ना एकाउंट
ना एमाउंट
ना कोई कार्ड
किस्मत थी हार्ड
पढ़ा था अखबार
सुबह सुबह
पहुँच गए
ऐ. टी. एम्.
ऐसे बन गए
यारों फूल हम ....
रचनाधर्मी
उन्होंने
हर रचना को
धर्म से जोड़ के देखा
दूसरे धर्म की हर रचना को
फाड़ा, जलाया, फेंका
इसीलिए
खुद को सदा
रचनाधर्मी कहा ...
बहुत खूब .
जवाब देंहटाएंपूरे माह
जवाब देंहटाएंअप्रैल फूल
बनने बनाने
का धर्म
जो निबाहे
वो कौन सा
फूल कहाए
फूलधर्मी ?
अच्छी है ....
जवाब देंहटाएंkyaa khoob kaha....neeraj ji ke shabdon men kahun to....badaa mazaa aayela hai....
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया!!
जवाब देंहटाएंअच्छी क्षणिकाएं हैं।
शेफाली जी!
जवाब देंहटाएंआपकी क्षणिकाएँ अच्छी हैं,
सारगर्भित हैं।
बधाई स्वीकार करें।
शेफाली जी!
जवाब देंहटाएंआपकी सारगर्भित क्षणिकाएँ अच्छी हैं,
बधाई स्वीकार करें।
rachana achchi lagi... blog par pahli baar aakar achcha laga... bas likhte rahiye.. hum aapki post padne aate raheinge... thanks
जवाब देंहटाएंaapki rachan achchi lagi... blog par pahli baar aana hua ... kafi achcha laga ... bas issi tarah se likhte rahiye ....
जवाब देंहटाएंthanks
kya baat hai
जवाब देंहटाएंअच्छी क्षणिकाएं
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी यह क्षणिकाएं
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