मंगलवार, 21 अप्रैल 2009

जूता नहीं जनता का प्यार

जूते चप्पल की बारिश में सभी ने अपनी कलम को धार प्रदान की ...मैं क्यूँ पीछे रहूँ ...देर से ही सही ...पर लिखूंगी ज़रूर ..   ..
 
 
परिवर्तन के इस दौर को
कर लो अब स्वीकार
अंडे टमाटर पहुँच से बाहर
जूतों की इसीलिए बौछार
झुका लो सिर को धीरे से
प्यार से कर लो अंगीकार
बुरा न मनो माननीयों
इस में छिपा जनता का प्यार
शुक्र मना लो पालनहारों
देश के तुम  खेवनहारों
तुम्हारे ताबूत की आखिरी कील  
जूतों में नहीं होती हील ....
 

5 टिप्‍पणियां:

  1. शेफाली जी!
    ऐसा प्यार तो केवल भ्रष्ट नेताओं को ही मिलता है।
    क्या आप भी उन खुश-नसीबों में अपना नाम लिखवाना चाहती हो? इसके लिए मुफ्त में पंजीकरण उपलब्ध है।

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  2. चलिए आप ने भी अपना आक्रोश प्रदशित कर बता ही दिया कि मनमर्जी सदा नहीं चलती.
    - विजय

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  3. beni pelag,
    bahut dinan baad tumar blog main aaiye!!
    ya to jwat chalun lag raiye...

    ..badiya:
    बुरा न मनो माननीयों
    इस में छिपा जनता का प्यार
    शुक्र मना लो पालनहारों
    देश के तुम खेवनहारों
    तुम्हारे ताबूत की आखिरी कील
    जूतों में नहीं होती हील ....

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  4. सच है, यह है,
    तुम्हारे ताबूत की आखिरी कील

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