शुक्रवार, 10 जुलाई 2009

यमराज - माइकल संवाद {यह व्यंग्य नहीं है }


 
साथियों ....नर्वस नाइंटी की मैं भी शिकार हो गयी हूँ ...बहुत मुश्किल से इस कविता को पूरी कर पाई ....हंसते हंसते रो पड़ती हूँ मैं ....
माईकल जेक्सन अपनी मौत के बाद जब ऊपर पहुंचा तो बहुत दुखी था ....उसकी उदासी देखकर यमराज से रहा नहीं गया .....
 
यमराज - माइकल संवाद  {यह व्यंग्य नहीं है }
 
दुःख से भरा , देखा जब चेहरा
बोल उठे यमराज
मत हो विकल , बेटा माईकल !
मरने के बाद , कौन सा दुःख
सता रहा है तुझको
सब पता है मुझको
 
चल !
मिलवाता हूँ ऐसे एक बन्दे से
आया है जो , धरती से आज
तेरी उदासी का, है उसके पास  इलाज
जिसको कहते हैं , अंगरेजी में फार्मर
हिन्दी में किसान
घूम रहा है जो 
गर्व से अपना सीना तान
तेरे गले से हैं गायब
सारे सुर और ताल
देख !
वह बेसुरा है फिर भी
छेड़ रहा है मीठी - मीठी तान
 
देख उसको गौर से
उसका जो अंत था
तुझसे काफी मिलता था
जब अंतिम सांस ली उसने
एक भी दाना पेट में नहीं मिला था
तेरे जिस्म में गुंथे थे
सेंकडों इंजेक्शन और पेट में
भरी थीं मेडिसिन
उसका ,
किसान होना ही सबसे बड़ा सिन था
तू मारा पेन किलर की ओवर डोज़ से
वह मरा
दस दस खाली पेटों के बोझ से
 
जो कुछ भी तूने कमाया
सदा दूसरों के काम आया
लोगों का दिल बहल जाए इसके लिए
तूने अपना बदन झुलाया
यह भी भूखा रहा कई कई रोज़
तब औरों का भर पेट पाया
कर्जा लेकर अन्न उगाया जिसने
उसके हिस्से बस फाका आया
 
इसके भी चेहरे का रंग
हो गया था बदरंग
तू हुआ काले से गोरा
तूने प्रकृति का नियम तोड़ा
इसको प्रकृति  ने ही तोड़ा
इसको दुलराया सूरज की किरणों ने
बदन को झुलसाया तपती दोपहरों ने
पैदा हुआ तो था फूल गुलाबी
मरा तो काला रंग भी शरमाया
 
इसकी भी जब अर्थी उठी थी
लाश गायब हो गयी थी
किडनी , लिवर और आँखों का
ज़िंदा कारोबार हुआ था
तेरा, तेरी इच्छा से हुआ था जेको !
इसके अंगों का लेकिन ,
गुपचुप कारोबार हुआ था
 
तुम दोनों को ही निगला
सूदखोरों और कर्जदारों ने
कोठी, बंगला , गाड़ी
बड़ी - बड़ी मीनारों ने
ले डूबी तुझको तेरी झूठी शान
मिथ्या अभिमान , अमीरी का स्वांग
 
लेकिन माईकल !
तुझमे और इसमें
बहुत भारी अंतर है
तेरी मौत के तुंरत बाद
ज़िंदा हो गयी तेरी जायदाद
बीबी ने इल्जाम लगाए
बच्चे भी अवैध कहलाए
वसीयत के लिए , खून के प्यासे भी
बन गए रिश्तेदार
जो कहलाते थे तेरे अपने
बदल गया उनका व्यवहार
 
तू मरा तो तेरे दीवाने
फूट फूटकर रो पड़े
तेरी लाश के पीछे
लाखों चाहने वाले चल पड़े
ये जब मरा , कोई नहीं रोया
किसी का कुछ नहीं खोया
पत्थर हो गए थे घरवाले
कई दिनों तक कोई नहीं सोया
हाँ !
इसकी मौत पर
सियासत बहुत हुई थी
किसी की छिन गयी तो ,
किसी को कुर्सी मिल गयी थी
किसी ने चमकाई नेतागिरी
किसी की टी .आर .पी .बढ़ गयी थी 
 
तो बेटा माईकल !
गम के अंधेरों से निकल
देख उसे गौर से
कितनी खुशी से वह
गीत गा रहा है
जब तक धरती पर ज़िंदा रहा
तड़पता रहा , तरसता रहा
बाद मरने के ,
नाच, गा के जश्न मना रहा है
क्यूँ और कैसे पूछा तूने ?
तो वो देख जेको !
मेरे पीछे - पीछे
उसका पूरा परिवार
चला आ रहा है  
 

17 टिप्‍पणियां:

  1. मार्मिक.....बहुत बढिया...इसे क्या कहूँ?...फैसला नहीं कर पा रहा हूँ....

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  2. बहुत डूब कर लिखा है..न भी कहती तो कौन इसे व्यंग्य मानता..इतनी भावपूर्ण गहन अभिव्यक्ति को!!

    बधाई इस लेखनी को!! जिओ!

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  3. वाकई इतनी मार्मिक रचना लिखी है कि गहराई तक चोट कर गई. आपकी इस लेखन शैली को नमन.

    रामराम.

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  4. kavita vayang nahi ek tamacha hain jo desh ke aathik vikas dindhora peet kar khud ki peeth thapthapa rahe hain.

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  5. बहुत ही बढिया भावपूर्ण रचना....इसे व्यंग्य तो किसी भी तरफ से नहीं कहा जा सकता।

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  6. किसान और माइकल ? कल्पना की ऊंची उड़ान ने एक बेहद मार्मिक रचना प्रस्तुत कर दी है. साधुवाद.

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  7. ओह इतनी मार्मिक अभिव्यक्ति निश्ब्द हूँ इस कल्पना शक्ति पर बहुत बहुत बधाई

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  8. कल्पनाशीलता का चरमोत्कर्ष !
    कौन कमबख्त इसे व्यंग्य कहेगा???

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  9. अरे क्या सोचकर पढ़ना शुरू किया था और कहाँ पहुँचा दिया आपने .

    सफ़ल रहीं हैं आप इस कविता में !

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  10. अभी मैंने इसे फिर से पढा ,बहुत ही सशक्त लिखा है.

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  11. गौतम जी से सहमत.. कल्पनाशीलता का चरमोत्कर्ष ही कहूँगा मैं इसे.. आज ही अनूप जी से आपके लेखो के बारे में बात हो रही थी.. और आपने हमें निराश नहीं किया..

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