वह मुल्ला है | नाम पूछने की कभी ज़रुरत नहीं पडी | मुसलमान है | दाढ़ी रखता है जो अब लगभग सफ़ेद हो चुकी है | सफ़ेद टोपी पहिनता है | राम किशोर और उनके घर के सभी लोग उसे मुल्ला कहकर ही बुलाते हैं | उम्र होगी करीब पचास या पचपन लेकिन उसकी सूरत इतनी ज़्यादा पक गयी है कि वे सत्तर से भी ज़्यादा लगता है |
आँखें लाल, रंग धूप में साइकिल चलाने के कारण झुलस गया है | दुबला - पतला शरीर | एक पुरानी साइकिल जिस पर दोनों तरफ उसने कबाड़ रखने के लिए बोरे लटकाए हुए हैं |
राम किशोर को घरेलू कबाड़ बेचने के लिए सिर्फ मुल्ला पर ही भरोसा था | घर में चाहे कबाड़ का ढेर लग जाए, अखबार के चट्टे लग जाएं , मज़ाल है राम किशोर किसी और कबाड़ी को हाथ भी लगाने दें | दिन भर में कई कबाड़ वाले साइकिल और ठेला लेकर आते थे,गेट के ऊपर से झांककर, ललचाई निगाह से आम के पेड़ के नीचे रखे खाली डिब्बे, बोतलें, टीन, टूटे - फूटे अन्य कबाड़ की सामग्रियों को ललचाई निगाह से देखते | उनमें से कई दुस्साहसी राम किशोर से पूछ भी लेते,
''बाबूजी ! अब तो बेच दीजिये कबाड़ | एक महीने से रखा हुआ देख रहे हैं | किसके लिए संभाल रखा है'' ?
राम किशोर चिढ़ कर जवाब देते, ''इससे तुम्हारा क्या मतलब ? तुम आगे जाओ हमें नहीं बेचना कबाड़'' |
''ठीक लगा दूंगा साहब, हमें ही दे दो ''|
राम किशोर गुस्से से गेट बंद कर देते | कबाड़ी भुनभुनाता हुआ चला जाता |
राम किशोर की पत्नी घर के सामने पेड़ के नीचे रखे हुए कबाड़ को देखती और कभी - कभी बहुत नाराज़ हो जाती,
''क्या हो जाएगा अगर कोई और कबाड़ी ले जाएगा तो ? महीनो - महीनो तक मुंह नहीं दिखाता आपका मुल्ला | क्या लगता है आपका वह ? कबाड़ ही तो है कोई भी कबाड़ी ले जाए | पता नहीं क्या लाल लगे हैं उस मुल्ला में ? घर में मेहमान आते हैं, अड़ोस - पड़ोस वाले आते हैं, अच्छा लगता है क्या मुंह सामने कबाड़ ''?
राम किशोर एक कान से सुनते हैं दूसरे से निकाल देते हैं | उन्हें आदत पड़ चुकी है | घर में हर तीसरे दिन यही मुल्ला पुराण छिड़ जाता है |
फिर एक दिन राम किशोर का इंतज़ार ख़त्म होता है | मुल्ला की आवाज़ को वे दूर से ही पहचानते हैं | मुल्ला आता है, साइकिल रोकता है गेट पर खड़े होकर पूछता है, '' बाबूजी कबाड़ है''?
राम किशोर खुश हो जाते हैं, '' हाँ ! हाँ ! बहुत सारा जमा है''|
राम किशोर जो खुद अस्सी पार कर चुके हैं, दौड़ - दौड़ कर अंदर जाते हैं | दोनों हाथों में भर - भर कर अख़बार और पत्रिकाओं की रद्दी को बाहर लाते हैं | कई महीनों की रद्दी लाने के लिए उन्हें कई चक्कर लगाने पड़ते हैं लेकिन वे इस कवायद में ज़रा भी नहीं थकते |
इस दौरान मुल्ला पेड़ के नीचे जमा किये कबाड़ का मुआयना करता, डिब्बों को पिचकाता, गत्तों को मोड़ता और अपने पास रखते जाता |
राम किशोर के सामने तराजू रखकर मुल्ला रद्दी और कबाड़ को तोलता जाता और बताता जाता कि फलानी चीज इतने की और फलानी चीज़ उतने की लगी |
राम किशोर गाल पर हाथ धर कर ध्यान से सुनते रहते हैं और फिर मुल्ला अपने कुर्ते की जेब से नोटों का एक बण्डल निकालता और उसमे से कुछ नोट राम किशोर के हाथ में दे देता है | राम किशोर चुपचाप उन नोटों को अपनी जेब के हवाले कर देते |
''अच्छा बाबूजी ! सलाम !'' मुल्ला कबाड़ समेटकर अपने बोरे में भरकर चल देता किसी दूसरे मोहल्ले की तरफ |
राम किशोर का एक बेटा है | एक बेटी है | दोनों पढ़े लिखे हैं | दोनों सरकारी नौकरी में हैं |
बेटा, बाप की मुल्ला को ही कबाड़ बेचे जाने की आदत से परेशान था | वैसे वह बाप की हर आदत से परेशान था | सोशल मीडिया के द्वारा फैलाए जा रहे संदेशों के परिणामस्वरूप पिछले कुछ समय से मुस्लिम धर्म के प्रति उसके नज़रिए में फर्क आ गया था | हर मुस्लिम को वह शक की नज़र से देखता था |
''पापा आपको कोई हिन्दू कबाड़ी नहीं मिलता क्या ''? बेटा गुस्से से भरकर कहता |
''अब कबाड़ में धर्म कहाँ से आ गया ?'' राम किशोर शांत रहते |
''आपको पता ही क्या है कि दुनिया में क्या हो रहा है ''?
''अच्छा ही है कि नहीं पता''| राम किशोर शांत चित्त जवाब देते हैं | उनकी चुप्पी के आगे बहस करने की सारी संभावनाएं दम तोड़ देतीं थीं |
एक दिन राम किशोर बीमार पड़ गए | ब्लडप्रेशर हाई हो गया | डॉक्टर ने चलने - फिरने के लिए तक सख्त मना कर दिया | बेटा नौकरी से छुट्टी लेकर आया | उसी दिन आ पहुंचा मुल्ला | अन्य दिनों उसे राम किशोर
आँगन में बैठे हुए ही मिल जाते थे | आज उसे घंटी बजानी पड़ी | गेट बेटे ने खोला |
''सलाम बेटे ! बाबूजी कहाँ हैं ''?
''बीमार हैं'' बेटे ने रूखा सा उत्तर दिया |
''खुदा खैर करे | सब खैरियत है'' ?
''हाँ दो तीन दिन में ठीक हो जाएंगे ''|
''अल्लाह सलामत रखे | बाबूजी बहुत अच्छे आदमी हैं ''|
''हूँ ''|
''कबाड़ होगा क्या भैया ? बहुत दूर से आते हैं | कुछ रद्दी वगैरह होगी तो ले आइये | बाबूजी तो हमारे लिए जमा करके रखते हैं ''|
''बेटा , मुल्ला आया है क्या ? अंदर से रद्दी दे दे उसे ''| अंदर से राम किशोर की आवाज़ आई |
''देखता हूँ'' मन मारकर बेटा अंदर जाता है तो राम किशोर हिदायत देते हैं ,'' देख ! उससे बहस मत करना | जितना रुपया दे, चुपचाप ले लेना'' |
बेटा मन मारकर रद्दी का ढेर बाहर लाता है | 'बीमारी का लिहाज किया वरना कभी का भगा दिया होता इस मुल्ला को '|
''कितने बच्चे हैं आपके''? नफरत से भरे हुए बेटे ने पहला सवाल दागा |
सोशल मीडिया और इधर - उधर से उसने यही जाना था कि इन लोगों के यहाँ दस से कम बच्चे नहीं होते हैं | और फिर यह तो कबाड़ी है इसके तो बीस से कम नहीं होंगे |
''जी तीन'' मुल्ला तराजू पर बाट रखते हुए बोला |
''क्या ? क्या कहा'' ? बेटे को लगा कि उसने ढंग से नहीं सुना |
''तीन बच्चे हैं हमारे''|
''अच्छा ! बेटे का मुंह खुला का खुला रह गया'' |
बहुत देर बाद उसकी चेतना लौटी | तब तक मुल्ला रद्दी तोल चुका था |
''कौन - कौन हैं'' ?
''एक बेटी है दो बेटे हैं ''|
''क्या करते हैं वे ''?
बेटे का अनुमान था कि बेटी की शादी हो गयी होगी और वह कहीं ढेर सारे बच्चे पैदा कर रही होगी | बेटे कहीं आवारागर्दी करते होंगे या इसकी ही तरह कबाड़ बेचते होंगे या ऐसा ही कोई और मिलता जुलता धंधा करते होंगे |
बेटे की यह धारणा कुछ समय से ही बनी थी जबसे वह सोशल मीडिया पर सक्रिय हुआ था |
''लड़की बड़ी है एम.ए. कर रही है'' |
बेटा आसमान से गिरा | एक कबाड़ी वाले की बेटी एम.ए.?
''अच्छा ! कहाँ से ? विषय से ''?
बेटे को कुछ तसल्ली मिलती अगर वह कहता , प्राइवेट है और विषय है समाजशास्त्र या हिंदी या ऐसा ही कुछ | लेकिन उसने कहा ''जी अंग्रेज़ी से कर रही है | कालेज जाती है साथ में ट्यूशन भी पढ़ाती भी है घर पर |अपनी पढ़ाई का इंतज़ाम अपने आप ही करती है'' |
''और लड़के क्या करते हैं''? राम किशोर के बेटे को उम्मीद थी कि यहाँ पर उसकी धारणा सही होगी |
''छोटा वाला हाईस्कूल में है | कक्षा में हमेशा अव्वल आता है'' |
''बड़ा वाला'' ? यह ज़रूर छोटा - मोटा धंधा करता होगा साथ में चोरी - चाकरी में भी सक्रिय होगा | ऐसा ही पढ़ा है उसने इन लोगों के बारे में |
''बड़ा वाला मिस्त्री है''| मुल्ला रद्दी के ढेर बना कर बांधता जा रहा था |
बेटे के कलेजे में ठंडक पड़ी | उसकी सांस में सांस आई | कुछ तो राहत मिली | ''मिस्त्री'' वह बड़बड़ाता है |
''मिस्त्री का काम तो वह बहुत छोटी उम्र से करता आ रहा है | साथ में पढ़ाई भी करता है | ओपन यूनिवर्सिटी से एम. एस. सी. कर रहा है'' |
अब बेटा कुछ बोलने के लायक खुद को नहीं पा रहा था |
लीजिए बाबूजी दो सौ रूपये हो गए '' मुल्ला ने अपनी जेब से सौ - सौ के दो नोट निकाले और बेटे के हाथ में पकड़ाए |
'' नहीं नहीं, आप रख लीजिये '' बेटे के मुंह से निकला |
''नहीं बाबूजी, पैसे ले लीजिए''|
''नहीं मैं बिलकुल नहीं लूंगा ये रूपये | आप इतने बुजुर्ग हैं | इस उम्र में इतनी मेहनत करते हैं | बच्चों को अच्छी शिक्षा दे रहे हैं मुझे बहुत अच्छा लग रहा है'' |
''जी बाबूजी ! बच्चे मना करते हैं, कहते हैं क्या ज़रूरत है इस उम्र में इतना घूमने की ? लेकिन हमें अच्छा लगता है काम करना | धूप, बरसात, जाड़ा कुछ भी हो जाए हम रुकते नहीं हैं | आपके बाबूजी जैसे कई बुजुर्ग हैं जो हमारा इंतज़ार करते हैं किसी और को कबाड़ नहीं बेचते''|
इतने में उसका फोन बजता है | वह फोन उठाता है
''जी ! जी हाँ हम बोल रहे हैं मुल्ला जी | कहाँ आना है साईं मंदिर ? ठीक है | आ जाएंगे | कल सुबह साईं मंदिर आ जाएंगे'' |
''मंदिर क्यों जाएंगे मुल्ला जी ''? बेटे ने जिज्ञासावश पूछा |
''हमारा काम है वहां | हम ही वहां से कबाड़ लाते हैं हमेशा | जब भी कबाड़ जमा हो जाता है, हमें बुला लेते हैं फोन करके'' |
बेटा सोच रहा है पहले मधुशाला मंदिर और मस्जिद को मिलाती थी आजकल कबाड़ मिला रहा है | समय बदल रहा है और क्या खूब बदल रहा है |
''अच्छा है '' बेटा मन ही मन हंस दिया |
''अच्छा बेटा चलते हैं | खुदा हाफ़िज़ | बाबूजी को सलाम कहियेगा'' |
''मुल्ला जी कल फिर आ जाना मेरे पास बहुत सारा फ़ालतू सामान पड़ा है | मेरे किसी काम का नहीं है अब | आप सब ले जाना और हाँ ! अपना फोन नंबर दे दीजिए अगले हफ्ते ईद है, मैं आपको और आपके परिवार को ईद की मुबारकबाद दूंगा'' |
''जी ज़रूर बेटा ! अल्लाह आप सबको सलामत रखे ''|
बढ़िया :)
जवाब देंहटाएंबढ़िया, दमदार कहानी.
जवाब देंहटाएंहाकीकत यही हैं
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