साथियों, बहन राखी का स्वयंवर भाग- १ क्या ख़त्म हुआ लगा ज़िन्दगी में कुछ बचा ही नहीं| बहुत मुश्किल से अरहर का नाम लेकर हौसला इकठ्ठा किया और यह पोस्ट लिखने बैठी|
आजकल मेरे आस-पास का वातावरण बड़ा ही प्रदूषित हो गया है| पता नहीं क्या क्या सुनाई देता है|
कल ही मेरी पडोसन अपने पति से बहुत बुरी तरह लड़ रही थी -
पत्नी, "देखो जी, बहुत हो गया| आप मेरे लिए इस जन्म में अरहर का मंगलसूत्र बनवाएंगे या नहीं| कई सालों से आप यूँ ही टरकाते आ रहे हैं| अब तो आपको छटा वेतनमान भी मिल गया है| मेरी सारी सहेलियों के पास अरहर की मोटी-मोटी चेनें हैं और मेरे पास एक मंगलसूत्र तक नहीं|"
पति, "आरी भागवान, तू चिंता मत कर| मैंने विश्व बैंक में लोन की अर्जी दे रखी है| जैसे ही वह पास हो जाएगा में तुझे सर से लेकर पैर तक अरहर से लाद दूंगा|"
पत्नी, "तुम ऐसे ही झूठे दिलासे देते रहोगे और एक दिन मैं यह मसूर की माला पहने-पहने ही मर जाउंगी| मेरे मरने के बाद तुम मुझे अरहर के खेत में दफना देना (वह जार-जार अरहर के आंसू रोने लगती है)|"
प्रेमी प्रेमिका से, "जानेमन, यह लो| पूरे एक साल तक जी-तोड़ मेहनत करने के बाद मैं तुम्हारे लिए पूरे दस ग्राम अरहर की अंगूठी बनवा कर लाया हूँ, अब तो मुझसे शादी के लिए हाँ कर दो|"
प्रेमिका (अंगूठी को खुरच कर), "यह तो नकली है| तुमने हीरे पर पीले रंग का पैंट कर दिया है| छि: मैं ऐसे भिखमंगे से शादी नहीं कर सकती| तुमसे तो अच्छा तुम्हारा दोस्त है जिसने मुझे पिछले हफ्ते अरहर का काम करी हुई पायल गिफ्ट करी थी| मैं तो चली उसी के पास|"
लड़केवाले जब लड़की देखने गए-
लड़के का पिता, "हमें आपकी लड़की पसंद है| यह बताइये दहेज़ में कितनी बोरी अरहर देंगे| दस बरस पहले बड़े बेटे की शादी में हमने दस बोरे प्याज लिया था| उसे बेच कर हमने अरहर की खेती करी| और हम करोड़पति बन गए . हमने अपने इस बेटे की पढाई में बहुत खर्चा किया है अब वसूली का टाइम है "
लड़की का पिता, "हमारे पास तो कुल पांच ही बोरी अरहर है| सब आपको ही दे देंगे तो अपने और बच्चों की शादी कैसे करेंगे?"
लड़के का पिता, "वो आप जानो| हम हमेशा अपने बराबर वालों से सम्बन्ध करते हैं क्योंकि अरहर ही अरहर को खींचती है| और हाँ, एक बात बताना तो हम भूल ही गए की बारातियों का स्वागत अरहर की दालमोठ से होना चाहिए|"
लड़की चीखती है, "रुक जाइए पिताजी, में इन अरहर के लोभियों से शादी नहीं कर सकती|"
मास्साब बच्चों से, "बच्चों यह बताओ कि अरहर कि खेती के लिए कैसी मिटटी और आबोहवा चाहिए?"
बच्चे, "मास्साब, हमने तो इसे बस किताबों में ही देखा है परन्तु दादाजी बताते हैं कि जब गरीब आदमी की महंगाई की मार से मट्टी पलीद हो जाए , वही मिट्टी इसके लिए सर्वाधिक उपयुक्त होती है और जब आम आदमी की इसके दाम सुनकर ही हवा खिसक जाए , उसी आबोहवा में यह फलती फूलती है
राखी से प्रेरणा पाकर लडकियां स्वयंवर रचेंगी कि जो भी शूरवीर आँखों पर पट्टी बांधकर सेकडों दालों की वेराइटियों के बीच में से अरहर को सिर्फ छूकर बता दे उसी के गले में वे वरमाला डालेंगी.
लडकी की शादी के लिए विज्ञापन ......सुन्दर , सुशील ,अरहर कार्य दक्ष कन्या के लिए वर चाहिए .यह वह कन्या होगी जो चना या अन्य कोई भी पीली दाल को घोट घोट कर पका दे कि मेहमानों को उसका और अरहर का भेद स्पष्ट ना हो पाए .ऐसी कन्या की डिमांड हर वर पक्ष वाले को रहेगी .
इम्प्रेस करने के लिए ..........लोग दूसरों पर रौब गांठने या अपनी संपत्ति का प्रदर्शन करने के लिए अपने होंठों के आस - पास पीला रंग चिपका कर ही एक दूसरे से मिलने जाया करेंगे .
चमचागिरी करने के लिए ........बॉस कहेगा "क्या बात है , आजकल बड़ी अरहर गिरी कर रहे हो , कोई काम है क्या ?
अमीर घरों में .....
मालकिन ..."रामू , आज मलका की दाल में दो दाने अरहर के भी डाल देना , बहुत दिन हो गए इसका स्वाद चखे हुए .
मालिक ......."भगवान् , तुम दिन -प्रतिदिन फिजूलखर्च होती जा रही हो , याद है पिछले महीने तुमने अपने मायके वालों के आने पर अरहर की दाल बनवाई थी , और तुम्हारे मायके वालों की जय हो ! जाते ही इनकम टेक्स वालों को भेज कर हमारे घर में रेड डलवा दी थी , किसी तरह से दो किलो दाल रिश्वत में देकर मामले को रफा - दफा किया था.
पत्नी ......हे भगवान् ! मैं तो बर्बाद हो गयी तुमसे शादी करके , एक मेरा मायका था जहाँ हर महीने अरहर की दाल बना करती थी ,और यहाँ जब से आई हूँ उसकी खुशबू तक भूल गयी हूँ
गरीब आदमी अपने बच्चों को सिखाएगा.....महात्मा गाँधी कहा करते थे ..
अरहर मत देखो , अरहर मत सुनो , अरहर मत बोलो ....
माँ अपने बेटों से कहा करेंगी ......
बेटा ! मैंने तेरी बहनों को पानी में हल्दी घोल घोल कर पिलाया , लेकिन तुझे हमेशा अरहर का रस पिलाया आज तू इस रस का क़र्ज़ अदा कर.
बेटा ......माँ तू मेरा बैंक बेलेंस ले ले , गाड़ी ले ले , मैं सड़क पर खडा होकर बिक जाऊँगा ,लेकिन मैं तेरा अरहर का क़र्ज़ अदा नहीं कर पाऊंगा ,मुझे माफ़ कर दे माँ ....
नैतिक कथाएँ .....एक था राजा मूसलचंद ,उसके चार लड़के थे ,उसने अपनी संपत्ति में से चारों बेटों को एक एक एक बोरी अरहर बराबर बाँट दी थी ,.बड़े बेटे ne अपनी चटोरी पत्नी के कहने में आकर रोज़ पकाकर खा लिया ,और वह फिर से गरीब हो गया .
दूसरे ne अपने बोरे को क़र्ज़ पर उठाना शुरू कर दिया . लोग अपने घर पर शादी - विवाह ,और अन्य अवसरों पर शान बघारने के लिए बोरे मांग कर ले जाने लगे .वह भी जल्दी ही पैसे वाला हो गया
तीसरे राखी आधी अरहर खेत में बो दी और आधी बोरी भविष्य के लिए रख दी .
चौथा , जो सबसे अक्लमंद था, उसने अरहर फाइनेंस स्कीम खोली और अपने दोनों भाइयों को बोरों को दुगुना करने का प्रलोभन लेकर उनके बोरों को भी अपने पास रखवा लिया .इस प्रकार एक दिन वह सबके बोरों को लेकर विदेश चंपत हो गया .
नैतिक शिक्षा ........इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि अरहर के मामले में किसी पर भी आँख मूँद कर भरोसा नहीं करना चाहिए .
कुछ और कहावतों का भी रूप इस प्रकार बदल गया ....
'अरहर का बोलबाला ....उड़द का मुँह काला
'ये मुँह और अरहर की दाल '
'हर पीली वस्तु अरहर नहीं होती '
बहुत खूब लिखा है मजा आ गया।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढिया अरहर कथा है
जवाब देंहटाएंबेहतरीन और मजेदार.
जवाब देंहटाएंएक बार जब चुनाव खत्म हुए थे तब भी तुम्हें ऐसा ही लगा था जैसा कि राखी का स्वयंवर भाग १ खत्म होने पर लगा-जिन्दगी में कुछ बचा ही नहीं...हा हा!!
शेफालीजी, बधाइयाँ...! वाह ! क्या खूब लिखा है अरहर पर ! आपने हमारे ब्लोगर पहचानो ब्लॉग पर आना क्यों छोड़ दिया ? क्या हमसे कोई गलती हुई है ????
जवाब देंहटाएंबेहतरीन एकदम !
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा लिखा है शेफाली जी
मज्जा आ गया पढ़ के ....:):)
मुझे तो अब हर जगह अरहर ही नज़र आ रहा है ...:)
बन्दर क्या जाने "अरहर " का स्वाद ...:)
सलाम आपकी लेखनी को :)
वाह ! वाह !
जवाब देंहटाएंमजे आ गए |
जल्दी ही म्यूजियम में अरहर की प्रदर्शनी लगने वाली है |
अजी हजारों का टिकेट होगा |
:)
मज़ा आ गया. अरहर के इस स्वरूप ने मोहित किया कि अब वह मंगलसूत्र मे आने वाला है.
जवाब देंहटाएंअरहर तेरे रूप अनेक
जवाब देंहटाएंपीली मेरी दाल जी जित देखूं तित पीली
पीलिया अब एक सम्मानजनक रोग हो गया है अरहर के दिन फिरने से
अरहर के पीलेपन में भी बहुरंगी छटा नजर आती है
अरहर संपन्नता की निशानी बन गई है
हर नाके, चुंगी पर जांच में अरहर के दाने पकड़े जाने लगे हैं
अरहरापन तेरा लुभा गया मुझको
अब तो परीक्षाओं में परीक्षार्थी मास्साब को अरहर की बनी और बेबनी दाल देकर नंबर हथियाया करेंगे
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का नया नारा
तुम मुझे आजादी दो मैं तुम्हें अरहर दूंगा
मदनमोहन मालवीय
अरहर खाना हर भारतीय का जन्मसिद्ध अधिकार है
अरहर ने भारत को विकसित राष्ट्रों में शुमार कर दिया है
अरहर के एक एक दाने को शेयर बाजार की एक ऐसी इक्विटी मानो जिसके रेट सदा चढ़ते ही हैं और सेंसेक्स खुशी से उपर ही उपर चढ़ता है
शेष फिर ....
पर वाह क्या खूब दृष्टि दी है शेफाली जी ने
एक दूरदृष्टि अन्यतम दृष्टि देने और आंखें खोलने के लिए धन्यवाद।
व्यंग्य अच्छा रहा।
जवाब देंहटाएंबधाई।
waah!
जवाब देंहटाएंअब दाल रोटी खाकर प्रभु का गुण गाना भी बेहद कठिन हो गया है .न प्रभु मिले न दाल |रहर की दाम में अप्रत्याशित वृद्धि ने देश के दो तिहाई लोगों की रसोई को और भी छोटा कर दिया है ,देश में अन्न संकट की अभूतपूर्व परिस्थितियां , जनविद्रोह को जन्म दे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए |हमेशा की तरह बेहद अच्छा व्यंग्य है शेफाली जी का|
जवाब देंहटाएंबेहतरीन व्यंग्य।
जवाब देंहटाएंहा...हा...हा...
जवाब देंहटाएंएक बार जो हँसी आनी शुर्रू हुई तो फिर उसने रुकने का नाम ही नहीं लिया...
जैसे सावन के अँधे को हर तरफ हरा ही हरा नज़र आता है...अब मुझे हर तरफ पीला ही पीला नज़र आ रहा है...
सब आपकी पोस्ट का असर है....
बधाई स्वीकार करें
वाह यह अरहरमयी पोस्ट तो आपके बस की ही बात है. व्यंग पढते २ चेहरे पर यदा कदा मुस्कान तो झलकती है पर यहां तो हंसी नही रुक रही...पत्नी जी यानि आपकी ताईजी के भी दांत शायद बाहर आजायेंगे.:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
ekdum mast post hai :)
जवाब देंहटाएंअरहर का दाम सर चढ़ कर बोल रहा है. सच मे अगर ऐसा रहा तो लोग सोने चाँदी को भूल ही जाएँगे .
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना...धन्यवाद.
शेफाली ! आपने इतने बिस्तार से मंहगाई की बखिया उधेडी है की मजा आ गया ,पढ़ते पढ़ते हंसी भी खूब आई .
जवाब देंहटाएंSach much saamyik.
जवाब देंहटाएं{ Treasurer-T & S }
bahut badhiya shefali ji...
जवाब देंहटाएंदिल्ली में तो आजकल कन्याएं जल के लोभियों से शादी करने से इनकार कर रही हैं.
जवाब देंहटाएंहा हा हा ...प्रिंट कर के रख लिया है :-)
जवाब देंहटाएंअरहर तेरा मुखड़ा लाख का रे, अरहर तेरी चुनरी है करोड़ी।
जवाब देंहटाएंया फिर
अरहर के लाख रंग कौन सा रंग देखोगे?
गजब का लेखन है....
बहुत बढिया!!!
जवाब देंहटाएंha ha ha ha ha ha .....................ha ha ha
जवाब देंहटाएंजय हो. क्या बढ़िया अरहर बोले तो व्यंग्य मिला. जय हो शेफाली जी की जय हो
जवाब देंहटाएंभगवान आपको भरपेट अरहर की दाल से. हमेशा.
वह क्या बात है जी ,आपने महंगाई की बात करने का अंदाज़ निकाला है ,जय हो 'अरहर ' देवी की साथ ही आप की ,..!!
जवाब देंहटाएंकसम से आज दोपहर ही अरहर की दाल खायी है...ओर सेंटिया रहा हूँ.....पिताजी को कौन रोकेगा ???????
जवाब देंहटाएंwaah jabardast,ekdam mast post:):)
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ....
जवाब देंहटाएंgazab :)
जवाब देंहटाएंअजी, शेफाली जी तो खरी अरहर है, खरी अरहर.... अब अरहर को थोड़े ही प्रमाण (I mean तारीफ ) की आवश्यकता होती है,
जवाब देंहटाएं;)
धांसू व्यंग्य, सच्ची, शुद्छ अरहर जैसे... !
आपकी अरहरमई रचना बहुत बहुत भायी है...
जवाब देंहटाएंअरहर के प्रताप से अनभिज्ञ थे हम तो,,, कहीं कोई अरहर कन्या नज़र आये तो बताइयेगा, बहू के लिए चाहिए...
अभी से कह दे रही हूँ...पता नहीं अगले १० वर्षों में मिले न मिले...
हा हा हा हा हा हा
जवाब देंहटाएंमस्त लिखेली है, भई..
अब तो हफ़्तों यह पोस्ट पढ़्ते पढ़ते ही रोटी खाया करेंगे ।
कभी मेरे ब्लाग पर भी आ..
मैंने वहाँ ढेर सारी अरहर के दानों की फोटू चिपका रक्खी हैं !
अरहर की दाल को इतना सर न चढाओ भाई
जवाब देंहटाएंघूरे के भी दिन फिरते हैं
काश..... मैं किसी कृषि विश्व विद्यालय का कुलपति होता... आपको "अरहर" पर शोध के लिए डॉक्टरेट देता...
जवाब देंहटाएंसामयिक एवं उत्कृष्ट व्यंग...बधाई...
स्वतंत्रता दिवस की बहुत बहुत शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंकल्पना की बढ़िया उड़ान । बेहतरीन व्यंग्य। बधाई।
जवाब देंहटाएंप्रमोद ताम्बट
भोपाल
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वाह क्या दाल पकायी है ।
जवाब देंहटाएंबधाई।
अविनाश जी के मद्ध्यम से अरहर की महत्ता का पता चला शेफाली पांडे को बधाई इस आशा के साथ किउन्हें अरहर कि दाल उपलब्ध हो टी रहे,.
जवाब देंहटाएंIt was amazing sattire!
जवाब देंहटाएंपलट के दुबारा पढ़ रहे हैं! मजे ले रहे हैं!
जवाब देंहटाएं