लाल बत्ती की अभिलाषा -
लड़ियों में गूँथा जाऊँ |
चाह नहीं शादी के मंडप में
लग कर झूठी शान बढ़ाऊँ |
चाह नहीं डार्क रूम में लग
फोटुओं को धुलवाऊँ |
चाह नहीं डी.जे.में फिट हो
हे हरि! सबको नाच नचाऊँ|
मुझे खोल लेना, छत से आली !
उस पथ पर देना फेंक
रेस कोर्स पर शीश नवाने
जिस पथ जाएं वी.आई.पी.अनेक | [ स्व. माखनलाल चतुर्वेदी से क्षमा प्रार्थना ]
लाल बत्ती की आत्मा की शांति हेतु यज्ञ जरूरी है। सुन्दर।
जवाब देंहटाएंवाह।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-04-2017) को
जवाब देंहटाएं"जाने कहाँ गये वो दिन" (चर्चा अंक-2623)
पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आहा! मस्त। ... :-)
जवाब देंहटाएंसटीक!!
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