रविवार, 7 मार्च 2010

भए प्रकट कृपालु ......

भए प्रकट कृपालु ......
 
भक्तजनों, महाराज पुनः प्रकट हो गए हैं| वे कुछ समय के लिए अंतर्ध्यान क्या हुए, आप लोगों ने उनके देवत्व पर संदेह करना प्रारम्भ कर दिया!
 
प्रजा जनों, महाराज लोग कभी कभी स्थूल शरीर को छोड़ कर सूक्ष्म संसार में विचरण करने चले जाते हैं| आप साधारण लोग यूँ ही बिना कारण के गायब हो जाते हैं और कभी कभी मिल भी जाया करते हैं, लेकिन साधू महात्मा सदैव अंतर्ध्यान और अनिवार्य रूप से प्रकट होते हैं| भक्तजनों, महाराज जी ईश्वर से साक्षात्कार करने के लिए बीच बीच में चले जाया करते हैं| राक्षस प्रवृत्ति के लोग जिसे अन्तः पुर या राजप्रासाद कहते हैं, वहीं के एक कोने में वे ईश्वर के साथ आप लोगों के जीवन - मृत्यु, आत्मा - परमात्मा  के सम्बन्ध में चर्चा करते हैं|
आपके परिजन, जिन्हें मीडिया वाले बार बार 'मारे गए' कह कर प्रचारित कर रहे हैं, वास्तव में वे मोक्ष को प्राप्त हुए हैं|
 
देह तो नश्वर है, दुर्गुणों की खान है, माया मोह का केंद्र बिंदु है| एक न एक दिन सभी को इसे त्यागना ही है (महाराज लोग मरना शब्द से परहेज करते हैं, इसीलिये सदा देह त्यागना शब्द का प्रयोग करते हैं)|
 
खुशकिस्मत हैं आपके परिजन कि उन्हें बुढापे तक इस शरीर के भार को  ढोते रहने से मुक्ति मिल गई| शुक्र मनाइए आप लोग कि उन्हें इस पवित्र भूमि पर देह त्यागने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है| इस आश्रम के चप्पे-चप्पे में पवित्रतता व्याप्त है| आप किसी भी कोने पर जाकर प्राण छोड़ सकते हैं| धूल का हर कण इतना पवित्र है कि इसमें मिल जाने पर सीधे स्वर्ग का टिकट मिलता है| भक्तजनों, ईमानदारी से हाथ उठाइये कि आप में से कितने लोग इस संसार से उब कर देह त्यागने की बात करते हैं, लेकिन हिम्मत नहीं कर पाते (नब्बे प्रतिशत हाथ खड़े हो जाते हैं| समझाने की ज़रुरत नहीं है कि बचे हुए दस प्रतिशत अपने को ज़िन्दा ही नहीं समझते)|
 
कल्पना कीजिये कि आप बस में लदे हुए हों और बस पलट जाए| रेल की छत पर सो रहे हों और बिजली का नंगा  तार छू जाए| झोंपड़ी में सो रहे हों और आग लग जाए| बरसात के मौसम में बाढ़ में डूब जाएं या सूखे के कारण  फसल ख़राब हो जाने पर  फांसी पर लटक जाएं| आपके साथ कुछ भी हो सकता था, लेकिन सौभाग्यशाली हैं वे लोग जो इस पवित्र भूमि पर शरीर के बंधन से मुक्त हुए|
 
भक्तजनों, महाराज अभी मौन हैं| जब भी इस प्रकार की कोई महत्वपूर्ण घटना होती है, वे अक्सर मौन व्रत ले लेते हैं| इस अवधि में वे किसी भी शंका का समाधान नहीं करते| वे सिर्फ़ और सिर्फ़ ईश्वर से संवाद  करते हैं| महाराज जी ने प्रण  लिया है कि जब तक वे सभी देह त्यागने वालों को स्वर्ग नहीं पहुंचा देते तब तक मौन रहेंगे|
 
भक्तजनों, महाराज अन्तर्यामी हैं| उनके दिव्य चक्षुओं ने पहले ही देख लिया था कि लोगों की भीड़ मुफ्त का खाना खाने के लिए उमड़ पड़ेगी| उन्हें पता  था कि जब से आप लोगों  ने खाने व बीस रुपयों की बात सुनी, आप ठीक से सोये नहीं होगे| सभी ने एक हफ्ते तक एक ही समय खाना खाया होगा| गर्भवती माताओं, बहिनों, बीमार और अशक्त लोगों ने उस दिन मजदूरी से छुट्टी ले ली होगी कि चलो एक दिन तो बिना खटे  हुए पेट भर खाना मिलेगा| बच्चों ने सपने में गोल-गोल पूरियां  देखी होंगी| महाराज को ज्ञात था कि हज़ारों-लाखों की भीड़ उमड़ पड़ेगी, लेकिन उन्होंने खुलासा नहीं किया| दिव्य लोग  किसी भी  बात का खुलासा पहले से ही नहीं किया करते, बस एक या दो विश्वसनीय लोगों के कान में कह दिया करते हैं| कुछ तथाकथित महात्मा भविष्य की घटनाओं का वर्तमान में  खुलासा  करने के लिए टी. वी. कैमरे वालों को बुलाते है, अखबार वालों की भीड़ इक्कट्ठा किया  करते वे प्रचार के भूखे और ढोंगी  होते हैं, और आम आदमी की मौत मारे जाते हैं.
 
हाँ तो भक्तजनों, महाराज चाहते तो सुबह से ही गेट खुलवा  सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया क्यूंकि वे अगर तब गेट खुलवा देते तो आज आपके ज्ञान चक्षु नहीं खुल पाते| वह कोई साधारण गेट नहीं था, बल्कि महात्मा जी ने ख़ास तौर से अपने प्रिय भक्तों के लिए माया, मोह, लोभ , लालच को मिला कर, वर्षों की तपस्या और कड़ी मेहनत के पश्चात तैयार किया था जिसे आप लोगों ने ही तोड़ना था और जिस परीक्षा में आपके परिजन सफल रहे| उस गेट को तोड़कर ही असली संसार अर्थात परमपिता परमेश्वर के द्वार में प्रवेश संभव था| इसे तोड़ने में जो कुछ भी हुआ, उसे मीडिया वाले भगदड़ कहते है लेकिन हमारे महाराज  इसे प्रभु चरणों में जल्द  से जल्द  पहुँचने की बेकरारी कहते हैं|
 
महाराज की महिमा का बखान संभव नहीं है| उनकी सोच और समझ आम आदमी की समझ के दायरे से बाहर है| आप लोग रह-रह कर वही तुच्छ से प्रश्न पूछते है कि 'छोटे-छोटे मासूमों  का क्या दोष था?' या 'हमने किसी का क्या बिगाड़ा था, कौन से जन्म की सजा मिली?' इसका जवाब महाराज ने संकेतों के माध्यम से दिया है कि मासूम और पवित्र लोगों की हर जगह ज़रुरत होती है| आप लोग अभी गरीब है इसीलिये पवित्र भी हैं| जैसे-जैसे आप लोग अमीर होते जायेंगे अपवित्र हो जायेंगे और भगवान् के होने पर प्रश्नचिन्ह लगाने लग जायेंगे| महाराज की पत्नी भी पवित्र आत्मा थीं सो भगवान ने ने उन्हें जल्दी बुला लिया था| महाराज कम पवित्र थे सो अभी तक यहीं हैं और आप लोगों को पत्नी की याद में भोजन करवा रहे हैं, ताकि जल्द से जल्द वे भी पवित्र हो सकें | भक्तजनों, आतंकवादी भी गोली मारने से पहले महिलाओं और बच्चों को अलग कर देते हैं, क्यूंकि उनमें अभी पवित्रता बरकरार है|
 
भक्तजनों, महाराज चाहते तो आप लोगों से समाज सेवा के कार्य भी करवा सकते थे| पर्यावरण की रक्षा के लिए पेड़ लगवा सकते थे, श्रम-दान करवा के सड़कें बनवा सकते थे, निरक्षरों को साक्षर करवाने  का ज़िम्मा सौंप सकते थे, लेकिन नहीं किया क्यूंकि ये सब सांसारिक और भौतिक विषयवस्तु हैं| महाराज आपका सत्य के साथ साक्षात्कार करवाना चाहते थे और मृत्यु  से बड़ा सत्य आज भी दूसरा नहीं है| जब तक आप रिश्तों-नातों के कुचक्र में फंसे रहेंगे, सत्य को नहीं देख पायेंगे|
 
भक्तजनों, कलियुग में मोक्ष की प्राप्ति के लिए दो ही तरीके हैं, या तो भंडारों में खाने के लिए जाए  या त्योहारी मौसम में मंदिरों में भगवान को ज़रूर दर्शन दें| क्यूंकि भगवान भी महंगाई की तरह त्योहारी सीज़न में ही जाग्रत होते हैं| बिना त्यौहार के जाएंगे तो चाहे आप प्रार्थना कर-कर के मंदिर ही क्यूँ ना हिला दें या चढ़ावे की ढेरियाँ चढ़ा दें, वे ध्यान नहीं देते हैं| ऑफ़ सीज़न  में भगवान का मूड भी ऑफ हो जाता है|
 
भक्जनों, कुछ  लोग बीस रूपये की राशि को लेकर शंकाग्रस्त हैं| वे मूढ़ लोग कह रहे हैं कि महाराज एक तरफ कहते हैं कि रुपया हाथ का मैल है और स्वयं इस मैल को लोगों को बांट रहे हैं| शंका  निर्मूल है भक्तों| स्वामी जी ने इशारों से समझाया है कि वह आपके स्वर्ग जाने के लिए दिया गया जेबखर्च है| यह सत्य है कि मनुष्य  खाली हाथ आया था और खाली हाथ जाएगा, लेकिन महाराज की दी हुई दक्षिणा को स्वर्ग में परमिट प्राप्त है|
 
भक्तजनों, महाराज चाहते थे कि आप सब लोगों को एक साथ  मोक्ष की प्राप्ति हो, लेकिन ऐन वक़्त पर स्वर्ग में हाउस  फुल  का बोर्ड लग गया| बचे-खुचे लोगों को निराश होने की ज़रुरत नहीं है| अगले महीने फिर त्योहारी सीज़न  आने वाला है और  कुम्भ में अभी भी प्रबल संभावनाएं  है, इसलिए शान्ति और भीड़ दोनों बनाए रखें|
 
इस प्रकार के प्रवचन सुनकर पब्लिक के ज्ञान चक्षु खुल गए| खासतौर पर उनके जिनके बीबी-बच्चे मोक्ष को प्राप्त हो गए| एक बार फिर महाराज के जयकारों से आसमान गूँज उठा|  

17 टिप्‍पणियां:

  1. सामुहिक मोक्ष के लिये लोगों को महा्राज श्री का आभार व्यक्त करना चाहिये था. उसकी जगह उल्टे महाराज पर उंगली ऊठाई जारही है. कितने नाशुक्रे लोग हैं? इतनी आसानी से मोक्ष और कौन सा महाराज दिलवा सकता था?

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  2. गोल-गोल...बाप रे इतना गोल-गोल !
    ये तो कृपालु महाराज के प्रवचन से भी ज़्यादा हो गया.
    काश अंतर्ध्यान बाबा यह लौकिक पोस्ट पढ़ पाते :)

    जवाब देंहटाएं
  3. समसामयिक घटना पर इतना चुटीला व्यंग्य लेख आपका कमाल है।कुछ तो वाक्य इत्ते चुटीले हैं कि क्या कहनें!
    १.इसे तोड़ने में जो कुछ भी हुआ, उसे मीडिया वाले भगदड़ कहते है लेकिन हमारे महाराज इसे प्रभु चरणों में जल्द से जल्द पहुँचने की बेकरारी कहते हैं|
    २. मासूम और पवित्र लोगों की हर जगह ज़रुरत होती है| आप लोग अभी गरीब है इसीलिये पवित्र भी हैं|
    ३.महाराज की दी हुई दक्षिणा को स्वर्ग में परमिट प्राप्त है|
    ४. कुम्भ में अभी भी प्रबल संभावनाएं है, इसलिए शान्ति और भीड़ दोनों बनाए रखें|

    शानदार लेख। बधाई!हम शान्ति बनाये हैं। भीड़ आने वाली है इसे पढ़ने!

    जवाब देंहटाएं
  4. सीखने के लिए इतना कुछ
    कौन कहता है बाबा गए हैं छुप
    वे तो छिपन छिपाई खेल रहे हैं
    आपको मन ही मन तोल रहे हैं
    जब सबको तोल लेते हैं
    तभी वे खोलते हैं
    आंखें
    गेट
    रेट
    तब तक करें आप भी
    वेट
    भेड़ न रहें
    भीड़ बनें।

    जवाब देंहटाएं
  5. गज़ब का सटीक कटाक्ष..जितनी स्पीड से महाराज ने स्वर्ग पहुँचाया, उससे भी तेज स्पीड में आपने समीक्षात्मक रिपोर्टिंग कर दी..आप मीडिया में हाथ क्यूँ नहीं आजमाती. :)

    बहुत शानदार व्यंग्य!

    जवाब देंहटाएं
  6. अच्छा व्यंग्य।

    प्रमोद ताम्बट
    भोपाल
    www.vyangya.blog.co.in
    www.vyangyalok.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  7. इसे कहते हैं त्वरित लेखन. क्या तीखी चिकोटी ली है महाराज की!! मज़ा आ गया.कुछ जगहों पर तो इतना कमाल का व्यंग्य और शब्द विन्यास है, कि चकित करता है-
    आपके परिजन, जिन्हें मीडिया वाले बार बार 'मारे गए' कह कर प्रचारित कर रहे हैं, वास्तव में वे मोक्ष को प्राप्त हुए हैं

    अखबार वालों की भीड़ इक्कट्ठा किया करते वे प्रचार के भूखे और ढोंगी होते हैं, और आम आदमी की मौत मारे जाते हैं.

    और-
    भक्तजनों, महाराज अभी मौन हैं| जब भी इस प्रकार की कोई महत्वपूर्ण घटना होती है, वे अक्सर मौन व्रत ले लेते हैं| इस अवधि में वे किसी भी शंका का समाधान नहीं करते| वे सिर्फ़ और सिर्फ़ ईश्वर से संवाद करते हैं|
    और-




    "भक्तजनों, महाराज चाहते थे कि आप सब लोगों को एक साथ मोक्ष की प्राप्ति हो, लेकिन ऐन वक़्त पर स्वर्ग में हाउस फुल का बोर्ड लग गया| बचे-खुचे लोगों को निराश होने की ज़रुरत नहीं है| अगले महीने फिर त्योहारी सीज़न आने वाला है और कुम्भ में अभी भी प्रबल संभावनाएं है, इसलिए शान्ति और भीड़ दोनों बनाए रखें|"
    बहुत-बहुत बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  8. .
    .
    .
    अच्छा सच बताईये कि क्या इसे आप ही लिखी हैं ?
    हम तो सोचे कि यह आश्रम की ओर से छपा परचा है!

    जवाब देंहटाएं

  9. धारदार, शानदार, जानदार
    बड़ा तेज़ चैनल है यह तो ?
    जाँचसमिति ने आशँका व्यक्त की है कि,किसी महिला को इस घटना की पूर्व जानकारी थी, कहीं.... :)

    जवाब देंहटाएं
  10. ये भगदड़ नहीं ....प्रभु के पास जल्दी पहुँचने की होड़ थी ....
    ये बेचारे नास्तिक क्या जाने .....:):)

    बहुत खूबसूरत (हा हा ) व्यंग्य .....!!

    जवाब देंहटाएं
  11. अच्छे लिखने वाले को लोग कैसे खोज कर, निकाल कर पढ़ते हैं. इसका एक सबूत दे रहा हूँ ...

    व्यंग की प्रासंगिकता उसके सम-सामयिक घटना से ज्यादा जुडी होती है... आपने बड़े मौके पर इतना अच्छा व्यंग लिखा है.. एकदम सधा हुआ.. मैं आपके लिखने की शैली बहुत प्रभावित हो रहा हूँ .

    जवाब देंहटाएं
  12. aapke blog ki yeh post agar kripaalu ji padh lenge to shaayad yaa to way hameshaa ke liye himaalay ki gufaao main chale jaayenge yaa fir sanyaasi jeevan chhod denge.

    bahut badhiyaa likhaa, excellent.

    WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

    जवाब देंहटाएं