इधर बहुत दिनों बाद बाज़ार जाना हुआ| जब से लौट कर आई हूँ, सांस लेने में बहुत तकलीफ हो रही है| सीने में भारीपन सा महसूस होता है, हर समय किसी अनहोनी की आशंका से दिल धड़कता रहता है, माथे पर ठंडक के दिनों में भी पसीना चुहचुहा जाता है| सोच रही हूँ कुछ दिन अस्पताल में भर्ती हो आऊं| मेरी हालत भी कुछ - कुछ भाजपा सी हो गई है|
न मैं चीन और भारत के बीच तिब्बत और अरुणाचल को लेकर बढ़ते तनाव से चिंतित हूँ, न ही पकिस्तान और भारत के बीच कौन सी नई समस्या खड़ी होने वाली है इसको लेकर परेशान हूँ| इनको सुलझाने के लिए लिए मैंने घंटों लाइन में खड़े होकर जिनको वोट दिया है, वे ही काफ़ी हैं| मैं सोने के सत्रह हज़ारी होने की बात से भी कभी पीली नहीं पड़ी| इसके लिए मेरी स्वर्ण-प्रेमी बहिनों ने बाज़ार पर कब्ज़ा कर रखा है, जो सोने के पांच रूपये सस्ता होते ही नाना प्रकार के गहने बनवाने के लिए सुनारों के पास दौड़ पड़ती हैं| मुझे भारत के आई पी एल से बाहर हो जाने पर कतई अफ़सोस नहीं है| हो भी क्यों? इसके लिए जब देश की सवा सौ करोड़ जनता भी कम पड़ जाती है तो मेरी क्या बिसात? बॉलीवुड के नए लवर बॉय को लेकर भी में तनाव में नहीं हूँ| इसके लिए मेरे घर का सबसे होशियार प्राणी, यानि बुद्धू बक्सा, ही पर्याप्त है| मैं दुनिया के सन् दो हज़ार बारह में समाप्त हो जाने की भविष्यवाणियों को लेकर ज़रा सी भी दुखी नहीं हूँ क्योंकि इसकी चिंता करने के लिए अरबों - खरबों की संपत्ति वाले लोग मौजूद हैं| मैंने तो जब से होश संभाला है तभी से कोई न कोई दुनिया के ख़तम होने की भविष्यवाणी करता ही रहता है, इसलिए इस तरह की आशंकाओं के बीच जीने की आदत सी हो गई है| अब तो हाल ये है कि जब कोई भविष्यवाणी नहीं करता तब दुनिया के ख़त्म होने की टेंशन हो जाती है| मेरे बीमार होने की बात से कहीं आप यह तो नहीं समझ रहे हैं कि मैंने कई करोड़ की संपत्ति जमा कर ली है और अब मैं गिरफ्तार होने के भय से अस्पताल जाकर आराम फ़रमाने की सोच रही हूँ? या कहीं आप यह अंदाज़ तो नहीं लगाने लग गए कि मैं महंगाई के डर से अस्पताल की रोटी तोड़ने की सोच रही हूँ? नहीं ऐसा कतई नहीं है|
असल बात यह है कि जब मैं कल बाज़ार गई थी तो अपनी आदत के अनुसार एकमात्र सस्ती, यानि चने की दाल के पास जाकर खड़ी हो गई थी| चने के पास जाने की नौबत अचानक ही नहीं आ गई| जिस तरह भाजपा के नताओं ने मुसीबत के समय अपनी पार्टी का साथ छोड़ दिया, उसी तरह मेरे रसोईघर की दालों ने भी ज़माने का चलन देखकर दल बदल लिया| अभी कल ही की बात लगती है जब मैं अपने रसोई घर में विभिन्न प्रकार की दालों को पारदर्शी डिब्बों में कैद करके रखा करती थी, ताकि आने जाने वालों की नज़र उन पर पड़ जाए और समाज में मेरा मान - सम्मान बरकरार रहे| पारदर्शी होते हुए भी उन के बाहर उनके नाम की चिपकी लगाकर उनका सम्मान बढ़ाया| कितने सुहाने दिन थे जब भाजपाइयों की तरह सभी सहयोगी यथा तेल , मसाले और अनाज मिलकर के एक स्वस्थ और स्वादिष्ट थाली का निर्माण किया करते थे , जिसे देखकर अच्छे - अच्छे पक्ष में बैठे हुए लोगों के मुँह में पानी आ जाया करता था , देखते ही देखते पासा ऐसे पलटा कि थाली ने पानी भी नहीं माँगा . उन्होंने मेरी इज्ज़त का ज़रा भी ख़याल नहीं किया और फ़ौरन पाला बदल लिया| तब मैंने लपक कर चने का दामन जो थामा तो अभी तक मजबूती से उसे थामे रखा है| बाज़ार में न चाहते हुए भी मैं अपनी औरत होने की आदत से बाज नहीं आयी और अरहर आदि अन्य दालों के साथ उसका वार्तालाप सुनने लगी| हमेशा चुप रहने वाली चने की दाल भी आज गरज रही थी और चिल्ला-चिल्ला कर कह रही थी, ''बस, अब बहुत हो गया मेरा अपमान| मैं इसे और बर्दाश्त नहीं कर सकती| जिसको देखो वही मुँह उठाये चला आता है और मुझे डिब्बे मैं बंद करके रसोई में रख देता है| बहिन अरहर को देखो| उसे जो भी ले जाता है सीधे ड्राइंग रूम में सजा देता है| आने जाने वालों पर रौब मारता है| सारी दुनिया उसकी मुरीद हो चुकी है| व्यंग्यकारों ने उस पर बेहतरीन व्यंग्य लिख दिए हैं| ग़ज़ल भी अब प्रेम-प्यार इत्यादि फ़ालतू की चीज़ों से निकल कर, लहराती हुई अरहर के बहर में आ गई है| कविताओं में उसके गुणगान गाये जा रहे हैं| वह कवि सम्मेलनों की शोभा बन गई है| वह भी पीली, मैं भी पीली और हमारी किस्मत देखो कितनी अलग-अलग है| बिलकुल ऐसा लग रहा है जैसे एक अम्बानी को सत्ता मिल गई हो और दूसरे अम्बानी का पत्ता कट गया हो| एक को गैस मिल गई हो और दूसरे को चूल्हा जलाना पड़ गया हो| आखिर कहाँ तक मैं ये नाइन्सफ़ी बर्दाश्त करुँ? अब तो मसूर बहिन ने भी सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं और अब कौन यह कहने की हिम्मत करेगा', 'छाती पर मूंग दल दिया'| बल्कि अब तो मूंग ने सबकी छातियाँ दल दी हैं| सारी दाल बहिनें मुहावरों से गायब हो चुकी हैं, एक मैं ही अभी तक ज़िन्दा हूँ| लोग हैं कि नाकों चने चबाकर भी मुझे खाए जा रहे हैं| आखिर मेरा भी तो एक स्टैण्डर्ड है| सालों तक मुझे गुड़ के साथ खाकर गरीबों ने अपना पेट भरा है| कभी मेरा सत्तू बनाकर खाया तो कभी बेसन बनाकर भांति - भांति के पकवान बनाए| मुझे कबाब तक बनाया गया और आज मुझे ही हड्डी करार दे दिया गया| मुझे ही लड्डू के रूप में बनाकर मुँह को मीठा किया गया, हर तरह से मेरा शोषण किया गया और जब सम्मान देने की बारी आई तो अरहर बहिन को चुन लिया| आज मुझे ही कबाब की हड्डी बना दिया गया| मेरी ही बहिन के हाथों हर कदम पर मेरा अपमान हुआ| एक सा रंग-रूप और भाग्य का खेल देखो| एक करोड़ों में खेल रही है और एक सबकी कटोरियों में पड़ी है| अब फैसला हो ही जाना चाहिए| आज के बाद मैं बाज़ार से गायब हो जाउंगी| तब मेरी अहमियत दुनिया को समझ में आएगी.'
इस प्रकार चने की दाल मेरी समस्त आशाओं पर तुषारापात करते हुए शान से मटकती हुई चली गई| अन्य बची-खुची दालें भी गुस्से में खदबदाने लगीं| गेहूं के बोरे में से भी चीखने चिल्लाने की आवाजें आने लगीं| तभी से मैं खुद को बीमार महसूस कर रही हूँ और यही कारण है कि अस्पताल जाकर भर्ती होने का विचार मेरे मन में आया|
बहुत ही करार व्यंग किया है आपने ...आजकल के हालात् पर....
जवाब देंहटाएंआप जल्दी से स्वस्थ हो जाएँ यही कामना करता हूँ....
बहुत अच्छा लगा यह लेख आपका...
आप जल्दी से स्वस्थ हो जाएँ यही कामना करता हूँ....
जवाब देंहटाएंAAPNE APNE SWASTH KE CHALTE PATA NAHI KITNO KA SWASTH KHARAB KAR DIYA HAI ..... BAHOOT HI KARAARA VYANG HAI ...
जवाब देंहटाएंAAPKE SHEEGHR SWASTH KI KAAMNA KARTA HUN ...
जल्दी से आप स्वस्थ हो जाएं .. यही कामना करती हूं .. वैसे बीमारी में भी आपने हमें एक सुंदर पोस्ट पढवा ही दिया .. धन्यवाद !!
जवाब देंहटाएंगज़ब की अस्वस्थता है...
जवाब देंहटाएंकवितामय शुरूआत के बाद व्यंग्य से गुजरती हुई...
हम कामना ना भी करें तो भी स्वस्थता आपका अधिकार है ही...
सुन्दर :-)
जवाब देंहटाएंआप हरगिज़ अस्पताल में भर्ती होने का खयाल छोड़ दें अभी मसूर की दाल ज़मीन पर है।
जवाब देंहटाएंप्रमोद ताम्बट
भोपाल
www.vyangya.blog.co.in
http://vyangyalok.blogspot.com/
सॉलिड कटाक्ष...लेकिन फिर भी चेक अप तो करा ही लो. :)
जवाब देंहटाएंशारीरिक बीमारी से जल्दी निजात पाये . यह सांसारिक बीमारी तो शायद ही जल्दी थमे .
जवाब देंहटाएंआप जल्द से जल्द ठिक हो जायें यही दुआ करता हूँ । व्यंग लाजवाब रहा...........
जवाब देंहटाएंपहलेपहल तो यही लगा कि आपकी तबियत नासाज़ है लेकिन चन्द पंक्तियों के बाद ही ये लगने लगा कि बिमारी का दामन थाम के आप कईयों को अपने व्यंग्य में लपेटने वाली हैँ ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन व्यंग्य
शेफ़ाली जी, हम तो आपके बिमार होने का समाचार सुन कर आए थे यहां आने पर लगा की आपकी तरह मैं भी बिमार हुं फ़िर सोचा तो देखा की सौ करोड़ जनता भी बिमार है, इस मंहगाई ने तो एक महामारी का का रुप लेकर पता नही कितनों की धड़कने ही बंद कर दी,उपर वाले का आशीष है कि हम अभी तक जिंदा हैं,
जवाब देंहटाएंआपके ब्लाग पे दुसरी बार आया, बहुत ही सुंदर व्यंग्य पाया। आभार
bhai kamaaaal ka shouk charraaya hai aapko bhi
जवाब देंहटाएंis manhgaai me..
hum swasth rah kar hi pareshaan hain aur apko aise me bimaar padne kee rayisi soojh rahi hai..
vaise kahna mat kisi se...aapka aalekh padhne se pahle main bhi daal se aankh nahin mila paa raha tha.. ankhen band karke khaa raha tha..
______waah !
bahut hi shaandaar aur svasth aalekh !
aur haan ! kripya bimar na hona..aap svasth zyada achhi lagti hain..
wish you all the best
get well soon
is se zyaada angrezi mujhe nahin aati
dhnyavaad !
इस बीमारी से तो और भी लोग त्रस्त है पर हर कोई आपकी तरह ब्लॉगर नहीं है सो ..........
जवाब देंहटाएंवैसे आप और हम जल्दी इस बीमारी से निजात पाये यही कामना है !
हमारे और आपकी बीमारी के लक्षण बहुत मिलते जुलते हैं ...दाल की मारी गृहणियां जो ठहरी ...हा हा ...
जवाब देंहटाएंकरारा व्यंग्य करते करते हम तो थके ...दालों पर कुछ असर ना हुआ ...!!
पहली पंक्ति पढकर तो डर ही लगने लगा .. कुछ देर बाद समझ मे आया कि यह शेफाली है .. ऐसे ही कुछ भी थोड़े ही कह देगी । मै तो पारदर्शी डिब्बों मे सजी दाल का रूपक याद कर अब तक हँस रहा हूँ किचन से श्रीमती जी देख रही हैं ..इन्हे क्या हो गया है कल तक तो बिलकुल ठीक थे ।
जवाब देंहटाएं'दर्द-ए-दिल' सुना था ..... ये 'दर्द-ए-दाल' पहली बार सुना !!!
जवाब देंहटाएं...और आप सचमुच तो बीमार नहीं है ना???
एक साथ कई बातों पर तंज कस दिया है पर अच्छा है। पढ़कर मजा आया।
जवाब देंहटाएंओहो.....लाइलाज बीमारी ! फिर भी, मान गए ......सांस चढ़ी होने पर भी तरकश के सारे शब्दभेदी बाण चला दिए ,
जवाब देंहटाएंमुबारक हो इस दक्षता के लिए
शेफाली बहना,
जवाब देंहटाएंशरद कोकास जी और ललित शर्मा भाई की बात से सहमत...हम सभी बीमार हैं...लेकिन हमें बीमार होने का भी हक कहां हैं...प्राइवेट वाले वैसे ही पूरा खून निचोड़ लेंगे...सरकारी बिना टिकट ऊपर की फ्लाइट पकड़ा देंगे...
हां...बीजेपी, चने की दाल और मंदिर के घंटे की हालत आजकल एक जैसी है...जिसे देखो आकर बजा जाता है....
जय हिंद...
sachai bayan karta lekh
जवाब देंहटाएंसारी समस्याएँ एक तरफ और यह दाल बहिन कथा एक तरफ ,बिलकुल सही...
जवाब देंहटाएंमेरे बीमार होने की बात से कहीं आप यह तो नहीं समझ रहे हैं कि मैंने कई करोड़ की संपत्ति जमा कर ली है और अब मैं गिरफ्तार होने के भय से अस्पताल जाकर आराम फ़रमाने की सोच रही हूँ?
जवाब देंहटाएंसोलिड समसामयिक व्यंग...
aapki jaldi swasthya ki kaamna ke saath.
जवाब देंहटाएंन नननन बीमार और आप ? अरे सूट ही नहीं करता आपको......वो टी हम जैसों के लिए है मास्टरनी जी.....
जवाब देंहटाएंअभी तो आप बस फटाफट उठिए.....और लोगों को 'हंस-टोनिक' दीजिये...
बहुत ही धाँसू व्यंग .....जवाब नहीं आपका...
अद्भुत..बेहतरीन व्यंग्य रचना...आपने तो एक ही पोस्ट में सबको लपेट लिया ।
जवाब देंहटाएंएक व्यक्ति हमसे पूछने लगा कि " शर्मा जी, ओर सुनाईये ! आपका काम धन्धा कैसा चल रहा है?" तो हमने भी कह दिया कि " ठीक है! बस ईश्वर की कृपा से दाल-रोटी चल रही है "
सुनते ही वो झट से बोल पडा "वाह्! फिर तो आपके पूरे ठाठ हैं "
:)
आपके स्वास्थ्य लाभ की कामला करता हूँ!
जवाब देंहटाएंशेफ़ाली जी, आपके जल्दी स्वस्थ होने की कामना करता हू
जवाब देंहटाएंक्या मा साब सबको चिंता में डाल दिया आपने सीधे सीधे कहिये न ..पोस्ट ठेलने के लिये ही बीमार शीमार टाईप फ़ील कर रही थी ..थोडा सा दालेरिया भी हो गया था ..सो इस संक्रमित संक्रमण से जो निकला ...वो ये धांसू ठांसू टाईप पोस्ट बन कर निकला ..
जवाब देंहटाएंअब तो ठीक हो गयी होंगी।
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