मंगलवार, 20 अक्तूबर 2009

''ये त्यौहार ही हमारी मुनसिपेलिटी हैं''

बचपन में हिन्दी की किताब में भारतेंदु हरिश्चंद्र जी का एक पाठ हुआ करता था जिसमे एक बहुत ही बढ़िया पंच लाइन हुआ करती थी ''ये त्यौहार ही हमारी मुनसिपेलिटी हैं'' टीचर बताया करती थी कि इसका मतलब यह हुआ कि हमारे घरों में साफ़ - सफाई अक्सर तीज - त्योहारों के अवसर पर ही हुआ करती है, इसीलिए ये हमारे लिए  मुनसिपेलिटी का काम करते हैं, वैसे आजकल इसे यूँ भी समझा  जा सकता है कि जब लाख बुलाने पर मुनसिपेलिटी वाले नहीं आएं , और जब हम उम्मीद छोड़ दें तो ये अचानक प्रकट हो जाते हैं, तब समझ लेना चाहिए कि ज़रूर कोई त्यौहार निकट होगा ,तभी इन्होने सशरीर प्रकटीकरण की आवश्यकता समझी, और इस दिन को ही त्यौहार का दर्जा दे- देना चाहिए .
वैसे पोस्ट का विषय ये नहीं था, ये तो बस यूँ ही इन दिनों घर की सफाई करते समय दिमाग में आ गया. विषय तो उड़न परी पी . टी.उषा के आँसू और क्रिकेट के आंसुओं का तुलनात्मक अध्ययन से  सम्बंधित था,जो इन दिनों घर की सफाई की भेंट चढ़ गया था, 
 क्रिकेट से सिर्फ उषा की आँखों में ही आँसू नहीं आते बल्कि ऐसे कई लोग हैं जिनके आगे क्रिकेट का नाम  भर ले लो तो गंगा जमुना बहने लगती है ,मैच के दौरान   ऑफिसों में जाने पर आम आदमी की आँख से , स्कूलों में बच्चों की , घरों में पत्नियों की , करोड़ों की बोली हारने पर शाहरुख़, प्रिटी और शिल्पाओं की आँख के  अनमोल  आँसू क्या कोई भूला होगा ?
लोगों ने इस मौके पर आव देखा ना ताव, बस क्रिकेट के पीछे पड़ गए, भला क्रिकेट से किसी खेल की तुलना कैसे की जा सकती है
वैसे क्रिकेट की बराबरी कोई और गेम कर ही नहीं सकता, दौड़ तो कतई नहीं , भला यह भी कोई खेल हुआ कि जूते पहनो, ट्रेक सूट पहनो और दौड़ पडो , ना कोई गलब्ज़, ना हैट, ना पैड,  ना कोई रोमांच ना रोमांस.
क्रिकेट खेलना एक तरह से संयुक्त परिवार में रहने जैसा होता है , सारे सदस्यों को एक साथ  रखना कित्ती मुश्किल बात है ,ये दौड़ जैसा एकल परिवार वाला खेल क्या समझेगा ?
 
बौल  फेंकते समय जो एकाग्रता चाहिए वह किसी और खेल में कहाँ ? हर पल बौल पर गर्ल फ्रेंड की तरह पैनी  नज़र रखनी होती है ,इधर बौल  से नज़र हटी  उधर टीम से बाहर. कूटनीतिक  चालें  अपनानी होती है , देखना दाईं तरफ, और फेंकना बाएँ तरफ . फेंकते - फेंकते अचानक रुक जाना ,गुस्सा आ जाए तो बौल पर  थूक का लेप लगा देना  ,१८० की स्पीड से दौड़ते हुए आना और अचानक  घुर्रा फेंकना.
 
और दौड़ में क्या है बस नाक की सीध में दौड़ते जाना ,  ना कोई तिकड़म, न कोई लात घूंसा ना  गाली गलौज ..ना चीअर ना चीयर गर्ल्स .
 
  फील्डिंग करने में कित्ती जोखिम है कभी देखा है ...फ्रंट के दर्शकों की बोतलें,खाली  रेपर्स से लेकर गाली तक खानी पड़ती है ...इतनी सब दिक्कतों को भी झेल लिया जाता है बशर्ते पैसा लगातार मिलता रहे ,लेकिन इन्हें क्या मिला ? , सहवाग और युवराज बेचारे तो लगभग रो ही पड़ते हैं '' जब तक बल्ला चलता है तब तक ठाठ हैं '' उसके बाद इनका क्या होगा यह सोचकर ही  आँसू आ जाते हैं और युवराज उसकी इंजरी  पर तो दुनिया का ध्यान ही नहीं गया , लगती होगी और खेलों में  भी चोट , लेकिन क्रिकेट में  इंजरी  जैसी कोई चोट नहीं हो सकती .ये सीधे दिल पर लगती है .इतनी चोट - चपेट खाने के बाद भी इन्हें क्या मिला?
हमने कभी सोचा नहीं था कि इन्हें इतनी आर्थिक असुरक्षा होती होगी ,क्या किसी और खेल के खिलाडी को हमने इस तरह पैसों का रोना  रोते हुए देखा ? असुरक्षा की इतनी गाढी क्रीज़   तो किसी रिक्शे चलाने वाले या दिहाड़ी पर लगे हुए मजदूर के माथे पर भी देखने को नहीं मिलती, जिसको पता ही नहीं कि कल अगर शहर बंद हुआ  चूल्हा कैसे जलेगा? दुनिया भर के उत्पाद बेचने वाले इन क्रिकेटरों को बिना बौल के एल . पी. डब्लू. होते देख कर मन खिन्न हो जाता है..आओ साथियों सब मिल कर धिक्कारें , साथियों सब मिल कर धिक्कारें ,
 
धिक्कार  है,  इन पेप्सी, कोक वालों को, इन एडिडास वालों को, इन पेन , पेंसिल बनने वालों को,  करोडों की  बोली लगाने वालों को ,उन्हें भी धिक्कार जिनकी  शानदार पार्टियों में इन्होने  ठुमका लगाया , दुकानों के रिबन काटे ,रियलिटी शो में शो पीस बने , जिनके लिए इन्होने अपना बल्ला  तक ताक पर रख दिया,    धिक्कार की यह सूची इतनी लम्बी है कि एक पोस्ट में उन्हें समेटना संभव नहीं हो पायेगा ,बाकी अगली पोस्ट में . 

22 टिप्‍पणियां:

  1. अच्‍छा लिखा .. अब धिक्‍कार की सूचि पढने के लिए अगली कडी का इंतजार कर रहे हैं !!

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  2. धिक्कार है इन पर आपकी हर बात से सहमत हैं शुभकामनायें

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  3. बहुत सहि लिखा, अगली पोस्ट का इंतजार करेंगे.

    रामराम.

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  4. बाकी सब तो ठीक है मैम,वो एल पी ड्ब्ल्यू को एल बी डब्ल्यू कर लेते तो ठीक रहता।क्षमा सहित आपका आज्ञाकारी शिष्य।

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  5. धिक्कार की यह सूची इतनी लम्बी है कि एक पोस्ट में उन्हें समेटना संभव नहीं हो पायेगा ......bilkul sahi kah rahin hain aap........lekh bahut achcha laga.........

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  6. एक समाचार के अनुसार पिछले वर्ष धोनी की कुल कमाई में केवल बीस प्रतिशत ही क्रिकेट खेलने से आई, बाकी कहां से आयी आपने बता (धिक्कार) ही दिया.
    आजकल तो बस धन ही धन्य है.

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  7. आपकी शैली में हरफनमौला क्रिकेटर जैसा भाव है, जो मन को आनन्दित करता है।
    ( Treasurer-S. T. )

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  8. हा हा...आपके कटाक्ष का पैनापन मैम बहुतॊं को चुभेगा!!

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  9. धिक्कार की सूची !!!!!!!! हा हा हा , आप कहाँ तक अपना छक्का फेंक दती हैं शेफाली जी ! गज़ब यार !

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  10. दीवाली तो सच में है ही, सफाई तो बस दीवाली पर ही होती है आज कल...बढ़िया प्रसंग और धिक्कार की बातें तो इतनी है की एक नही अनेक पोस्ट कम पड़ जाए बस कुछ ही चीज़ है जो सही तरीके से घट रही है बाकी सब धिक्कार की श्रेणी में ही आते है....बढ़िया प्रसंग..धन्यवाद

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  11. bahut shi hai dhikkar hai .bahut se log ak sath dhikkare tab kuch bat bne .
    bdhiya post
    abhar

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  12. आपका ये वाला लेख तो बढिया रहा ही लेकिन एक ज़रूरी बात मैँ और कहना चाहूँगा कि पहले बचपन में उपन्यासों के भाग-1 और भाग-2 वगैरा पढते थे...उसके बाद सीरियलों में भी कड़ियाँ आ गई...आज आपकी पोस्ट का भी पहला भाग आ गया...

    बहुत बढिया...

    और हाँ!..सबसे ज़रूरी बात तो मैँ बताना भूल ही गया कि आप तो एकता कपूर के सीरियलों की तरह अपनी पोस्टों में भी सस्पैंस बनाने लगी हैँ...
    "गुड!...वैरी गुड...कीप इट अप"...

    तो फिर इंतज़ार रहेगा आपके धिक्कार...ऊप्स!...सॉरी अगले लेख का

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  13. एक " विश्व क्रिकेट धिक्कार दिवस " तो मनाया ही जा सकता है , all india cricket viewers committee की ओर से ..अरे अरे लेकिन पहले तो यह कमेटी बनानी होगी ना? चलो शुरुआत करें ?

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  14. सटीक दिया...हम पहले भी एक टिप्पणी किये थे, जाने कैसे पुछ गई... :(

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  15. वाह वाह मा साब आज क्रिकेट की बारी ..धो धो कर डुबो डुबो कर खबर ली जा रही है...हां अगले एपिसोड का इंतजार रहेगा...मुझे तो रहता ही है..

    अजय कुमार झा

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  16. so much frenzy for cricket reflects the sickness prevalent in society.i have never been able to feel any kind of affiliation with this game and i find it over-hyped. I think the game should be banished from the Indian shores . It is a big nuisance.

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  17. शानदार! अब इसका अगला भी लिखा जाये। जनता की बेहद मांग पर।

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  18. धिक्कार है, इन पेप्सी, कोक वालों को, इन एडिडास वालों को, इन पेन , पेंसिल बनने वालों को, करोडों की बोली लगाने वालों को ,उन्हें भी धिक्कार जिनकी शानदार पार्टियों में इन्होने ठुमका लगाया , दुकानों के रिबन काटे ,रियलिटी शो में शो पीस बने , जिनके लिए इन्होने अपना बल्ला तक ताक पर रख...

    धिक्कार खाने वालों की अगली सूची का बेसब्री से
    इन्तजार रहेगा ...!!

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  19. अब समझ में आया कि क्रिकेट बड़ा ही जोखिम वाला खेल है.. वईसे एक फायदा और है क्रिकेट की फिल्म ही ऑस्कर तक पहुंची.. अब बताइए यदि लगान का आमिरखान निक्कर पहनके अकेला दौड़ लगाता तो क्या आशु भाई और आमिर मामु ऑस्कार के मैदान तक पहुँच पाते..

    वैसे सटोरियों के आंसुओ के बारे में बताना भूल गयी आप शायद..!

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