साथियों .....जब तक चुनाव नहीं निपट जाते ...कुछ और लिखना मुश्किल हो रहा है ....रोज़ इतने मसाले मिल जा रहे हैं ...और कोई विषय सूझ ही नहीं रहा ....तो फिर से कुछ और चुनावी क्षणिकाएं हाज़िर हैं ....
मजबूरी
उनकी,
मजबूरी को लोग
समझ नहीं पाते हैं
उन्हें,
पद का लोलुप
सत्ता का भूखा
बताते हैं
नादान हैं
नहीं जानते
कि वे
देश सेवा
तभी कर पाते हैं
जब
राजनीति में आते हैं
ग्रेट उपाय
झुग्गी में,
झोंपडी में
गरीबों की
बस्ती में
दीन दुखियों
के पास
बंधाने को आस
उनके पास
उपाय है ख़ास
पिघल न जाए कहीं
इस दगाबाज़ दिल का
कतई भरोसा नहीं
इससे निपटने का
परमानेंट
रिज़ल्ट है जिसका
सौ परसेंट
मिल गया उनको
एक उपाय ग्रेट
कमबख्त दिल को ही
करवा डाला
लेमिनेट....
ha ha ha ha :)
जवाब देंहटाएंराजनीति में आते हैं
जवाब देंहटाएंऔर स्विस बैंक में
अथाह नोट
जमा करने का लुत्फ उठाते हैं
...
सेवा तभी कर पाते हैं
वाह ..... वाह।
लेमिनेट .....
और एक फोटो कापी भी
करवा कर रख ली है दिल की
जहां पिघल आता है
वहीं छोड़ आते हैं
फिर फोटोस्टेट वाले के पास जाके
एक और कापी करवा लाते हैं
फिर उसे भी पिघलाते हैं
पर अब उपाय गया है मिल
जब से शेफाली की क्षणिका ली है गुन।
अविनाश जी ....फोटोस्टेट का विचार सुझाने के लिए शुक्रिया
जवाब देंहटाएंकटाक्षयुक्त रचनाएँ आपकी जबरदस्त उपलब्धियां हैं,
जवाब देंहटाएंबहुत ही कमाल का लिखती हैं