मंगलवार, 30 जून 2020

गो कोरोना गो

प्रस्तुत है कोरोना पर कविता, श्रोताओं की भारी डिमांड पर -

इस कोरोना काल में 
महामारी के जाल में 
नित नई फरमाइशें हैं 
नित नई ख्वाहिशें हैं | 

सुबह को खाने हैं समोसे 
दिन को मीठी - मीठी खीर 
शाम को गर्मागर्म पकौड़े 
रात को शाही पनीर | 

सबसे ज़्यादा टूटा है 
महिलाओं पर इसका कहर 
बीत रहे रसोई में दिन 
रसोई में ही बीते सहर | 

दुनिया से हो गयी हूँ आइसोलेट 
हूँ रसोई में कवारंटीन 
पैर पडूँ तुम्हारे कोरोना 
जाओ तुम वापिस अपने चीन |  

6 टिप्‍पणियां:

  1. महिलाएं घर पर हैं सही है। पुरुषों को भी काम पर लगाया जा रहा है :)
    वैसे आप अपनी रचना के साथ अवतरित हुई कोरोना के बहाने ये भी कम है क्या? आते रहिये। लगातार कुछ ना कुछ लेकर।

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  2. काश ! कोरोना आपकी बात मान ले

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  3. मोर्चा तो वैसे महिलाओं ने ही संभाला ही है हैल्थ से वैल्थ तक
    बहुत अच्छी रचना

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  4. सुन्दर रचना!
    धन्यबाद आपका,मैं भी आपका एक पाठक हूँ|लिखती रहें|

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  5. आपने बहुत ही शानदार पोस्ट लिखी है. इस पोस्ट के लिए Ankit Badigar की तरफ से धन्यवाद.

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