साथियों ..माफी चाहूंगी .लेकिन .. ...........अब और चुनावी व्यंग्य नहीं .....आज से खालिस गंभीर कविता लिखूंगी ....
..
बस एक ही स्थान
जब बीबी गुस्से में पैर पटककर
कह देती है खूसट बुड्ढे जा कर मर
बच्चे भी करने लगते हैं मुँह पर बतिया
बापू हमरा अब गया है पूरा सठिया
प्यारी प्यारी कन्याएं जब
सीट छोड़ने लगती हैं
ताउजी हो जाएगा गठिया
बैठ जाइए,कहकर उठने लगतीं हैं
तब उनके दिल को
लगता है जोर का झटका
हे प्रभु ! ये किस पड़ाव पर उम्र के
, लाकर तुमने पटका
करते हैं वह तब
जीवन में पहली बार
उस शक्तिमान का ध्यान
आँखें मूंदने पर दिखता है
एक ही ऐसा स्थान
जहां साठ पार करने पर भी
लोग युवा कहलाते हैं
वो पहिन लेते हैं कुरता पायजामा
इस प्रकार नेता बन जाते हैं
ये ठीक है ..... खा़लिस गंभीर कविता ..... व्यंग्य का तो नाम-ओ-निशान नहीं !!
जवाब देंहटाएंसाठ पार कर तो ८० तक युवा नेता ही कहलाते रहते हैं..बेहतरीन.
जवाब देंहटाएंये गंभीर कविताओं का मन क्यूँ बनाया-किसी ने टोका क्या?? :)
जवाब देंहटाएंवाह जी वाह,,,
जवाब देंहटाएंगम भी भीर
जवाब देंहटाएंगंभीर
इतनी गंभीरता
तो चलेगी
इतना गंभीर होना अच्छी बात नहीं है। आपके व्यंग्य की धार ज़्यादा पसंद आती है।
जवाब देंहटाएंउड़न तश्तरी का पूछना वाज़िब है- किसी ने टोका क्या!?
ये गंभीरता किस लिए .
जवाब देंहटाएंyaKeenana bahut sahee vishleshan hai.
जवाब देंहटाएंवाह जी यह गंभीरता भी ख़ूब गंभीर रही
जवाब देंहटाएं---
चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें
Waakaii......
जवाब देंहटाएंBahut gambheer hai.
Gam (sadness) hai aur heer (diamond) hai.
~Jayant