मैं कपड़े धोता
छप छप छप
तुम की बोर्ड पे करती
खट खट खट
मैं अपनी किस्मत फोडूं
सूखी रोटी रोज़ तोडूं
तुम लो बातों के चटखारे
मैं देखूं दिन में तारे
दाल में मेरी नमक नहीं
चावल भी खाऊं मैं कच्चा
कपड़े बिखरे जहाँ तहाँ
बच्चे फिरते यहाँ वहाँ
सारी दुनिया झूठी प्रिये!
एक तेरा ब्लॉग है सच्चा
टिप्पणियाँ तुम देती हो दिन भर
मैं जो कर दूँ एक भी तुम पर
आँखों से बह जाए गंगा जमुना
उठ जाता है घर सिर पर
मेहमान भी जो घर पे आते
अपनी चाय आप बनाते
कहते हैं वो हंस हंस कर
भगवान् बचाए उसको
जिसकी बीबी हो ब्लोगर
याद है मुझको वह काला दिन
जब तुमको मैंने नेट सिखाया
पटके ज़मीन में बच्चे तुमने
गोदी में लैपटॉप बिठाया
फूल सूख गए गमलों में सारे
ताजा गुलाब तेरा चेहरा
पीले पड़ गए मैं और बच्चे
तेरे होंठों का रंग हुआ गहरा
दीवाली में छाया अँधेरा
होली में नहीं उड़ा गुलाल
त्यौहार सारे फीके हुए
तेरा ब्लॉग हुआ गुलज़ार
एक्सेप्ट और रिजेक्ट के
तेरे इस खेल में
मोडरेट हो गया मैं बेचारा
अपनी डाली आप ही काटी
कालिदास हूँ किस्मत का मारा
हे प्रभु! करुणानिधान
करना बस तुम इतना काम
अगला जन्म जब मुझको देना
ये दौलत भी लेना
ये शौहरत भी लेना
छीन लेना मुझसे मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा देना
वो प्यारी सी पत्नी
वो मीठी कहानी
टिप्पणियाँ तुम देती हो दिन भर
जवाब देंहटाएंमैं जो कर दूँ एक भी तुम पर
आँखों से बह जाए गंगा जमुना
उठ जाता है घर सिर पर
badi majedaar baat likh di hai aapne
ये दर्द भरी दास्ताँ किस बेचारे पति की है ...बेचारा बहुत दुखी जान पड़ता है .....कितना सच कहा है उस बेचारे ने :) :)
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया ... ये अनिल कांत जी क्या प्रश्न कर रहे हैं ... ये दर्द भरी दास्तां हम सभी महिला ब्लागरों के पतियों की ही होगी न ।
जवाब देंहटाएंटिप्पणियाँ तुम देती हो दिन भर
जवाब देंहटाएंमैं जो कर दूँ एक भी तुम पर
आँखों से बह जाए गंगा जमुना
उठ जाता है घर सिर पर
वाह वाह!
BHAVISHYA KI BAATEIN HAI SHYAD :)
जवाब देंहटाएंमजाक-मजाक में आपने गंभीर बात की है। इसका उल्टा सिचुएशन भी सोचा जाए तो कम मजा नहीं आएगा। यानि, ब्लागर पति की पीडित पत्नी की मनोव्यथा। हा-हा-हा
जवाब देंहटाएंakhileshvar jee....ab ye to koi purush hi likhe tab maza aae....vaise ye kiskee daastaan hai....is maamle me main chup rahungee...
जवाब देंहटाएंउफ़ कितना दर्द है इस में :) सही व्यथा है यह ..बढ़िया लगी ..
जवाब देंहटाएंनमस्कार दीदी,
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना, "अगले जन्म मोहे ब्लॉगर पत्नी ना दीज़ो"...........
बहुत अच्छा व्यंग
जवाब देंहटाएंयाद है मुझको वह काला दिन
जब तुमको मैंने नेट सिखाया
पटके ज़मीन में बच्चे तुमने
गोदी में लैपटॉप बिठाया
अब कहे होते हो परेशान
खुद ही दिखाया था आपने
अंतरजाल का ब्लॉग
जैसा बोया वैसा पाया
काहे फिर ये रास्ता दिखलाया .
शेफाली जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया, आपने समय रहते सचेत कर दिया ......
जवाब देंहटाएंमजेदार :-)
जवाब देंहटाएंआप चाहें कितना भी चुप रहें
जवाब देंहटाएंपर सच सामने आकर रहता है
छिप न सकेगा राज है कितना गहरा
अब घरों में कंप्यूटर्स/लैपटाप का प्रवेश वर्जित होने ही वाला है
विवाह के सात फेरों के समय खाई जाने वाली कस्मों में भी
एक नई सौगंध जल्द ही जुडे़गी।
तलाक तलाक तलाक की
तरह
ब्लॉगनहीं ब्लॉगनहीं ब्लॉगनहीं
की धुन भी बजेगी।
लाख छिपाओ छुप न सकेगा
जवाब देंहटाएंराज यह कितना गहरा
दिल की बात बता देता है
असली नकली ब्लॉग (चेहरा)।
:) धीरे धीरे बोल कोई सुन न ले …ऐसा सच सबके सामने उजागर नहीं करते…॥:)
जवाब देंहटाएंHa Ha Ha ....badhiya hasy ras bikhera aapne.
जवाब देंहटाएंलगता है जैसे मेरी पत्नी ही आपकी पोस्ट के माध्यम से बोल रही है...याने ब्लॉग लेखन से पति ही नहीं पत्नियाँ भी उतनी ही पीड़ित हैं....कंवारों के शायद माँ-बाप हों...
जवाब देंहटाएंनीरज
याद है मुझको वह काला दिन
जवाब देंहटाएंजब तुमको मैंने नेट सिखाया
पटके ज़मीन में बच्चे तुमने
गोदी में लैपटॉप बिठाया
फूल सूख गए गमलों में सारे
ताजा गुलाब तेरा चेहरा
पीले पड़ गए मैं और बच्चे
तेरे होंठों का रंग हुआ गहरा
दीवाली में छाया अँधेरा
बात तो सही कही है आपने। ः)
बड़ी जायज पीड़ा है। हमने तो देखा भी है जब शेफ़ालीजी ब्लॉगर साथियों से मुलाकात कर रहीं थीं तो पांडेजी घर में कपड़े सुखा रहे थे।
जवाब देंहटाएंजब वास्तविकता कविता में आ जाये तो कविता और अच्छी और सच्ची लगने लगती है।
हा हा
जवाब देंहटाएंबेचारे ,क़िस्मत के मारे ब्लॉगर के पतियों से पूरी हम्दर्दी है लेकिन फ़िलहाल ब्लॉग से दूरी का कोई इरादा नहीं :)