रविवार, 13 सितंबर 2009

हिन्दी - अंग्रेजी का वाक् युद्ध

हिन्दी - अंग्रेजी का वाक् युद्ध
 
अंग्रेजी ................................
तू हो गयी है आउट ऑफ़ डेट
मार्केट में नहीं तेरा कोई रेट
तू जो मुँह से निकल जाए
लडकी भी नहीं होती सेट
 
तेरी डिग्री को गले से लगाए
नौजवान रोते रहते हैं
तुझे लिखने , बोलने वाले
फटेहाल ही  रहते हैं
 
जिस पल से तू बन जाती है
किसी कवि या लेखक की आत्मा
उसे बचा नहीं सकता फाकों से
ईसा, खुदा या परमात्मा
 
मैं जब मुँह से झड़ती हूँ
बड़े - बड़े चुप हो जाते हैं
थर - थर कांपती है पुलिस भी
सारे काम चुटकी में हो जाते हैं
 
तुझे बोलने वाले लोग
समाज के लिए बेकवर्ड हैं
मैं लाख दुखों की एक दवा
तू हर दिल में बसा हुआ दर्द है
 
मैं नई दुनिया की अभिलाषा
तू गरीब , गंवार की भाषा
मैं नई संस्कृति का सपना
तू जीवन की घोर निराशा
 
ओ  गरीब की औरत हिन्दी !
तू चमकीली ओढ़नी पर घटिया सा पैबंद है
तेरे स्कूलों के बच्चे माँ - बाप को भी नापसंद हैं
मैं नई - नई बह रही बयार हूँ
नौजवानों का पहला -पहला प्यार हूँ
 
मुझ पर कभी चालान नहीं होता
मुझे बोलने वाला भूखा नहीं सोता
मुझमे बसी लडकियां कभी कुंवारी नहीं रहतीं
शादी के बाद भी किसी का रौब नहीं सह्तीं
मुझको लिखने वाले बुकर और नोबेल पाते हैं
तुझे रचने वाले भुखमरी से मर जाते हैं
 
हिन्दी .........................................
मेरे बच्चे तेरी रोती भले ही खा लें
तेरी सभ्यता को गले से लगा लें
सांस लेने को उन्हें मेरी ही हवा चाहिए
सोने से पहले मेरी ही गोद चाहिए
 
बेशक सारे संसार में आज
तेरी ही तूती बोलती है
मार्ग प्रगति के चहुँ ओर
तू ही खोलती है
पर इतना समझ ले नादाँ
माँ फिर भी  माँ ही होती है

29 टिप्‍पणियां:

  1. जननी जन्‍मभूमि स्‍वर्गादपि गरीयसी
    ...
    तुर्क ब तुर्क अंग्रेजी का चेहरा एक दिन अवश्‍य होगा सुर्ख।

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  2. आपको हिन्दी में लिखता देख गर्वित हूँ.

    भाषा की सेवा एवं उसके प्रसार के लिये आपके योगदान हेतु आपका हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ.

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  3. बेहतरीन रचना..प्रभाव छोड़ती है.

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. बहुत ही भावपूर्ण, हिंदी को सलाम करती रचना। पसंद आई।

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  6. बहुत ही बढिया...उम्दा किस्म की रचना...


    जय हिन्दी...

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  7. दिलचस्प रहा हिंदी अंग्रेजी का यह वाक् युद्घ हिंदी का करार हिंदी के करारे जवाब का तो कहना ही क्या ..बहुत आभार इस सुन्दर रचना के लिए..!!

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  8. बहुत सुन्दर रचना हैं।
    हिन्दी-दिवस की शुभकामनाएँ!

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  9. बहुत सटीक रचना है . विशेष रूप से आज के दिन की महत्ता को देखते हुए .बधाई

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  10. बहुत ही प्रभावशाली रचना. शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  11. कविता पढते हुए जैसे जैसे आगे बढती गयी .. थोडी मायूसी आती गयी .. सत्‍य ही तो लिखा है आपने .. पर अंत मुस्‍कराहट दे गया .. मां मां ही होती है .. और इतना अनुभव अवश्‍य है मुझे .. दिन सबके फिरते हैं !!

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  12. ब्‍लाग जगत में आज हिन्‍दी के प्रति सबो की जागरूकता को देखकर अच्‍छा लग रहा है .. हिन्‍दी दिवस की बधाई और शुभकामनाएं !!

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  13. हिन्दी हमे बचाना है, हम सबको बढते जाना है। हिन्दी दिवस की हार्दिक बधाई।

    http://hindisahityamanch.blogspot.com

    http://mithileshdubey.blogspot.com

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  14. waah....kya sahi kataksh !

    क्या कहें??????????
    कहने को रहा क्या है,
    हम हिन्दुस्तानी हैं,
    पर अंग्रेजी बोलने में शान,
    अंग्रेजी पहनावे में चलने की शान......
    बड़े शहरों में , बड़ी दुकानों में जैसे लैंड मार्क,क्रॉस वर्ल्ड ...
    .यहाँ तक कि फुटपाथों पर भी
    सिर्फ अंग्रेजी किताबें होती हैं.....
    हिंदी ढूंढते
    आस-पास चलते लोग
    यूँ देखते हैं मानो कह रहे हों.....
    'अमां तुम किस वतन के हो
    कहाँ की बात करते हो....

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  15. माँ फिर भी माँ होती है..
    ज़बरदस्त...
    हिंदी दिवस की शुभकामना !!

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  16. हिंदी माँ है तो अंग्रेजी मौसी है .

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  17. waaaaaaah bahai angrezi ... waise maze ki baat ye hai ki ..aap ki kavita ki "angrezi" bhi tooti footi hindi bol leti hai ...hehehehe ..isse badhiya bat kya hogi hindi ke liey ..heheh

    bahut hi behtareen lagi ye rachna aap ki .khas kar hindi ka diya gaya zawaab ..

    jay hoooooooo

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  18. हिन्दी तो हिन्दी होती है ।
    जैसे औरत के माथे की बिन्दी होती है ।
    माथे की बिन्दी बस बिन्दी होती है ।
    वैसे ही हिन्दी भी बस हिन्दी होती है ।

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  19. अच्छी रचना है. शैफाली जी आपकी योग्यताओं की एक एक परत धीरे धीरे खुलती जा रही है.
    बधाई.

    प्रमोद ताम्बट
    भोपाल

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  20. मां मां ही होती है .. और दिन सबके फिरते हैं !!

    सही कहा.

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  21. शेफाली जी
    बेहद खूबसूरत प्रस्तुति
    हम में से ही कुछ लोगों को बचाना होगा हिंदी माँ को ! और आपकी ये रचनाये जरूर लोगों के मन पर कुछ प्रभाव छोड़ने में कामयाब होंगी |
    बहुत बहुत बधाइयाँ |

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  22. सार्वजनिक नल पर सम्वाद करती दो स्त्रियो के सम्वाद के शिल्प मे यह रचना अच्छी लगी

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  23. मै रश्मि प्रभा जी की बात से सहमत नही हूँ की लोग हिंदी किताबें नही पढ़ते ........इस समय मेरे शहर लखनऊ में राष्ट्रिय पुस्तक मेला लगा है ,और आप सब को जानकर ख़ुशी होगी की इस साल डेढ़ करोड़ बिक्री का अनुमान है जिसमें हिंदी की किताबों का प्रतिशत दोगुना से ज्यादा है .........सिर्फ ४ दिन की बिक्री में उदय प्रकाश की ''पीली छतरी वाली लड़की '' की ही ३० प्रतियाँ बिक गई .

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  24. अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
    मैनें अपने सभी ब्लागों जैसे ‘मेरी ग़ज़ल’,‘मेरे गीत’ और ‘रोमांटिक रचनाएं’ को एक ही ब्लाग "मेरी ग़ज़लें,मेरे गीत/प्रसन्नवदन चतुर्वेदी "में पिरो दिया है।
    आप का स्वागत है...

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  25. wahhhhhhh kya kataksh kiya hai..

    vayang ko marm se bandh diya hai
    lambe samay ke baad aapki kalam ka raspan kar paya hun
    man harshit hua aapke ye bhaav padhkar.

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