ईश्वर ने जबसे भारतवर्ष से आती हुई यह आवाज़ सूनी कि ' सूखा राज्य सरकार का विषय है ' और 'पी .एम् .सूखे की चिंता करें ',उनकी भवें क्रोध से तन गईं ,उनहोंने तुंरत सम्मन जारी करके प्रकृती को बुलवा भेजा ,जो भांति - भांति के बनाव - श्रृंगार करने में व्यस्त थी , क्यूंकि इन दिनों उसके पास काम की बहुत कमी थी , तनखाह भी उसे अब आधी ही मिला करती है ,इस आधी तनखाह को भी वह जस्टिफाई नहीं कर पा रही थी.
ईश्वर .....यह मैं क्या सुन रहा हूँ प्रकृति ? जम्बू द्वीप से यह कैसी आवाजें सुनाईं दे रही हैं ?
प्रकृति [ अनजान बनते हुए ] ....कैसी आवाजें महाराज ?
ईश्वर ....ज़रा अपने कानों से ये बालों की लटें हटाओ ..तब कुछ सुन पाओगी .ये शरद पवार नामक नेता क्या कह रहा है ?और कोई राजनाथ सिंह भी सूखे को लेकर बहुत चिंताग्रस्त है ?क्या तुमने इस डिपार्टमेंट का काम देखना भी बंद कर दिया है ?लगता है तुम्हारी तनखाह में और कटौती करनी पड़ेगी ..
प्रकृति .....क्षमा महाराज ...लेकिन जितनी आप मुझे तनखाह देते हैं उससे मेरे ब्यूटी पार्लर का खर्चा ही पूरा नहीं पड़ता .
ईश्वर ....हम देख रहे हैं आजकल तुम्हारा काम में ज़रा भी मन नहीं लगता, याद करो प्राचीन काल में तुम कितनी कर्तव्यनिष्ठ हुआ करती थीं ,सुबह से शाम तक धरती लोक में घूम - घूम कर हाहाकार मचाया करतीं थी ,तुम्हें बाल तक बनाने की फुर्सत नहीं मिलती थी ,और आज तुम कितनी बदल गयी हो ,लगता है मनुष्य ने तुम्हारे मुँह में भी रिश्वत रूपी खून लगा दिया है .
प्रकृति ....महाराज , मैं ही क्यूँ सबके श्रापों की भागीदार बनूँ ? पहले के ज़माने की आप बात क्यूँ करते हैं ?उस ज़माने मैं मैंने अपनी ज़रा भी केयर नहीं करी , हर समय काम में जुटी रहती थी ,कहीं बाढ़ लानी है , कहीं महामारी फैलानी है , कहीं सूखा लाना है ,और उधर अन्य देवियाँ तरह - तरह के बनाव श्रृंगार किया करती थीं , सज -धज के कभी इस लोक तो कभी उस लोक भ्रमण किया करती थीं ,सारे के सारे देवताओं को रम्भा ,उर्वशी ,मेनका नृत्य दिखा -दिखा कर पटाये रखतीं थीं और उनसे उपहार ,स्वर्णाभूषण प्राप्त किया करतीं थी ,नख से शिख तक अपने को खूबसूरत बनाया करती थी ,लोग उनकी पूजा किया करते थे ,और आपने लोगों से गाली खाने वाले खराब काम मुझे पकड़ा दिए , ....मैंने काम भी किया और लोगों के श्राप भी झेले ..क्या मिला मुझे इसके बदले ? आये दिन तनखाह में कटौती ?
ईश्वर ....लगता है इस कलयुगी मनुष्य ने तुम्हारी आँखों पर रिश्वत रूपी पट्टी बहुत टाइट बाँध दी है ?
प्रकृति .....महाराज ...आप ही बताइए में क्या करती ?ले देकर मेरे पास दो ही डिपार्टमेन्ट बचे थे ..एक बाढ़ और एक सूखा ..उस पर भी अब मेरा नियंत्रण नहीं रहा ,वह जो नेता ऐसा बयान दे रहा है वह भारत सरकार का कृषी मंत्री है ,उसका नाम 'शरद पवार' है उसके पास बहुत पावर है ,दूसरे का नाम 'राजनाथ सिंह' है , जिसके राज में उसकी पार्टी 'आगे नाथ न पीछे पगहा ' वाली हो गयी है जो कल तक गीदड़ भी नहीं थे ,आज सिंह हो गए हैं .
और महाराज ! अब सूखा और बरसात हमारे क्रेडिट में नहीं आता है ,अतः इस घमंड को त्याग दे ,अब सूखा कहीं पड़ा होता है ,और प्रभावित दूसरा क्षेत्र दिखा दिया जाता है ,कई लोग इस सूखे की बदौलत सुखी हो जाते हैं ,यही हाल बाढ़ का भी है ,बहती हुई बाढ़ में हाथ धोकर कईयों के छप्पर फट जाते हैं .वह तो भला इस हो कलयुगी मानव का जिसने मेरी आँखों पर बंधी हुई पट्टी खोल कर मुझे ज्ञान का प्रकाश दिखाया ..
ईश्वर ......और महामारी के बारे में क्या कहती हो ?स्वाइन फ्लू फैलाने का काम तुम्हे सौंपा था ..वह भी नहीं हो पाया तुमसे .
..
प्रकृति ......महाराज ..में क्या करुँ ? मीडिया वालों ने मेरी रोजी -रोटी पर लात मार दी है .अमेरिका में स्वाइन फ्लू से कोई मरता है तो सारी दुनिया अपने चेहरे पर मास्क लगा लेती है ,'.प्रकृति रोते रोते अपने गालों पर फैल आये आई लाइनर को साफ़ करने लगती है
ईश्वर अपने गालों पर हाथ रखकर गहन चिंतन में डूब जाते है .
kya baat hai....lage raho
जवाब देंहटाएंbaalon ki laten hatao tabhi mil paaogi.
जवाब देंहटाएंswain flue failaane ka kaam tumhara hai.
waah kya baat GAZAB GAZAB
सही कहा है
जवाब देंहटाएंसूखे से सुखी
और
बाढ़ से करोड़पति
आपकी लेखनी और
विचारों की
जय फ्लू हो।
बहुत ही बढिया...उम्दा किस्म का व्यंग्य...
जवाब देंहटाएंतालियाँ...
आपकी लेखनी को सलाम
सटीक लेखन...क्या कहें!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक कहा आपने.
जवाब देंहटाएंरामराम.
achchha vyang....sukhe se le kar BJP tak ...bahut bahut badhai
जवाब देंहटाएंVery funny! A strong satire!
जवाब देंहटाएं