेम्बली बंद हो जानी चाहिए .

सरकार ने स्वाइन फ्लू के डर से स्कूलों में होने वाली मोर्निंग असेम्बली पर फिलहाल रोक लगा दी है , जब से ये घोषणा की सूचना मिली है हम मास्टर लोग खुशी से फूले नहीं समा रहे हैं.  अब इस बात पर हम लोग आन्दोलन करने की सोच रहे हैं कि इस पर हमेशा के लिए रोक लगा देनी चाहिए ,वैसे भी  काफी समय बीत गया बिना  कोई आन्दोलन किये हुए. मोर्निंग असेम्बली  अब पूर्णतः अप्रासंगिक हो चुकी है इसमें अब कुछ ख़ास नहीं रखा.
ये ना हो तो स्कूल में १५ मिनट देर से पहुंचा जा सकता है. सबसे ज्यादा प्रसन्न राष्ट्रीय गान होगा , अब 'गुजराष्ट्र' फिर से ओरिजनल 'गुजरात' हो सकेगा.
बच्चों के सिर से प्रतिज्ञा कहने का बोझ उतर जाएगा .'भारत मेरा देश है , समस्त भारतवासी मेरे भाई बहिन है ' कहते कहते कई बच्चे प्रेम ,प्यार ,इश्क ,मुहब्बत में पड़ जाते हैं ,कुछ एक वीर , वीरगति को, यानी शादी की गति को प्राप्त हो जाते हैं , लेकिन उनके दिल में कहीं ना कहीं ये कसक चुभती रहती है , कि हम स्कूल में भाई - बहिन होने की शपथ ले चुके थे , और आज पति पत्नी हैं ,साल बीतते बीतते यह कसक बढ़ते - बढ़ते शूल का रूप ले लेती है , प्यार का फूल देखते ही देखते धूल में मिल जाता है , और वो जोड़ा जो स्कूल में सबसे हॉट होता था , अब ठंडा - ठंडा कूल कूल हो जाता है .
एक पी .टी . नामक चीज़ भी सुबह सुबह कराई जाती है , जिसमे  उबासियाँ लेते बच्चे अपने हाथ - पैरों को आड़ा- तिरछा करते हैं .एक होता है पी .टी .आई . जो पिटाई का पर्यायवाची होता है , गलत हाथ घुमाने पर डंडा लेकर बच्चों पर पिल पड़ता है
सुबह - सुबह 'लाइन सीधी करो' जैसे सनातन वाक्य से भी छुटकारा मिल जाएगा .बच्चे भी मन ही मन सोचते हैं कि जिस देश में हर बात 'टेढी बात' होती हो और 'टेढा  है ,पर मेरा है 'जैसा ब्रह्म वाक्य सुबह शाम सुनाई पड़ता हो , उस देश में बच्चों से सीधे खड़े होने की अपेक्षा करना कहाँ का इन्साफ है ? वैसे भी लाइन टेढी होने का कारण कुछ और होता है , बहुत सारे बच्चे सुबह सुबह वायुमंडल में  विभिन्न प्रकार की गैसों का उत्सर्जन करते हैं , जिससे लाइन खुदबखुद टेढी हो जाती है .
सुबह - सुबह प्रार्थना करने का रोग  भी समस्त  स्कूलों में समान भाव  से पाया जाता है , "दया कर दान भक्ति का हमें परमात्मा देना , दया करना हमारी आत्मा में सूजता [शुद्धता] देना "सालों - साल  ऐसी प्रार्थना सुनते सुनते भगवान् भी कन्फ्यूज़ हो जाते हैं ,और स्कूल ख़त्म होते - होते बच्चों की आत्माएं इस कदर सूज जाती हैं कि कई बार मास्टरों  की पिटाई और डाँठ से चिढ़कर वे उनके पेट में छुरा या बड़ा सा सूजा तक उतारने में  और उन्हें परमात्मा के द्वार पहुँचाने में कतई  नहीं हिचकिचाते हैं.
अधिकांश स्कूलों के प्रधानाचार्य भाषण नामक असाध्य रोग से ग्रसित रहते हैं , जब तक वे अपने अन्दर कूट - कूट कर भरी हुई नैतिकता का सुबह सुबह वमन नहीं कर देते उन्हें एहसास ही नहीं होता कि वे प्रधानाचार्य की गद्दी संभाल रहे हैं , वैसे ये प्रधानाचार्य नामक जीव भी इन्हीं मास्टरों  की जमात में से आया होता है , लेकिन जैसे ही वह कुर्सी पर आता है उसकी पुरानी याददाश्त चली जाती है ,लेकिन बाकी मास्टर उसकी पुरानी मेमोरी को कहीं न कहीं से खंगाल ही लाते हैं
छाया में खड़े होकर उसके द्वारा दिए जाने वाले भाषण और नीति वचन कड़कती हुई धूप में खड़े हुए बच्चों के बेहोश हो जाने तक जारी रहते हैं
कई प्रधानाचार्य एक तीर से कई निशाने साधते हैं , जब वे डंडा लेकर एसेम्बली में खड़े होते हैं तो डंडे का रूख बच्चों की और होता है और नज़रें सामने खड़े मास्टरों की ओर. जिस मास्टर से उसकी खुन्नस होती है ,उसी के पास खड़े हुए लड़के को ज़रा सा हिलने पर  दो डंडे जमा दिए जाते हैं ,मास्टर भी ये देख कर कैसे चुप बैठ सकते हैं ,वो भी लगे हाथ दो थप्पड़ उसी के आगे खड़े लड़के को जमा देता है ,और आँखों ही आँखों में यह इशारा दे देता है कि ' बच्चू ! हम भी तुमसे कम नहीं ,ये कुर्सी और सी . आर . का चक्कर ना होता तो अभी के अभी तुझे बता देता '
गुस्से में प्रधानाचार्य चिल्लाता है "देर से आने वाले {मास्टरों} पर कठोर कार्यवाही की जाएगी",
 लड़कियों के स्कूलों में कुछ अलग ही नज़ारा होता है ,मुझे आज भी याद है कि हमें पढ़ाने वाली दो - तीन मास्टरनियाँ पूरी  असेम्बली के दौरान टेंशन  में रहती थीं, उनका सारा समय अपनी साडियों की प्लीट्स ठीक करने में बीत जाता था ,एक तो  बार - बार अपनी चुटिया ही  गूंधती  रहती थी.
बच्चों के द्वारा समाचार वाचन का भी एक सत्र होता है , जो इस असेम्बली के ताबूत की आखिरी कील साबित होता है , इसमें अक्सर बच्चे ऐसे समाचार पढ़ते हैं ......
"शिक्षामंत्री ..श्री अनपढ़ सिंह का ऐलान - मास्साबों ...सावधान हो जाओ ,या तो ढंग से पढ़ाओ, या नौकरी छोडो "
"ट्यूशन खोर मास्टरों पर कसेगा शिकंजा "
"स्कूल में  कुछ छात्रों ने एक छात्रा का अश्लील एस .एम् . एस . बनाया  ..प्रधानाचार्य एवं स्टाफ सस्पेंड "
"पाप किंग माइकल के लिए  शाहरूख कंसल्ट करेंगे "
साथियों बताइए ....क्या ये काफी नहीं है मोर्निंग असेम्बली बंद करवाने के लिए ? 
 
 

रविवार, 23 अगस्त 2009

टीचरनी का ब्लॉग

साथियों ये मेरा नया ब्लॉग है ....इसमे आपको एक टीचर के अनुभव और उसके विचार पढने को मिलेंगे ... फिलहाल कुछ फुटकर लाइनें
टाफियों के छिलके
चिडियों के पर
टूटे खिलोनों के टुकड़े
और एक कागज़ की नाव
कितना खूबसूरत है
छोटे बच्चे का गाँव ...

बुधवार, 19 अगस्त 2009

शाहरुख़ का यह अपमान याद रखेगा हिन्दुस्तान

साथियों अब समय आ गया है कि दुनिया वाले अपने संविधान और उसकी धाराओं में परिवर्तन कर लें, क्यूंकि भारत कृषि प्रधान देश से अब  सेलिब्रिटी प्रधान देश बन चुका है , और हमारे देश की अस्सी प्रतिशत जनसँख्या किसी ना किसी सेलिब्रिटी की पसंद  और नापसंद पर निर्भर करती है , जब ये हमसे कहते हैं कि फलां ब्रांड के साबुन से मुँह धोना चाहिए, फलाना तेल लगाना चाहिए,फलां ब्रांड की वस्तुएं खानी चाहिए, फलाना ब्रांड के पेय पदार्थों का सेवन करना चाहिए  ,तभी हम डिसीजन ले पाते हैं ,वर्ना आम आदमी तो वैसे ही बड़ी बड़ी दुकानों या चमचमाते मॉल के सामने मुँह फाड़े, हक्का बक्का सा खडा रह जाता है कि किस कम्पनी पर भरोसा करुँ और  किस पर नहीं , तभी वह आँख बंद करके अपने आराध्य सेलिब्रिटी को याद करता है और उस सेलिब्रिटी की मनमोहिनी मुस्कान जिस प्रोडक्ट  की और इशारा करती है ,उसी को वह अपने अपने सिर माथे पर शिरोधार्य कर लेता है.
 
माननीय शाहरुख़ खान से इस तरह पूछताछ करना , इमरान हाशमी को मकान देने से पहले पूछताछ करना ....ये कहाँ का इन्साफ है ?हम कब तक अपने सलिब्रितीस की यूँ बेइज्जती बर्दाश्त करते रहेंगे ? ये हमारे नायक हैं ,ये हर तरह की पूछताछ से ऊपर हैं  ये तो फिल्में साइन करने से पहले रुपयों के अलावा किसी के बारे में यथा .....कहानी ,डाईरेक्टर , प्लाट तक की पूछताछ नहीं करते हैं ...
 
और शाहरूख ,स्वाइन फ्लू के चलते अपनी जान की परवाह ना करते हुए इंडिपेंडेंस डे को सैलीब्रेट करने  सात समुन्दर पार गया ,चाहता तो भारत में रहकर भी स्वतंत्रता दिवस मना सकता था ,लेकिन नहीं,एक सेलिब्रिटी को सेलेब्रेशन भी  विदेशी धरती चाहिए तभी दिल में देशभक्ति की लहरें दौड़ पाती हैं
 
शाहरूख हमारे यूथ के लिए आइकन है , उसकी अदाएं ,उसका हेयर स्टाइल , उसके सिक्स पेक एब्स ,सब कुछ हमारे लिए अनुकरणीय हैं ,वह कौन कौन से ब्रांड की वस्तुएं इस्तेमाल करता है ,सब हमें बाय हार्ट याद रहता है ,हम एकबारगी अपनी और अपने माँ बाप जन्मतिथि भूल सकते हैं लेकिन किंग खान और उसके बीबी बच्चों की जन्मतिथियाँ नहीं भूलते,  उसके  जन्मदिन का केक ज़रूर काटते और बांटते  हैं .
 
उसके क... क... क... क...किरण कहने के अंदाज़ को कॉपी करके कई नौजवानों ने किरण नामक लड़कियों को पटाने में महारथ हासिल करी , उसके हकलाने को भी स्टाइल का दर्जा मिल गया , कई स्पीच थेरे पिस्टों को अपने क्लिनिक बंद करने पड़े , जब उसने हॉकी उठाकर 'चक दे  इंडिया' कहा तो भारत ने वास्तव में विश्व कप जीत लिया ,वह स्वदेस में जब गाता है ,,ये स्वदेस है मेरा , तो कितने ही वैज्ञानिक नासा छोड़कर भारत आ जाते हैं ,उसकी दिलवाले दुल्हनिया देखकर लड़कों ने मंडप से कन्याएं उठानी शुरू कर दी थीं , ऐसे किंग खान,बल्कि खानों के खान के साथ पूछताछ क्या जायज़ है ?
 
मैं पूछना चाहती हूँ दुनिया वालों से कि क्या हमने कभी किसी से पूछताछ करी है ? हमारे यहाँ तो अतिथियों को देव कहा जाता है , हमारे देश में कहाँ - कहाँ से लोग आए , हमने सबके लिए अपने दरवाजे खुले रखे ,पाकिस्तान से घुसपैठियों को आने दिया ,मुंबई में हमला करने वाले कई दिनों तक विस्फोटक लाते रहे ,मजाल है जो हमने पूछताछ की जहमत उठाई हो ,बांग्लादेशियों के लिए तो भारत आना मायके आना जैसा है , नेपाली , भोटिया भाई तो दाल में नमक की तरह मिक्स हो गए हैं , फिर हमारे ही देश के नागरिकों के साथ यह अन्याय  क्यूँ ?हमारे यहाँ तो कोई भी आकर अपना राशन कार्ड बना सकता है ,स्थाई निवास प्रमाण पत्र हासिल कर सकता है ,ज़मीन जायदाद खरीद सकता है , व्यापार कर सकता  है , हमने हर तरह की सुविधा अपने विदेशी भाइयों को प्रदान कर रखी  हैं.
 
हमारे यहाँ तो आए दिन हमले होते रहते हैं , फिर भी हम किसी से पूछताछ की हिम्मत नहीं जुटा पाते , हर हमले के बाद हमारे नेतागण कहते हैं कि सुरक्षा व्यवस्था को और कड़ा बनाया जायेगा , इस तरह वे अपनी सुरक्षा व्यवस्था को और कड़ा कर लेते हैं ,ताकि उन तक पहुँचने की कोई भूल से भी ना सोचे .
 
अगर भूले भटके कोई किस्मत का मारा पूछताछ करने की हिम्मत जुटा भी लेता है तो हमारे द्वारा दो - चार नेताओं का नाम भर ले लेने से वह थर थर काँपने लग जाता है , यहाँ तक की नौबत तो बहुत बाद में आती है बल्कि नेताओं के चमचों या चमचों के भी चमचों का नाम ले लेने से वह पैरों पर गिर कर माफी मांगने लगता है .....और जांच करने वाले को या तो सस्पेंड, या कहीं दूर ट्रांसफर कर दिया जाता है  
 
तो आइये हम सब का ये दायित्व है कि  हम सब लोग पेप्सी पी पी कर अमेरिका को उसके इस अक्षम्य अपराध के लिए कोसें ..
 
 

सोमवार, 17 अगस्त 2009

ग्रामर के आगे तो बड़े बड़े भूत भी भाग जाते हैं .....बिग बी .....

अभी पिछले दिनों अखबार में खबर आई कि अपने बिग बी को अंगरेजी की ग्रामर से बड़ा डर लगता था ....अरे ग्रामर से तो भूत भी डरते हैं ....ये कुमांउनी चेली भी अंग्रेजी पढ़ाती  है ...फिर भी ग्रामर से डरती है ....और ये महाशय ..इनको देखिये ..ग्रामर  ने  इनके साथ क्या किया ....
 
अदाएं तेरी देख के 'डायरेक्ट' 
हुआ मुझे 'इनडायरेक्ट' प्यार 
'जेंडर' का मेरे पता नहीं 
कहकर तूने किया उपसंहार .
 
मैं 'थ्योरी' वाला पोर्शन 
तू मीठा मीठा 'कनवरसेशन' 
तू 'सेंटेंस' है कम्प्लीट 
मैं छोटी सी 'प्रीपोसिशन' 
एक नज़र ना डाली तूने 
धूल फांक रही मेरी 'एप्लीकेशन' 
 
सारे 'एडजेक्टिव' पर तेरा कब्जा
मेरे हिस्से आए केवल 'वर्ब'  हैं
फिर भी तेरा ये कहना
कि तुझको मेरे 'पास्ट' पे शर्म है
 
 
हर 'लैटर' तेरा 'केपिटल' 
मैं बाहर का 'इन्वरटेड कोमा' 
तू कहती हम दोनों 'एंटोनियम'
मैं चाहूं तेरा 'सिनोनियम' होना 
'फुलस्टाप' की हूँ मैं बिंदी 
तू चलते रहने वाला 'कोमा' 
 
हो गया हूँ देखकर पागल
तेरे आगे सारे 'आर्टिकल' 
सदा 'पोसिटिव' मेरा प्यार 
तेरी नज़रें 'इंट्रोगेटिव' 
मैं रहा कम्पेयर की वस्तु 
तेरी डिग्री 'सुपरलेटिव' 
 
'रीअरेंज' करूंगा खुद को 
अभी मैं 'जम्बल वर्ड' हूँ 
कब बनूँगा 'फर्स्ट' 
अभी तो 'परसन थर्ड' हूँ 
 
'इन्डेफीनेट' है मेरा 'फियूचर'  
तू 'प्रेसेंट' की 'परफेक्ट' है 
'कनटिन्युअस' हो कैसे ये रिश्ता 
मैं इतना ज्यादा 'इनकरेक्ट'
 
मेरी इच्छाएँ 'एक्टिव' वाली
तू 'पेसिव' वाली 'वोइस'    
'प्लूरल' बन जाऊं ख्वाहिश मेरी
तेरी 'सिंगुलर' रहने की चोइस 
 
मेरी एक 'लैटर' के तूने 
हजारों बना डाले 'पैसेज'
थी 'अनसीन' जो धड़कन मेरी 
'सीन' हुई, बनी हँसी का मैसेज
 
मर जाऊँगा तिल तिलकर
इस ग्रामर का ऐसा चक्कर
इस जंजाल में उलझा हूँ
है कोई जो बने 'कनेक्टर'
 
    
 
 

सोमवार, 10 अगस्त 2009

रुक जाइए पिताजी, में इन अरहर के लोभियों से शादी नहीं कर सकती|

साथियों, बहन राखी का स्वयंवर भाग- १ क्या ख़त्म हुआ लगा ज़िन्दगी में कुछ बचा ही नहीं| बहुत मुश्किल से अरहर का नाम लेकर हौसला इकठ्ठा किया और यह पोस्ट लिखने बैठी|

आजकल मेरे आस-पास का वातावरण बड़ा ही प्रदूषित हो गया है| पता नहीं क्या क्या सुनाई देता है|

कल ही मेरी पडोसन अपने पति से बहुत बुरी तरह लड़ रही थी -
पत्नी, "देखो जी, बहुत हो गया| आप मेरे लिए इस जन्म  में अरहर  का मंगलसूत्र बनवाएंगे या नहीं| कई सालों से आप यूँ ही टरकाते आ रहे हैं| अब तो आपको छटा वेतनमान भी मिल गया है| मेरी सारी सहेलियों के पास अरहर की मोटी-मोटी चेनें हैं और मेरे पास एक मंगलसूत्र तक नहीं|"
पति, "आरी भागवान, तू चिंता मत कर| मैंने विश्व बैंक में लोन की अर्जी दे रखी है| जैसे ही वह पास हो जाएगा में तुझे सर से लेकर पैर तक अरहर से लाद  दूंगा|"
पत्नी, "तुम ऐसे ही झूठे दिलासे देते रहोगे और एक दिन मैं यह मसूर की माला  पहने-पहने ही मर जाउंगी| मेरे मरने के बाद तुम मुझे अरहर के खेत में दफना देना (वह जार-जार अरहर के आंसू रोने लगती है)|"
 
प्रेमी प्रेमिका से, "जानेमन, यह लो| पूरे एक साल तक जी-तोड़ मेहनत करने के बाद मैं तुम्हारे लिए पूरे दस ग्राम अरहर की अंगूठी बनवा कर लाया हूँ, अब तो मुझसे शादी के लिए हाँ कर दो|"
प्रेमिका (अंगूठी को खुरच कर), "यह तो नकली है| तुमने हीरे पर पीले रंग का पैंट कर दिया है| छि: मैं ऐसे भिखमंगे से शादी नहीं कर सकती| तुमसे तो अच्छा तुम्हारा दोस्त है जिसने मुझे पिछले हफ्ते अरहर का काम करी हुई पायल गिफ्ट करी थी| मैं तो चली उसी के पास|"

लड़केवाले जब लड़की देखने गए-
लड़के का पिता, "हमें आपकी लड़की पसंद है| यह बताइये दहेज़ में कितनी बोरी अरहर देंगे| दस बरस पहले बड़े बेटे की शादी में हमने दस बोरे प्याज लिया था| उसे बेच कर हमने अरहर की खेती करी| और हम करोड़पति बन गए . हमने अपने इस बेटे की पढाई में बहुत खर्चा किया है अब वसूली का टाइम है "

लड़की का पिता, "हमारे पास तो कुल पांच ही बोरी अरहर है| सब आपको ही दे देंगे तो अपने और बच्चों की शादी कैसे करेंगे?"

लड़के का पिता, "वो आप जानो| हम हमेशा अपने बराबर वालों से सम्बन्ध करते हैं क्योंकि अरहर ही अरहर को खींचती है| और हाँ, एक बात बताना तो हम भूल ही गए की बारातियों का स्वागत अरहर की दालमोठ से होना चाहिए|"
लड़की चीखती है, "रुक जाइए पिताजी, में इन अरहर के लोभियों से शादी नहीं कर सकती|"

मास्साब बच्चों से, "बच्चों यह बताओ कि अरहर कि खेती के लिए कैसी मिटटी और आबोहवा चाहिए?"
बच्चे, "मास्साब, हमने तो इसे बस किताबों में ही देखा है परन्तु दादाजी बताते हैं कि जब गरीब आदमी की महंगाई की मार से मट्टी पलीद हो जाए , वही मिट्टी इसके लिए सर्वाधिक उपयुक्त होती है और जब आम आदमी की इसके दाम सुनकर ही हवा खिसक जाए , उसी आबोहवा में यह फलती फूलती है

राखी से प्रेरणा पाकर लडकियां स्वयंवर रचेंगी कि जो भी शूरवीर आँखों पर पट्टी बांधकर सेकडों दालों की वेराइटियों  के बीच में से अरहर को सिर्फ छूकर बता दे उसी के गले में वे वरमाला डालेंगी.
 
लडकी की शादी के लिए विज्ञापन ......सुन्दर , सुशील ,अरहर कार्य दक्ष कन्या के लिए वर चाहिए .यह वह कन्या होगी जो चना या अन्य कोई भी पीली दाल को घोट घोट कर पका दे कि मेहमानों को उसका और अरहर का भेद स्पष्ट ना हो पाए .ऐसी कन्या की डिमांड हर वर पक्ष वाले को रहेगी .
 
इम्प्रेस करने के लिए ..........लोग दूसरों पर रौब गांठने या अपनी संपत्ति का प्रदर्शन करने के लिए अपने होंठों के आस - पास पीला रंग चिपका कर ही एक दूसरे से मिलने जाया करेंगे .
 
चमचागिरी करने के लिए ........बॉस कहेगा "क्या बात है , आजकल बड़ी अरहर गिरी कर रहे हो , कोई काम है क्या ?
 
अमीर घरों में .....
मालकिन ..."रामू , आज मलका की दाल में दो दाने अरहर के भी डाल देना , बहुत दिन हो गए इसका स्वाद चखे हुए .
मालिक ......."भगवान् , तुम दिन -प्रतिदिन फिजूलखर्च होती जा रही हो , याद है पिछले महीने तुमने अपने मायके वालों के आने पर अरहर की दाल बनवाई थी , और तुम्हारे मायके वालों की जय हो ! जाते ही इनकम टेक्स वालों को भेज कर हमारे घर में रेड डलवा दी थी , किसी तरह से दो किलो दाल रिश्वत में देकर मामले को रफा - दफा किया था.
 
पत्नी ......हे भगवान् ! मैं तो बर्बाद हो गयी तुमसे शादी करके , एक मेरा मायका था जहाँ हर महीने अरहर की दाल बना करती थी ,और यहाँ जब से आई हूँ उसकी खुशबू तक भूल गयी हूँ 
 
गरीब आदमी अपने बच्चों को सिखाएगा.....महात्मा गाँधी कहा करते थे ..
अरहर मत देखो , अरहर मत सुनो , अरहर मत बोलो ....
 
माँ  अपने बेटों से कहा करेंगी ......
बेटा ! मैंने तेरी बहनों को पानी में हल्दी घोल घोल कर पिलाया , लेकिन तुझे  हमेशा अरहर का रस पिलाया आज तू इस रस का क़र्ज़ अदा कर. 
बेटा ......माँ तू मेरा बैंक बेलेंस ले ले , गाड़ी ले ले ,  मैं  सड़क पर खडा होकर बिक जाऊँगा ,लेकिन मैं तेरा अरहर का क़र्ज़ अदा नहीं कर पाऊंगा ,मुझे माफ़ कर दे माँ ....
 
नैतिक  कथाएँ .....एक था राजा मूसलचंद ,उसके चार लड़के थे ,उसने अपनी संपत्ति में से चारों बेटों को एक एक एक बोरी अरहर बराबर बाँट दी थी ,.बड़े बेटे ne अपनी चटोरी पत्नी के कहने में आकर रोज़ पकाकर खा लिया ,और वह फिर से गरीब हो गया .
दूसरे ne  अपने बोरे को क़र्ज़ पर उठाना शुरू कर दिया . लोग अपने घर पर शादी - विवाह ,और अन्य अवसरों पर शान बघारने के लिए बोरे मांग कर ले जाने लगे .वह भी जल्दी ही पैसे वाला हो गया 
तीसरे राखी आधी अरहर खेत में बो दी और आधी बोरी भविष्य के लिए रख दी .
चौथा , जो सबसे अक्लमंद था, उसने अरहर फाइनेंस स्कीम खोली और अपने दोनों भाइयों को बोरों को दुगुना करने का प्रलोभन लेकर उनके बोरों को भी अपने पास रखवा लिया .इस प्रकार एक दिन वह सबके बोरों को लेकर विदेश  चंपत हो गया .
नैतिक शिक्षा ........इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि अरहर के मामले  में किसी पर भी आँख मूँद कर भरोसा नहीं करना चाहिए .
 
कुछ और कहावतों का भी रूप इस प्रकार बदल गया ....
 
'अरहर  का बोलबाला  ....उड़द का मुँह काला
 
'ये मुँह और अरहर की दाल '
 
'हर पीली वस्तु अरहर नहीं होती '
 

 

सोमवार, 3 अगस्त 2009

स्वयंवर के पश्चात राखी का एक्सक्लूसिव इंटरवियू.....

साथियों ...स्वयंवर  के पश्चात राखी का एक्सक्लूसिव इंटरवियू.....सिर्फ इसी चैनल पर ........
प्रश्न ......राखी जी , कई लोग चैनेल पर फोन करके कह रहे हैं कि जबसे उन्होंने इलेश की आर्थिक स्थिति के बारे में जाना  , वे समझ गए थे कि आप इलेश से ही शादी करेंगी .कई लोगों ने इस  भविष्यवाणी  के  इस आधार पर ज्योतिष परामर्श केंद्र तक खोल लिए हैं
 
उत्तर ..........बिलकुल गलत बात है , मैं शुरुआत से ही इलेश को फोलो कर रही थी , मैंने उसके सारे बैंक खातों को फोलो किया, राम और रवि भाइयों को टोरंटो भेजा उसकी संपत्ति को फोलो करवाया , ऐसे ही उन्हें अपना वर नहीं चुना मैंने .
 
प्रश्न .......मनमोहन ने आपसे शादी करने से क्यूँ इनकार किया ?
 
उत्तर ......मैं जब उसके साथ ऋषिकेश गयी तो मैंने उसके घर जाकर, सिर पर पल्लू रखकर , रसोई में जाकर ,सिल बट्टे पर  मसाला पीसने की इच्छा जाहिर की थी , लेकिन वह मुझे एक षडयंत्र के तहत गंगाजी ले गया कि पहले पवित्र नदी में स्नान कर लूँ तब रसोई में जाऊं , मैं उसकी बातों में आ गयी , जैसे ही मैंने पानी में डुबकी लगाकर बाहर निकली , मेरा मेकप विहीन चेहरा देखकर वह नदी में डूब गया , बड़ी मुश्किल से उसे बाहर निकाला तो वह बेहोशी में बड़बड़ाने  लगा कि "मैं तुमसे शादी नहीं कर सकता"
 
प्रश्न ........आपने घोषणा की थी कि यह कोई शो नहीं है , सच में स्वयंवर है , फिर वरमाला के बदले सिर्फ सगाई क्यूँ करी ?
 
उत्तर .......अभी मैं और इलेश जी एक दूसरे को समझना चाहते हैं
 
प्रश्न ...........वैसे तो जिन्दगी बीत जाती है तब भी पति पत्नी एक दूसरे को समझ नहीं पाते है , क्या एन .डी . टी . वी . ने इसके लिए कोई नया फार्मूला इजाद किया है ?
 
उत्तर .....दरअसल ये अन्दर की बात है कि अभी इलेश ने मुझे बिना मेकप के देखा नहीं है , मैं मनमोहन वाले वाकये से घबरा गयी थी इसीलिए ऐसा कदम उठाया .
 
प्रश्न ........आपको मनमोहन की एकमात्र दोस्त पर एतराज़ था , और इलेश तो सात गर्ल फ्रेंड छोड़ चुका है , फिर आप कैसे तैयार हो गईं ?
 
उत्तर ....दोस्त शब्द निहायत ही पिछड़ा हुआ है , गर्ल फ्रेंड कहते ही मुँह में रसगुल्ले की मिठास आ जाती है वैसे भी एक दोस्त के मुकाबले सात गर्ल फ्रेंड होना इलेश जी का हाई स्टेटस और रुतबे को बताता है .
 
प्रश्न ........आपने कहा था कि आप सच्चे प्यार की तलाश में हैं , आपको पैसा नहीं चाहिए , लेकिन सारे गरीब प्रत्याशियों को आपने शुरू में ही बाहर का रास्ता दिखा दिया था ?
 
उत्तर .........देखिये , सच्चे प्यार को बस महसूस किया जा सकता है , और दौलत प्यार की जननी है , वह सच्चा प्यार कदापि नहीं हो सकता जो ब्यूटी पार्लर का खर्चा ना उठा पाए , नियाग्रा फाल्स ना ले जाए पाए, पूरा पिक्चर हाल बुक ना करा पाए , वह किस काम का ?, गरीबी में रहने से सच्चे प्यार की फीलिंग्स नहीं आ पाती हैं .
 
प्रश्न .........आपके ऊपर यह इल्जाम लगता आया है कि आप नौटंकी बहुत करती है , अपनी तकलीफों और गरीबी को ग्लेमराइस करती हैं लोगों की सहानुभूति अर्जित करने के लिए आँसू बहती हैं .
 
उत्तर ........मैंने बहुत दुःख उठाये हैं , चाहती तो और भी कोई ढंग का या  मेहनत का  काम कर सकती थी , लेकिन उनमें मेरे पसंदीदा संघर्ष की गुंजाईश नहीं निकल पा रही थी , इसीलिए मैंने बेचलर पार्टियों में नाच करा , कपडे उतारे , स्टेज शो किये , तब जाकर लोगों को महसूस हुआ कि ये लडकी कितने संघर्ष करती है , पेट की खातिर कितने दुःख उठाती है .
 
प्रश्न .........क्या कारण है कि जब आप इलेश के गले में जयमाल डाल रही थी तो उसके घरवालों की अपेक्षा  मानस और क्षितिज के घरवाले ज्यादा खुश नज़र आ रहे थे ?
 
उत्तर ........{रोने लगती है} हे जीसस ! इन्हें माफ़ करना  , ये  पत्रकार नहीं जानते कि ये क्या कह रहे हैं .
 
प्रश्न .........आपका अंग्रेजी में हाथ तंग है और इलेश का हिन्दी में ...आप दोनों के बीच संवाद कैसे होगा ?
 
उत्तर .......सच्चा प्यार भाषा का मोहताज नहीं होता , मैं इलेश के दिल की भाषा पढ़ सकती हूँ .
 
प्रश्न ..........लेकिन प्यार की भाषा तो और दूल्हे भी बोल रहे थे जिन्हें आपने रिजेक्ट कर दिया था?
 
उत्तर .......हाँ ...लेकिन उनका हाथ रूपये - पैसे के मामले में भी तंग था , जो मैं बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं कर सकती .
 
प्रश्न .......आप हिन्दू परिवार से हैं और तेंतीस करोड़ देवी - देवताओं को छोड़कर आप जीसस की और मुड़ गईं , कोई ख़ास कारण ?
 
उत्तर .......पहले जब मैं बात बात में  हाय राम ! या हे भगवान् ! कहती थी तो लोग मुझे जाहिल समझते थे , जबसे मैंने आँखें चौड़ी करके ओ जीसस ! ओ गोड ! कहने लगी , पब्लिक  ने मुझे इज्ज़त देनी स्टार्ट कर दी.
 
प्रश्न .........दर्शक कहते हैं कि आपने उन्हें इतने हफ्तों तक बेवकूफ बनाया .
 
उत्तर ..........ओ गोड ! ऐसा कैसे कह सकते हैं वे ?मैंने इतने हफ्तों तक नॉन स्टाप मनोरंजन परोसा , लोगों ने सच का सामना , कॉमेडी सर्कस , लाफ्टर शो , हँस बलिये छोड़कर स्वयंवर को देखा , मैं रोती थी तो दर्शक हँस पड़ते थे , मेरी नित नई अदाओं और डायलोग सुनकर लोग हंसते हंसते लोट - पोट हो जाया  करते थे , कईयों को तो हार्ट अटैक आ गया था , मैंने हिन्दुस्तानी पुरुषों को यह बताया कि हम औरतें हर तरह के कपडों में अंग प्रदर्शन की गुंजाईश निकाल ही लेती है , चाहे वह साड़ी हो , शलवार  सूट  हो या फिर जींस टॉप ...अरे लोगों ने फैशन टी . वी . नहीं देखा इतने दिन , इससे ज्यादा मनोरंजन और क्या हो सकता है ? बताइए ?
 
प्रश्न ........एक वर अश्विन ने जब आपसे आपके पुराने प्रेमी अभिषेक और आपके संबंधों के बारे में जानना चाहा तो आप भड़क उठीं और उसे बाहर कर दिया था , जबकि आपने पहले कहा था कि आपका जीवन खुली किताब है और कोई भी आपसे कुछ भी पूछ सकता है क्यूँ ?
 
उत्तर .....मैं एक भारतीय नारी हूँ , मैंने अपनी मर्यादा कभी क्रॉस नहीं की , मैं और अभिषेक एक साथ रहते ज़रूर थे क्यूंकि मुंबई में मकान बहुत मंहगे है , हम दोनों किराया बाँट लेते थे, इससे काफ़ी बचत हो जाती थी.
 
प्रश्न .......'किस' का आपके जीवन में किस तरह से योगदान है ?
 
उत्तर .......'किस' ऑफ स्क्रीन दिया जाए तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होती , पहले मीका ने जब एक बार मेरा किस लिया था तो मैं हक्की - बक्की रह गयी थी , मैं सोच रही थी कि उसे थेंक  यू कहूँ , तभी उसने दुबारा मेरा किस ले लिया , तभी मेरी नज़र कैमरे  पर पड़ी और मैं शोक्ड  रह गई, और उसके विरुद्ध  मुकदमा दर्ज करा दिया ,और फिर स्वयंवर में लव खन्ना ने वही ओन स्क्रीन किस वाली गलती दोहरा दी , और हमेशा की तरह मैंने उसी समय उसका विरोध नहीं किया , लेकिन और दूल्हों ख़ास तौर से इलेश जी के एतराज़ करने पर उसे बाहर कर दिया , वैसे मैंने उसे स्टेंड बाय में रखा हुआ है.क्या पता कब उसकी ज़रुरत पड़ जाए .
 
 चलिए राखी जी आप जल्दी से जल्दी, एक बार फिर से शादी की नौटंकी करें , टी . आर . पी बढ़ाएं, लोगों का इसी तरह से मनोरंजन करें ......
 
राखी .....मैं चली मैं चली , देखो टोरंटो की गली, मुझे ढूंढें ना कोई ......

शनिवार, 1 अगस्त 2009

आम आदमी हो या अम्बानी ....गैस याद दिला देती है नानी

साथियों .....इन दिनों व्यस्तता की वजह से, और लैपटॉप खराब होने की वजह से  ब्लॉग से दूर रहना पड़ा....एक बार फिर से मैं हाज़िर हूँ .....अम्बानी बंधुओं के बीच गैस की बदबू फ़ैली हुई है ....वैसे ये गैस होती ही बड़ी नामुराद है ....देखिये इसके जलवे ...... 
 
 
गैस
 
जब अमीर आदमी की
संपत्ति बन जाती है
दुनिया की नज़रों में चढ़ जाती है
भाई - भाई में डालती है फूट
झगड़े की जड़ बन जाती है
 
गैस
 
जब गरीब आदमी के घर
पहली बार जाती है
खुशियों का अम्बार लग जाता है
धरती से लेकर आकाश तक
मंद - मंद मुस्कुराता है 
बिन त्यौहार के
छा जाती हैं खुशियाँ 
सारा मोहल्ला नाचता , गाता 
जश्न मनाता है 
 
गैस 
 
जब आम आदमी के घर 
ख़त्म हो जाती है 
सुबह से शाम तक 
लाइन में खड़े रहने के बाद भी 
मिल नहीं पाती है 
उसकी उम्मीदों की तरह ही 
धुँआ बनकर जाने कहाँ 
उड़ जाती है 
 
गैस 
 
जब काले बाज़ार में 
उजाले फैलती है 
गरीब के घर फिर से 
जल उठते हैं चूल्हे और स्टोव 
वह लम्बी - लम्बी कारों की 
गोद में जाकर चुपके से 
सो जाती है 
 
गैस  
 
जब पेट में भर जाती है
लाखों उपाय करने के बाद भी
बाहर नहीं निकल पाती है
दिल में चढ़कर
डाक्टरों से लड़कर
जान लिए बिना नहीं जाती है
 
गैस
 
जब एकज़ाम में नहीं लगता है
विद्यार्थियों का दिल डूब जाता है
साल भर की भाग - दौड़
बिलकुल बेकार हो जाती है
बंधी - बंधाई उम्मीदों पर
तुषारापात हो जाता है
 
गैस
 
करो - "कौन हूँ मैं "
कहता है जब पति परमेश्वर
फोन पर आवाज़ बदलकर
या कभी चुपके से पीछे आकर
आँखों को बंद कर जाता है
पुराने प्रेमियों का नाम लेने पर
तलाक तक हो जाता है
बिना पोलीग्राफ मशीन के
सच का सामना हो जाता है
 
गैस
 
कम दहेज़ लाने पर
अपने आप खुल जाती है
फटने पर हमेशा से  
बहू ही मारी जाती है
 
इसीलिये
 
साथियों ......................
इस मुई गैस का
बहिष्कार करना चाहिए
इसको दिलो - दिमाग और
घर - बार से
बेघरबार कर देना चाहिए
यह गैस ही है जो
आम आदमी हो या
अम्बानी
याद दिला देती है
नानी
क्यूँ ना जलाओ फिर से
घरों में चूल्हे
जिसकी नर्म आंच के
पास बैठकर गर्म रोटी खाने से
रिश्तों में पसरी ठंडक
दूर हो जाती है
एक बार फिर से 
माँ  
अपने बच्चों  के
बेहद  करीब आ जाती है