शनिवार, 31 अक्तूबर 2009

परीक्षाओं का मौसम

आजकल परीक्षाओं का मौसम है| हमारे विद्यालय में गृह परीक्षाएं चल रही हैं| 
गृह परीक्षा में  ड्यूटी करने पर पैसा नहीं मिलता इसलिए इसे कटवाने के लिए हम अपनी सारी ताकत झोंक दिया करते हैं, हाँ अगर पैसा मिलता होता तो स्थिति इसके बिलकुल उलट होती. गृह परीक्षा और गृह युद्ध में ज्यादा फर्क नहीं होता है| बच्चों को जब पेपर दिया जाता है तो उनके चेहरे पर वैसा ही कौतुहल होता है जैसे पहली बार किसी आतंकवादी ने बन्दूक पकडी हो .समस्त काले अक्षर यकायक भैंस बराबर हो जाते हैं.
पेपर बाँटने के पश्चात हम उन्हें पहले नक़ल करने अर्थात आतंकवाद को पसारने का भरपूर मौका देते हैं, हम उन्हें नज़रंदाज़ करके पड़ोसी मुल्क यानी बगल की कक्षा के मास्टर से गप्प मारने चले जाते हैं , जैसे ही वे निश्चित होकर नक़ल करने लगते हैं हम चुपके से आकर उनकी कापियों का  अधिग्रहण कर लेते हैं .
कभी - कभी गुस्से में अमेरिका की तरह मुँह से निकल जाता है " छिः ! किस स्कूल से पढ़कर आए हो ? किसने तुम्हें पास कर दिया ?इस पर  वह बस अंगुली ही नहीं दिखाता है , उसकी हँसती हुई आँखें अचानक अल - कायदा की तरह पलटवार करती हैं "आप जैसों  ने ही '''
कई बार अपने साथी अध्यापकों के रिश्तेदारों या टयूशन वाले यहाँ तक कि उनके चेलों तक की संदेहास्पद  गतिविधियों  को उसी तरह से नज़रंदाज़ करना पड़ जाता है जिस तरह भारत अपने मित्र राष्ट्र नेपाल की माओवादी गतिविधियों को करता है.
 कई बार फर्जी एनकाउन्टर, यानी कि बात कोई और करे  झापड़ किसी और को लगाकर अपने पक्ष में  हवा बनानी  पड़ती है.  बच्चे सोचते हैं कि कब ये मास्टर रूपी फौज  की नज़र पलटे और हम अपने साथ लाए हुए गोला बारूद यानी नक़ल सामग्री का प्रयोग करें, इनके गोला - बारूद रखने के गुप्त स्थानों का पता चल जाए तो देश - विदेश की सर्वोच्च  जासूसी संस्थाएं चुल्लू भर पानी में डूब मरेंगी . हर संभावित जगह पर दबिश दिए जाने के बावजूद  नकल में  अक्ल  वाला बाजी मार लेता है जो जितना प्रशिक्षित आतंकवादी होगा उसके गुप्त ठिकाने उतने ही खुफिया होंगे . बेवकूफ लोग मोजों में से गोला बारूद निकालते हैं और धर लिए जाते हैं . अक्लमंद शरीर के विभिन्न अंगों पर असलहे लपेट कर यानी प्रश्नों के उत्तर लिखकर लाते हैं और कभी पानी पीने, कभी टॉयलेट जाने के बहाने से उन्हें उतारते यानी धोते चले जाते हैं , पर्ची पकडी जाए तो अक्लमंद साइनाइड की तरह बिना देरी किये  चबा लिया करता है. अन्य कोई विद्रोह होता तो ये भी बराबर का पलटवार करते परन्तु परीक्षा के दिनों में आपातकाल लगाकर इनके सारे अधिकार छीन लिए जाते हैं , इसका बदला ये बाद में घात लगाकर हमला बोलकर चुकाते हैं
कभी - कभी हम  मास्टर लोग  झपकी ले लिया करते हैं, वह भी इस अंदाज़ में कि सामने बैठा बच्चा तक यह समझता है कि मास्साब कोई गहन चिंतन में डूबे हैं.
   लडकियां  भी कम आतंकवादी नहीं होतीं ,हाँ लेकिन एक बात गौर करने वाली होती है , परीक्षा के दौरान इनके चेहरों की रौनक उसी तरह से गायब हो जाती है जैसे गूगल के मानचित्र में  भारत से काश्मीर ,  नाक से लेकर लाल टीका माथे तक का सफ़र बिना किसी  रोक टोक के वाघा - सीमा  पार  करता हुआ प्रतीत होता  है , कपडे बिना प्रेस किये हुए, बिखरे - सूखे बाल , हाथ में लाल धागा, गले में काला  ताबीज़ लटका हुआ होता है , डिब्बे में लाल फूल और उसकी हर पत्ती  पर गणित का एक सूत्र, मानो ईश्वर स्वयं सामीकरण  बनकर फूल पर उतर आए हों, मुझे पता होता है कि इस ताबीज़ में भी अवश्य ही  भगवान् की कोई ऐसी  कृपा बरसी होगी, लेकिन कभी उसे खोलने की हिम्मत नहीं हुई .भगवान् पर इतना अविश्वास  करना ठीक नहीं होता.
  अंतिम  के पंद्रह मिनटों  में हमारे थक जाने की वजह से उनके लिए मौसम अनुकूल हो जाता है , चेतावनी   देने और  लाख मुस्तैदी रखने के बावजूद में कुर्सी - मेजों की  सीमा रेखा का अतिक्रमण बहुत तेज हो जाता है  . कभी - कभी  जिस तरह सीमा पर तैनात फोर्स घुसपैठ को  चुपचाप खड़ी - खड़ी देखती रहती है उसी तरह से हमारी भी हालत हो जाती है , और हम पोखरण विस्फोट की तर्ज पर  मेज पर डंडा पटककर बच्चों  धमकाने की असफल कोशिश करते हैं .
उसके बाद कापियां जांचने की बारी आती है तब प्रश्नों के उत्तर कापियों में से ढूंढ़ना उतना ही दुष्कर कार्य होता है जितना कि पकडे गए उपद्रवियों में से एक निर्दोष को छांटना.
पता नहीं कि यह किसका दुर्भाग्य है कि लिखते तो ये भी शायद एक रूपया ही हों , लेकिन हम तक आज भी सिर्फ दस पैसे ही पहुँच पाते हैं .

25 टिप्‍पणियां:

  1. bahut hi sateek vyang kiya hai aapne........ ekdum alag maadhyam se........

    mujhe bhi kai baar nazar andaaz karna padta hai........ par hamare yahan ke saare bachche meri hi duty chahte hain....... kyunki main khoob chhoot de deta hoon bachchon ko........ nakal karne ki .....ab yeh baat alag hai ki hamare yahan bachchon ki umr 22 paar hoti hai....... par sab choonki mere dost jaise hain........ to unhe mujhe khud chhoot dena padta hai......bilkul waise hi jaise America ...pakistan ko deta hai......

    bahut hi achchi lagi aapki yeh post....

    kripya meri nayi post dekhiyega....

    "...मत बनाना मेरा बुत, मेरी मौत के बाद...."

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  2. अच्छे मास्टर लोग हैं जो नक़ल मारने देते हैं. हमारे मास्टर लोग बहुत धूर्त थे ... नक़ल नहीं मारने देते थे..
    लेकिन यह शायद उन्हीं का सिरफिरापन था कि आज हम जो भी हैं उन्हीं की बदौलत हैं..मेरा अपने सभी गुरूओं को नमन.

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  3. सही कह रही आप अगर पैसा मिलता है तो कोई ड्यूटी नहीं कटवाता

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  4. गृहयुद्ध और गृह परीक्षा एक जैसा वाह क्या बात कही आपने..बहुत बढ़िया चर्चा विशेष रूप से अध्यापक समुदाय के लिए मजेदार...धन्यवाद

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  5. लगता है इन आतंकवादी ठिकानों में प्रशासन की जोरदार छापामार कार्यवाही नहीं होतीं इसलिए आतंवादियों के मंसूबे परवान चढ़ पाते हैं। हमारे यहाँ प्रशासन इन आतंकवादियों को छापामार कार्यवाहियाँ कर पकड़ता है, फिर भी साल दर साल आतंवादियों की संख्या में बढोत्तरी होती जाती है और उनका दुस्साहस बढ़ता जाता है। मजेदार बात यह है कि कुछ दुर्दांत आतंकवादी अपनी इन आंतकवादी गतिविधियों में इतने माहिर होते हैं कि बाद में उन्हें गोल्ड मेडल से नवाजना पड़ता है।
    कमोबेश व्यंग्य के सभी प्रतिमानों से युक्त् उम्दा व्यंग्य । बधाई।

    प्रमोद ताम्बट
    भोपाल
    www.vyangya.blog.co.in

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  6. ""तब प्रश्नों के उत्तर कापियों में से ढूंढ़ना उतना ही दुष्कर कार्य होता है जितना कि पकडे गए उपद्रवियों में से एक निर्दोष को छांटना.
    पता नहीं कि यह किसका दुर्भाग्य है कि लिखते तो ये भी शायद एक रूपया ही हों , लेकिन हम तक आज भी सिर्फ दस पैसे ही पहुँच पाते हैं .""
    बहुत सच लिखा है आपने.
    जमाने में अकसर ऐसा ही होता है, वसुधैव कुटुम्बकम क भाव कब हमर मन में आएगा ????/
    - विजय

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  7. मै क्लास मे जाता हुँ तो फ़िर.......................
    जिस तरह आज कल के पाठ्यक्रम के प्रश्न जटिल होते जा रहे हैं वैसे ही विद्यार्थी भी जटिल होते जा रहे है। इस लिए आपने एक पुरा युद्ध ही रचा दिया था। आगे बढने पर प्रतीत हुआ, आपके दिल मे विद्यार्थियों के प्रति बहुत ही रहम है इसलिए आतंकवादी-बन्दुक-पोखरण से चल कर डंडे तक आ ही गई। एक उत्तम शिक्षक को ऐसा ही होना चाहिए,नारियल जैसा्। बहुत ही बढिया प्रस्तुति-आभार

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  8. इतना जबर्दस्त व्यंग इतनी सहज भाषा मे लिख जाना आपके ही बस की बात है. नमन करता हूं आपकी लेखनी को. लाजवाब. बहुत शुभकामनाए.

    रामराम.

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  9. मेरे मास्साब थे यादव सर,शिव कुमार यादव।खूब कूटा है उन्होने मुझे और आज जो कुछ भी हूं उनका आशिर्वाद ही है।वो तो युनिट टेस्ट मे हिलने-डुलने तक़ नही देते थे और उस डर से पचास पैसे से कभी भी कम नही लौटाते थे हम परीक्षा में।

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  10. बहुत ही बढिया व्यंग्य...अपने स्कूल के दिन याद आ गए..जब हम भी...
    अब अपने मुँह से कैसे कहूँ?...

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  11. मुझे तो एक ही बात का अफ़सोस है कि हाय रे !
    मैं हल्द्वानी में पैदा क्यों न हुआ ?

    और इस ज़माने में क्यों न हुआ जब आप जैसे महान (**************)

    अध्यापक उपलब्ध हैं

    हट ! लाहनत है उस ज़माने पर जब मास्टर लोग खुर्रांत होते थे आप जैसे हसीन और सौम्य हृदय नहीं..

    हे भगवान् !
    अगली बार हल्द्वानी...ठीक है न!

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  12. परीक्षा कक्ष मे तीन घंटे बिताकर बाहर आने के बाद छात्र की मुख्मुद्रा तो शांत होती है लेकिन शिक्षक की सूरत देखने लायक होती है ..पता नही परीक्षा कौन देता है । कुछ नकल करने के तरीको पर भी लिखे बेशक off the record..

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  13. अपने अधिकारिक विषय पर एक अधिकारिक पोस्‍ट। जिसका ज्ञान सबको नहीं था पर अब अज्ञानी कोई न रहने पाए। सारी पोल जब घर वाला ही खोल जाए तो कोई खोज खबर लेने कहीं और क्‍यों जाए। विश्‍वास है सब जानकारी यहीं पर उंडेल दी जाएगी। सभी भाविष्‍यक विद्यार्थियों से अनुरोध है कि इस ब्‍लॉग का फॉलोवर बनकर पूरी जानकारी हासिल करें।

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  14. अरे भाई भगवान सब बच्चों को आप जैसे ही टीचर दे ....हमारी तो किस्मत ही ख़राब थी सब खडूस टीचर ही मिले ...खैर बहुत सटीक और सच्ची है आपकी लेखनी बधाई स्वीकारें.

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  15. जैसे शक्करखोरे को शक्कर मिल ही जाती है वैसे ही हर विषय को आपके व्यंग की टक्कर भी मिल ही जाती है. धन्य हो आप

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  16. आपके व्यंग्य विषय चेहरे पर एक लम्बी मुस्कान भर देते हैं

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  17. मा साब एक बात सच सच बताईये तो ई ब्लोग आपका स्टूडेंट सब नहीं न पढता है..तभिये सबका पोल खोल दे रही हैं आप..रुकिये आजे सबको बताते हैं..बेचारा सबका सारा बैंड बजा दे रही हैं..छोटका फ़र्रा पुर्जी तो चलाने दिजीये...का पता कल को कौन हमरे जैसा ही बिलागर निकलने वा ला हो..तो टैलेंट को इत्ता तो फ़ैसिलिटी मिलना न चाहिये..

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  18. बड़ी मारक बात कह गईं इतनी सरलता और सहजता से..कमाल है.

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  19. बेहतरीन लिखा है आपने

    चूँकि स्वयं रानीखेत से हूँ और पहाडो में सरकारी विद्यालयों की दुर्गति से भली भांति परिचित हूँ , अतः इस ब्लोग को अनुभव करने में बड़ी आसानी हुई. बहुत बड़ी बात कर गईं है आप..

    भविष्य के लिए शुभकामनाएं

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  20. अच्छे मास्टर लोग हैं जो नक़ल मारने देते हैं. हमारे मास्टर लोग बहुत धूर्त थे ... नक़ल नहीं मारने देते थे.
    बहुत मज़ा आ गया।

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  21. हमें तो अपना परीक्षा कक्ष याद आ गया.

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