गुरुवार, 23 अप्रैल 2009

देख के इनका ऐसा प्रेम

सब लुटा दी बीबी पर
दौलत जितनी भी जोड़ी
पत्नी इनकी करोड़पति 
इनके पास फूटी कौड़ी 
जन सेवा में उम्र बीत गयी 
अभी  कसर बाकी है थोड़ी
  
ये बेचारे पैदल हैं
उसके पास कारें आठ 
वो सोए डबल बेड पर  
इनके हिस्से टूटी खाट
ये कड़क धूप में सेवा करते
वो करती ऐ. सी. में ठाट
 
ड्राइविंग का 'डी' ना जाने
ना पॉलिसियों की पहचान
बैंक खातों का  नहीं
शेयर बाज़ार से अनजान
भोली इतनी मुझसे पूछे
बोंड, निवेश किस चिडिया का नाम
 
चार फैक्ट्री और बंगले दस
ज़मीन है अस्सी बीघा बस
सब अर्पण है प्राण प्यारी को
गरीब दीन दुखियारी को
है कोई जो टक्कर दे दे
ऐसे प्रेम पुजारी को ?????
 
 

12 टिप्‍पणियां:

  1. कृपया ....बैंक खातों का पता नहीं... पड़ें

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  2. सही पोल खोली है.बढिया व्यंग्य.साधुवाद.

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  3. शेफाली जी !
    यह आप-बीती कविता है या जग-बीती,
    मेरी सद-भावना आपके उन के और जग के उन के साथ हैं..
    भगवान दोनों को उनकी मंजिल तक पहुँचा देंगे .
    फिर बेड भी उनका होगा पत्नी भी.
    करोड़ पति ही नहीं वो तो अरबपति बन जायेंगे.

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  4. सही व्यंग किया है आपने इस रचना के माध्यम से

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  5. जन सेवा में उम्र बीत गयी
    अभी कसर बाकी है थोड़ी
    और ये कसर हमेशा बनी ही रहती है। :-)

    बढ़िया, हमेशा की तरह एक सटीक व्यंग्य

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  6. बहुत सुन्दर.... कहाँ का निशाना कहाँ लगाया है ...

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  7. बहुत सुन्दर.... कहाँ का निशाना कहाँ लगाया है ...

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  8. बहुत सुन्दर.... कहाँ का निशाना कहाँ लगाया है ...

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  9. बहुत खूब। इस व्‍यंग्‍यप्रधान कविता के बहाने आपने नेताओं का असली चित्रण किया है।

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    मॉं की गरिमा का सवाल है
    प्रकाश का रहस्‍य खोजने वाला वैज्ञानिक

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  10. Life is a mystery for some and a misery for others. One who get way in between this whole scene is the most amused person. Making other happy by our cute deeds is the best thing we can do. Keep it up

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  11. आपने तो उम्‍मीदवारों को सचमुच में रोड पर खड़ा कर दिया है।


    पोस्‍ट में आप संपादन/एडीटिंग कर सकती हैं । डेशबोर्ड में पोस्टिंग में जाकर एडीट पोस्‍ट करें और जो शब्‍द या पंक्ति रह गई है उसे मूल में ही जोड़ लें।

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