सोमवार, 22 जून 2009

पीतल मफतलाल और दुखवंत सिंह का दुःख ....

साथियों ...इन दिनों दुखवंत सिंह अपने नाम के अनुरूप बेहद दुखी हैं .कल ही उनके कॉलम 'औरतों से दोस्ती ...मर्दों से बैर ' में हमने पढ़ा कि उन्हें पीतल मफतलाल की गिरफ्तारी पर बेहद अफ़सोस है ....
और इस मुद्दे पर मैं भी उनके साथ हूँ ...उसका नाम पीतल है ...तो क्या उसको सोने ,चांदी और चंद हीरे के आभूषण पहिनने का कोई अधिकार नहीं है ?
और किया ही क्या है उस बेचारी ने ? अपने देश में चंद आभूषण लाकर वह औंधी पड़ीं अर्थव्यवस्था को सुधारने का प्रयास ही तो कर रही थी .और साथियों जैसा कि  दुनिया जानती  ही हैं कि जब हम बहिनों के  पास पैसे होते हैं तो हम इतनी अँधा धुंध शौपिंग कर डालती हैं कि कई बार घर लौटने के लिए भी पैसे नहीं बचते हैं ,उधार मांग कर घर लौटना पड़ता है ...लेकिन मजाल है कि किसी भी ख़रीदी हुई चीज़ को वापिस करने की किसी बहिन ने सोची भी हो ....जो खरीद लिया सो खरीद लिया ...अवश्य ऐसा ही पीतल के साथ भी हुआ होगा ...लेकिन ,थोड़ी से भी दूरदृष्टि होती इस सरकार में ,तो वह देखती कि इससे देश का कितना फायदा होता .
जब बहिन पीतल उन आभूषणों को पहिनकर पार्टियों में जाती तो अन्य बहिनों के दिलों में अजगर लोटने लगते .वे भी देखा - देखी वैसे ही आभूषण लेने के लिए विदेशों का दौरा करतीं ..इससे एयर लाइन उद्योग में जो मंदी के बादल छाये हुए हैं ,उन्हें छँटने का मौका मिलता .जो बहिनें स्वाइन फ्लू के दर से विदेश का दौरा नहीं कर पातीं , वे अपने देश में ही हुबहू वैसे ही आभूषण बनवाने के लिए रात -दिन एक कर देतीं ...इससे अर्थव्यवस्था में दिन दूनी, रात चौगुनी वृद्धि होती ..नई नई ज्वेलरी शॉप खुलतीं ...उनसे मेचिंग डिजाइनर कपडों की बिक्री होती , फैशन  डिजाइनरों को रोज़गार मिलता ..हमारे जैसी गरीब बहिनें , इन अमीर बहिनों के देखा -देखी वैसे ही  आरटीफिशल आभूषणों को खरीदने के लिए एढी - चोटी का जोर लगा देतीं ..इस उद्योग को भी बहुत बढ़ावा मिलता ,इसे भी फलने  फूलने का मौका मिलता .
एक  ज़रा सी कर चोरी से अगर अर्थव्यवस्था पटरी पर आ जाती तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ता ?
पहले तो सरकार को किसी को भी गिरफ्तार करने से पाहिले उसके नेम और सरनेम  पर ध्यान देना चाहिए था ..मफत ..वैसे भी मुफ्त .. का अपभ्रंश है .चाहती तो जेवरों को मुफ्त में भी ला सकती थी ...लेकिन इमानदारी पूर्वक खरीद कर अपने देश में लाई थी ...और देश ने उसे इमानदारी का ये इनाम दिया .सरकार की इस अदूरदर्शिता से जो राजकोषीय घटा आएगा ..उसकी जिम्मेदारी किसकी होगी ?
उधर बेचारा ...शाइनी ...जिसके  नाम  में ही इतनी शर्म ...और झिझक छिपी हुई है ..वह क्या बलात्कार शर्मनाक  काम कर सकता है ? बताइए ....
 
 

6 टिप्‍पणियां:

  1. पीतल का मामला तो आपने सही उठाया है अब इस पर कुछ बड़ी-बड़ी हस्तियों की नज़र पड़ जाये तो धरना प्रदर्शन करके इसे इंटरनैशनल स्वरूप मिल सकता है।

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  2. हालाते हाजरा पर व्यंग्य दृष्टि खूब पडी है।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  3. सरकार के इस तरह के ही सिरफिरे कदमों की वजह से अर्थव्‍यवस्‍था का दम निकला जा रहा है। शाइनी की चमक मक मक हो रही है।

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  4. sambhal ke is post par mukadma ho sakta hai.

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