सरकार ने स्वाइन फ्लू के डर से स्कूलों में होने वाली मोर्निंग असेम्बली पर फिलहाल रोक लगा दी है , जब से ये घोषणा की सूचना मिली है हम मास्टर लोग खुशी से फूले नहीं समा रहे हैं. अब इस बात पर हम लोग आन्दोलन करने की सोच रहे हैं कि इस पर हमेशा के लिए रोक लगा देनी चाहिए ,वैसे भी काफी समय बीत गया बिना कोई आन्दोलन किये हुए. मोर्निंग असेम्बली अब पूर्णतः अप्रासंगिक हो चुकी है इसमें अब कुछ ख़ास नहीं रखा.
ये ना हो तो स्कूल में १५ मिनट देर से पहुंचा जा सकता है. सबसे ज्यादा प्रसन्न राष्ट्रीय गान होगा , अब 'गुजराष्ट्र' फिर से ओरिजनल 'गुजरात' हो सकेगा.
बच्चों के सिर से प्रतिज्ञा कहने का बोझ उतर जाएगा .'भारत मेरा देश है , समस्त भारतवासी मेरे भाई बहिन है ' कहते कहते कई बच्चे प्रेम ,प्यार ,इश्क ,मुहब्बत में पड़ जाते हैं ,कुछ एक वीर , वीरगति को, यानी शादी की गति को प्राप्त हो जाते हैं , लेकिन उनके दिल में कहीं ना कहीं ये कसक चुभती रहती है , कि हम स्कूल में भाई - बहिन होने की शपथ ले चुके थे , और आज पति पत्नी हैं ,साल बीतते बीतते यह कसक बढ़ते - बढ़ते शूल का रूप ले लेती है , प्यार का फूल देखते ही देखते धूल में मिल जाता है , और वो जोड़ा जो स्कूल में सबसे हॉट होता था , अब ठंडा - ठंडा कूल कूल हो जाता है .
एक पी .टी . नामक चीज़ भी सुबह सुबह कराई जाती है , जिसमे उबासियाँ लेते बच्चे अपने हाथ - पैरों को आड़ा- तिरछा करते हैं .एक होता है पी .टी .आई . जो पिटाई का पर्यायवाची होता है , गलत हाथ घुमाने पर डंडा लेकर बच्चों पर पिल पड़ता है
सुबह - सुबह 'लाइन सीधी करो' जैसे सनातन वाक्य से भी छुटकारा मिल जाएगा .बच्चे भी मन ही मन सोचते हैं कि जिस देश में हर बात 'टेढी बात' होती हो और 'टेढा है ,पर मेरा है 'जैसा ब्रह्म वाक्य सुबह शाम सुनाई पड़ता हो , उस देश में बच्चों से सीधे खड़े होने की अपेक्षा करना कहाँ का इन्साफ है ? वैसे भी लाइन टेढी होने का कारण कुछ और होता है , बहुत सारे बच्चे सुबह सुबह वायुमंडल में विभिन्न प्रकार की गैसों का उत्सर्जन करते हैं , जिससे लाइन खुदबखुद टेढी हो जाती है .
सुबह - सुबह प्रार्थना करने का रोग भी समस्त स्कूलों में समान भाव से पाया जाता है , "दया कर दान भक्ति का हमें परमात्मा देना , दया करना हमारी आत्मा में सूजता [शुद्धता] देना "सालों - साल ऐसी प्रार्थना सुनते सुनते भगवान् भी कन्फ्यूज़ हो जाते हैं ,और स्कूल ख़त्म होते - होते बच्चों की आत्माएं इस कदर सूज जाती हैं कि कई बार मास्टरों की पिटाई और डाँठ से चिढ़कर वे उनके पेट में छुरा या बड़ा सा सूजा तक उतारने में और उन्हें परमात्मा के द्वार पहुँचाने में कतई नहीं हिचकिचाते हैं.
अधिकांश स्कूलों के प्रधानाचार्य भाषण नामक असाध्य रोग से ग्रसित रहते हैं , जब तक वे अपने अन्दर कूट - कूट कर भरी हुई नैतिकता का सुबह सुबह वमन नहीं कर देते उन्हें एहसास ही नहीं होता कि वे प्रधानाचार्य की गद्दी संभाल रहे हैं , वैसे ये प्रधानाचार्य नामक जीव भी इन्हीं मास्टरों की जमात में से आया होता है , लेकिन जैसे ही वह कुर्सी पर आता है उसकी पुरानी याददाश्त चली जाती है ,लेकिन बाकी मास्टर उसकी पुरानी मेमोरी को कहीं न कहीं से खंगाल ही लाते हैं
छाया में खड़े होकर उसके द्वारा दिए जाने वाले भाषण और नीति वचन कड़कती हुई धूप में खड़े हुए बच्चों के बेहोश हो जाने तक जारी रहते हैं
कई प्रधानाचार्य एक तीर से कई निशाने साधते हैं , जब वे डंडा लेकर एसेम्बली में खड़े होते हैं तो डंडे का रूख बच्चों की और होता है और नज़रें सामने खड़े मास्टरों की ओर. जिस मास्टर से उसकी खुन्नस होती है ,उसी के पास खड़े हुए लड़के को ज़रा सा हिलने पर दो डंडे जमा दिए जाते हैं ,मास्टर भी ये देख कर कैसे चुप बैठ सकते हैं ,वो भी लगे हाथ दो थप्पड़ उसी के आगे खड़े लड़के को जमा देता है ,और आँखों ही आँखों में यह इशारा दे देता है कि ' बच्चू ! हम भी तुमसे कम नहीं ,ये कुर्सी और सी . आर . का चक्कर ना होता तो अभी के अभी तुझे बता देता '
गुस्से में प्रधानाचार्य चिल्लाता है "देर से आने वाले {मास्टरों} पर कठोर कार्यवाही की जाएगी",
लड़कियों के स्कूलों में कुछ अलग ही नज़ारा होता है ,मुझे आज भी याद है कि हमें पढ़ाने वाली दो - तीन मास्टरनियाँ पूरी असेम्बली के दौरान टेंशन में रहती थीं, उनका सारा समय अपनी साडियों की प्लीट्स ठीक करने में बीत जाता था ,एक तो बार - बार अपनी चुटिया ही गूंधती रहती थी.
बच्चों के द्वारा समाचार वाचन का भी एक सत्र होता है , जो इस असेम्बली के ताबूत की आखिरी कील साबित होता है , इसमें अक्सर बच्चे ऐसे समाचार पढ़ते हैं ......
"शिक्षामंत्री ..श्री अनपढ़ सिंह का ऐलान - मास्साबों ...सावधान हो जाओ ,या तो ढंग से पढ़ाओ, या नौकरी छोडो "
"ट्यूशन खोर मास्टरों पर कसेगा शिकंजा "
"स्कूल में कुछ छात्रों ने एक छात्रा का अश्लील एस .एम् . एस . बनाया ..प्रधानाचार्य एवं स्टाफ सस्पेंड "
"पाप किंग माइकल के लिए शाहरूख कंसल्ट करेंगे "
साथियों बताइए ....क्या ये काफी नहीं है मोर्निंग असेम्बली बंद करवाने के लिए ?
अद्भुत। गजब का आब्जरवेशन है। मेरे ख्याल से तो व्यंग्य विधा में आपका लेखन अद्वितीय है। मैं एक छोटा मोटा व्यंग्यकार
जवाब देंहटाएंआपके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ।
प्रमोद ताम्बट
भोपाल
www.vyangya.blog.co.in
जय हो मैडम आपकी जय हो। मार्निंग असेम्बली खत्म हो जायेगी तो फ़िर बुराई-भलाई के लिये क्या अलग से कोई पीरियड लगेगा। लेख पढ़कर मार्निग में आनन्दित हुये। शुक्रिया आपका। असेम्बली में ठीक की गयी आपकी साड़ी की प्लेंटे दिन भर ठीक रहें!
जवाब देंहटाएंसही है.. हम भी सहमत.. हमेशा के लिये बंद..
जवाब देंहटाएंतर्क तो काटे नहीं जा सकते..बंद ही करवाये देते हैं. :)
जवाब देंहटाएंक्या बेहतरीन लिखा जा रहा है!
@ प्रमोद ताम्बट
जवाब देंहटाएंआपने खुद को मोटा कहा ?
सच कहा
कहते रहिए
कहते कहते पतले हो जायेंगे
पर आदत पड़ जाएगी
और मोटा कहना नहीं भूल पायेंगे।
छोटा मोटा मतलब
मोटे तो हुए आप
और छोटे हुए हम
हमारी बात है दम
चलिए पूछने चलें हम
।
बतायें बतायें
इस बात पर मोहर लगायें।
अब आते हैं व्यंग्य पर
मास्टर दिवस के पूर्वमहीने पर
लिखा गया व्यंग्य अवश्य ही
किसी प्रतियोगिता में
किसी प्रधानाचार्य को
पुरस्कृत करवा सकता है
परन्तु पुरस्कार के निर्णायक मंडल में
मास्टर और बच्चे रहने चाहिए।
हम आपकी पोस्ट पढकर कमेंटियाने लायक नही रहते बस हमको आपके व्यंगो की प्रसंशा लायक शब्द ही नही मिलते. लाजवाब लिखा आपने.
जवाब देंहटाएंरामराम.
Bilkul, isse flu ki rokthaam men madad milegi.
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
क्या बात है।तारीफ़ के लिये शब्द ही नही मिल रहे हैं।
जवाब देंहटाएंमेरा वोट आपके साथ है जी. मांग के देख लो...हज़ार बंदे साथ भी लाउंगा ...मुफ़्त.
जवाब देंहटाएंपोस्ट पढ़ कर स्कूल के दिन याद आ गए :)
जवाब देंहटाएंवीनस केसरी
bahut khoob !!!
जवाब देंहटाएंsach maniyega aapke lekh padh ke bachpan ki yaade ekdum taaza ho jati hain ...:)
लगता है कि आप बहुत गहरे से इन सारे क्रिया कलापों पर नज़र रखती हैँ....
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढिया...मज़ेदार...
अपने भी पुराने...स्कूल के दिन लौट आए
हम तो भई आते हैं, पढ़ते हैं, मुस्कुराते हैं, वाह बहुत खूब! का उद्घोष करते हुए चले जाते हैं अगली बार वाह- वाह करने के लिए :-)
जवाब देंहटाएंआपकी नज़र इसी तरह खुली खुली रहे
जवाब देंहटाएंवरना अब तो अधिकतर बुद्धीजीवी गांधी जी के तीन बन्दरों का सहारा ले कर पल्ला झाड़ना अच्छी तरह सीख चुके हैं
mai primary me padhta tha tabhi se kah raha hun ki "prarthna" band karo... koi sune tab na... shayad aap ki sun li jay...
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