बुधवार, 1 अप्रैल 2009

क्षणिकाएं

 
 
ना एकाउंट
ना एमाउंट
ना कोई कार्ड
किस्मत थी हार्ड
पढ़ा था अखबार
सुबह सुबह
पहुँच गए  
ऐ. टी. एम्.
 ऐसे बन गए
यारों फूल हम ....
 
रचनाधर्मी 
 
उन्होंने 
हर रचना को 
धर्म से जोड़ के देखा 
दूसरे धर्म की हर रचना को  
फाड़ा, जलाया, फेंका  
इसीलिए 
खुद को सदा 
रचनाधर्मी कहा ... 

12 टिप्‍पणियां:

  1. पूरे माह
    अप्रैल फूल

    बनने बनाने

    का धर्म

    जो निबाहे
    वो कौन सा

    फूल कहाए

    फूलधर्मी ?

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  2. बहुत बढिया!!
    अच्छी क्षणिकाएं हैं।

    जवाब देंहटाएं
  3. शेफाली जी!
    आपकी क्षणिकाएँ अच्छी हैं,
    सारगर्भित हैं।
    बधाई स्वीकार करें।

    जवाब देंहटाएं
  4. शेफाली जी!

    आपकी सारगर्भित क्षणिकाएँ अच्छी हैं,

    बधाई स्वीकार करें।

    जवाब देंहटाएं
  5. rachana achchi lagi... blog par pahli baar aakar achcha laga... bas likhte rahiye.. hum aapki post padne aate raheinge... thanks

    जवाब देंहटाएं
  6. aapki rachan achchi lagi... blog par pahli baar aana hua ... kafi achcha laga ... bas issi tarah se likhte rahiye ....
    thanks

    जवाब देंहटाएं